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जिन्ना प्रकरण : हामिद एवं कथित धर्मनिरपेक्ष शक्तियां खामोश

आडवाणी की आड़ में जिन्ना की पैरोकारी

चुनावी साल होने की वजह से जिन्ना की तस्वीर प्रकरण को ज्यादा हवा मिल रही है। बीजेपी के लिये यह मुद्दा इसलिये भी अहम है क्योंकि इससे उसके हिन्दुत्व के एजेंडे को ऊर्जा मिलती है, लेकिन मुस्लिम वोट के सौदागार समझ नहीं पाते हैं कि वह किस तरफ खड़े हों, अगर वह जिन्ना के पैरोकारों का साथ देते हैं तो बीजेपी को विपक्ष पर हमला बोलने का नया हथियार मिल जायेगा और अगर इसका विरोध किया तो मुस्लिम वोटर नाराज हो सकता है, इसीलिये पूरे प्रकरण में गैर भाजपा दल फूंक-फूंककर कदम रख रहे हैं।

उत्तर प्रदेश की मशहूर और कई बार विवादों के कारण सुर्खियों में रहने वाला अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) आजकल अपने कारमानों के कारण फिर चर्चा में आ गया है। यहां छात्र संघ भवन में लगी मोहम्मद अली जिन्ना की फोटो विवाद का कारण बना है। जिसको लेकर लोगों के बीच दीवारें खड़ी हो गई हैं। जिन्ना वह शख्स था जिसे भारत-पाकिस्तान के बंटवारे का मुख्य किरदार माना जाता है। जिन्ना को लेकर जो आम धारणा बनी हुई है। उसके अनुसार जिन्ना अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त होने के बाद आजाद हिन्दुस्तान का वजीरे आजम यानी प्रधानमंत्री बनना चाहता था। जब उसकी यह महत्वाकांक्षा परवान नहीं चढ़ती दिखी तो जिन्ना ने टू नेशन थ्योरी का बिगुल यह कहकर बजा दिया कि हिन्दुस्तान में मुस्लिम सुरक्षित नहीं रह सकते हैं। इसी आधार पर उसने मुसलमानों के लिये के अलग राष्ट्र पाकिस्तान की मांग कर डाली। जिन्ना की इस सोच को अंग्रेजों ने हवा दी और पाकