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कैसे करें नवरात्र व्रत

navratra vratउपवास या अभय वरदान

दो मौसमों के मिलन के समय पर नवरात्र व्रत आते हैं। यह आध्यात्मिकता से जुड़ा है या साथ में कोई और कारण है। अक्सर लोगों को यह कहते हुए सुना गया है कि मौसम बदलने के कारण खांसी, बुखार या अन्य बीमारी आ जाती हैं। जब इतना ज्ञान है कि मौसम बदलते समय जीवनी शक्ति सफाई के कार्य में लग जाती है, तो जीवनी शक्ति को भोजन लेने व पचाने के कार्य से कुछ समय के लिए अवश्य मुक्त कर देना चाहिए।
जिस तरह से गाड़ियों कि सर्विसिंग का प्रावधान है। गाड़ी चलाने के बाद पहले से निर्धारित किलोमीटर के बाद उसकी सर्विसिंग कराई जाती है। उसी तरह शरीर, इंद्रीयां आदि को भोजन के कार्य से रोककर अंदर सफाई का मौका प्रदान किया जाता है। मौका मिलने पर जितना कूड़ा मल के रूप में एवं तेजाब (वात-पित्त, कफ) इकट्ठा हो जाता है, उपवास काल में उसकी सफाई हो जाती है।
सफाई होते ही उपवास कर्ताओं की अगले छह महीनों के लिए बैटरी चार्ज हो जाती है। बीमारी के आसार समाप्त हो जाते हें। इसके लिए उपवास के उद्देश्य को जानना जरूरी है कि उपवास आंतरिक सफाई के लिए होता है। उपवास काल में जब अंदर की सफाई होना हो तो इस काल में सफाई वाली चीजें ही अंदर जानी चाहिए। इस दौरान चिपकने वाली चीजें कतई इस्तेमाल नहीं होनी चाहिए मसलन आलू, अरबी, केला, शकर, अन्न, दूध या इससे बनी हुई कोई चीज उपवास काल में शरीर के अंदर न जाए। इस बीच अंदर छह माह में जिस चीज की अधिकता हो जाती है उसकी सफाई हो जाएगी। अगर शकर की मात्रा अंदर बढ़ रही थी तो वह साफ हो जाएगी। अगर डायबिटीज होनी भी रहेगी तो नहीं हो सकेगी। इसी तरह और भी चीजें साफ हो जाएंगी। सफाई होते ही ताजगी और स्फूर्ति का एहसास होने लगता है। वास्तव में जो व्यक्ति उपवास को समझता है, वही भगवान की शक्ति को जान सकता है।
उपवास के समय अगर चाय काफी, कुट्टू, सिंघाड़ा, देशी घी, मखाना यह सब चलता रहा तो उसका नाम उपवास कहां रहा। उपवास के बाद अक्सर खाने की प्रक्रिया यदि न रोकी गई तो लोगों को उपवास तोड़ने के बाद बीमार होते हुए देखा गया है। जिन लोगों ने समझकर उपवास या व्रत रखा उनके लिए यह वरदान साबित होगा। इससे आध्यत्मिक विकास तो होता ही है साथ ही बीमारी से मुक्ति, बुढ़ापे में भी जवानी जैसी ताकत, कैसी भी घटना हो जाए लेकिन मानसिक स्तर पर वैसी ही मस्ती, बौद्धिक स्तर बगैर पुस्तकों के अध्ययन के ज्ञान की अनुभूति और अहं के स्तर पर प्रेम की अनुभूति हो जाती है। आइए इस वर्ष 25 सितम्बर से 2 अक्टूबर तक नवरात्र की इस बेला में अपने जीवन में क्यों न एक नया अनुभव करें, जो पूजा-पाठ का संस्कार भी पूरा करे और साथ ही जीवन को भी सुखमय बना दें।

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