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क्षयरोग (टी. बी.) दिवस आज : बचाव ही बेहतर उपाय

लखनऊ : क्षय रोग (TB) एक ऐसी बीमारी है जो माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरक्यूलोसिस नामक जीवाणु (बैक्टीरिया) के कारण होती है। TB का प्रकोप उच्च आय वाले देशों की तुलना में निम्न और मध्यम आय वाले देशों में अधिक है।
वर्ष 2014 में, TB के मामलों की सबसे अधिक संख्या दक्षिणपूर्व एशिया और अफ्रीका में थी। इस रोग का सबसे अधिक बोझ झेलने वाले छ: देश थे भारत, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, चीन, नाइजीरिया, और दक्षिण अफ्रीका। टीबी (क्षयरोग) एक घातक संक्रामक रोग है, जो आमतौर पर ज्यादातर फेफड़ों पर हमला करता है, लेकिन यह फेफड़ों के अलावा शरीर के अन्य भागों को भी प्रभावित कर सकता है। यह रोग हवा के माध्यम से फैलता है। जब क्षयरोग से ग्रसित व्यक्ति खांसता, छींकता या बोलता है तो उसके साथ संक्रामक ड्रॉपलेट न्यूक्लीआई उत्पन्न होता है, जो कि हवा के माध्यम से किसी अन्य व्यक्ति को संक्रमित कर सकता है। ये ड्रॉपलेट न्यूक्लीआई कई घंटों तक वातावरण में सक्रिय रहते हैं। जब एक स्वस्थ व्यक्ति हवा में घुले हुए इन माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरक्यूलोसिस ड्रॉपलेट न्यूक्लीआई के संपर्क में आता है तो वह इससे संक्रमित हो सकता है। क्षयरोग सुप्त और सक्रिय अवस्था में होता है। सुप्त अवस्था में संक्रमण तो होता है लेकिन टीबी का जीवाणु निष्क्रिय अवस्था में रहता है और कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। अगर सुप्त टीबी का मरीज अपना इलाज नहीं कराता है तो सुप्त टीबी सक्रिय टीबी में बदल सकती है। लेकिन सुप्त टीबी ज्यादा संक्रामक और घातक नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के अनुसार विश्व में 2 अरब से ज्यादा लोगों को लेटेंट (सुप्त) टीबी संक्रमण है। सक्रिय टीबी की बात की जाए तो इस अवस्था में टीबी का जीवाणु शरीर में सक्रिय अवस्था में रहता है तथा यह स्थिति व्यक्ति को बीमार बनाती है। सक्रिय टीबी का मरीज दूसरे स्वस्थ व्यक्तियों को भी संक्रमित कर सकता है इसलिए सक्रिय टीबी के मरीज को अपने मुंह पर मास्क या कपड़ा लगाकर बात करनी चाहिए और मुंह पर हाथ रखकर खांसना और छींकना चाहिए।
क्षयरोग के लक्षण
– लगातार 3 हफ्तों से खांसी का आना और आगे भी जारी रहना।
– खांसी के साथ खून का आना।
– छाती में दर्द और सांस का फूलना।
– वजन का कम होना और ज्यादा थकान महसूस होना।
– शाम को बुखार का आना और ठंड लगना।
– रात में पसीना आना।
टीबी एक पुरानी बीमारी है और फेफड़ों के ऊपरी भागों में व्यापक घाव पैदा कर सकती है। फेफड़ों के ऊपरी में होने वाली टीबी को कैविटरी टीबी कहा जाता है। फेफड़ों के ऊपरी भागों में निचले भागों की अपेक्षा तपेदिक संक्रमण प्रभाव की आशंका अधिक होती है। इसके अलावा टीबी का जीवाणु कंठ नली को प्रभावित कर लेरिंक्स टीबी करता है।
टीबी के जीवाणुओं को मारने के लिए इसका उपचार के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग किया जाता है। टीबी के उपचार में सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली 2 एंटीबायोटिक्स आइसोनियाजिड और रिफाम्पिसिन हैं और उपचार कई महीनों तक चल सकता है। सामान्य टीबी का उपचार 6-9 महीने में किया जाता है। इन 6 महीनों में पहले 2 महीने आइसोनियाजिड, रिफाम्पिसिन, इथाम्बुटोल और पायराजीनामाइड का उपयोग किया जाता है। इसके बाद इथाम्बुटोल और पैराजिनामाइड ड्रग्स को बंद कर दिया जाता है बाकी के 4-7 महीने आइसोनियाजिड और रिफाम्पिसिन का उपयोग किया जाता है। इसके साथ ही टीबी के इलाज के लिए स्ट्रेप्टोमाइसिन इंजेक्शन का भी उपयोग किया जाता है। मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी में फर्स्ट लाइन ड्रग्स का प्रभाव खत्म हो जाता है इसके लिए सेकंड लाइन ड्रग्स का उपयोग किया जाता है जिसमें सीप्रोफ्लॉक्सासिन, लेवोफ्लॉक्सासिन, मोक्सीफ्लोक्सासिन, अमिकासिन, कैनामायसिन और कैप्रीयोमायसिन इत्यादि एंटीबायोटिक्स का उपयोग किया जाता है। मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी का इलाज 2 साल तक चलता है। एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंस टीबी का इलाज डॉक्टर की विशेष देखरेख में थर्ड लाइन ड्रग्स द्वारा किया जाता है। एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंस टीबी का इलाज 2 वर्ष से अधिक समय तक चलाया जाता है। एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंस टीबी अत्यधिक चुनौतीपूर्ण है।
क्षयरोग की रोकथाम और नियंत्रण के लिए मुख्य रूप से शिशुओं के बैसिलस कैल्मेट-ग्यूरिन (बीसीजी) का टीकाकरण कराना चाहिए। बच्चों में यह 20% से ज्यादा संक्रमण होने का जोखिम कम करता है। सक्रिय मामलों के पता लगने पर उनका उचित उपचार किया जाना चाहिए। टीबी रोग का उपचार जितना जल्दी शुरू होगा, उतनी जल्दी ही रोग से निदान मिलेगा। टीबी रोग से संक्रमित रोगी को खांसते वक्त मुंह पर कपड़ा रखना चाहिए और भीड़-भाड़ वाली जगह पर या बाहर कहीं भी नहीं थूकना चाहिए। साफ-सफाई के ध्यान रखने के साथ-साथ कुछ बातों का ध्यान रखने से भी टीबी के संक्रमण से बचा जा सकता है। ताजे फल, सब्जी और कार्बोहाइड्रेड, प्रोटीन, फैटयुक्त आहार का सेवन कर रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। अगर व्यक्ति की रोक प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होगी तो भी टीबी रोग से काफी हद तक बचा जा सकता है।
टीबी के लक्षण दिखाई देने पर डॉक्टर द्वारा रोगी को टीबी को जांचने के लिए कई तरह के टेस्ट कराने की सलाह दी जाती है। स्पुटम/अन्य फ्लूइड टेस्ट में मरीज के बलगम/अन्य फ्लूइड की लैब में प्रोसेसिंग होने के बाद स्लाइड पर उसका स्मीयर बनाया जाता है फिर उसकी एसिड फास्ट स्टैंनिंग की जाती है। स्टैंनिंग के बाद में स्लाइड पर टीबी के जीवाणु की माइक्रोस्कोप के जरिए पहचान की जाती है। माइक्रोस्कोप द्वारा बलगम की जांच में 2-3 घंटे का समय लगता है। इस जांच के आधार पर डॉक्टर रोगी का इलाज शुरू कर देता है। लेकिन विभिन्न कारणों की वजह से इसमें गड़बड़ी की आशंका होती है इसलिए सैंपल का प्रोसेसिंग के समय पर ही लोएस्टीन जेनसेन मीडिया पर कल्चर लगाया जाता है। इसके बाद सैंपल से इनोक्यूलेटेड कल्चर को इनक्यूबेटर में 37 डिग्री सेल्सियस पर रख देते हैं। इस जांच में 45 दिन या उससे अधिक समय लग सकता है। स्किन टेस्ट (मोंटेक्स टेस्ट) में इंजेक्शन द्वारा दवाई स्किन में डाली जाती है जिससे कि 48-72 घंटे बाद पॉजीटिव रिजल्ट होने पर टीबी की पुष्टि होती है। लेकिन इस टेस्ट में बीसीजी टीका लगे हुए और लेटेंट टीबी संक्रमण का भी पॉजीटिव रिजल्ट आ जाता है। लाइन प्रोब असे- यह एक रैपिड ड्रग संवेदनशीलता टेस्ट है। इस टेस्ट के जरिए टीबी के जीवाणु के फर्स्ट लाइन ड्रग्स (आइसोनियाजिड और रिफाम्पिसिन) के प्रतिरोध से जुड़ी जेनेटिक म्यूटेशन की पहचान 1-2 दिनों में कर ली जाती है जिसकी वजह से मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी की भी पहचान हो जाती है। जीन एक्सपर्ट टेस्ट में नवीनतम तकनीक जीन एक्सपर्ट एक कार्टिरेज बेस्ड न्यूक्लीक एसिड एम्फ्लिफिकेशन आधारित टेस्ट है। जीन एक्सपर्ट द्वारा महज 2 घंटे में बलगम द्वारा टीबी का पता लगाया जा सकता है। साथ ही इस टेस्ट में जीवाणु के फर्स्ट लाइन ड्रग रिफाम्पिसिन के प्रतिरोध से जुड़ी जेनेटिक म्यूटेशन तक की भी पहचान कर ली जाती है जिसकी वजह से मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी की भी पहचान हो जाती है।

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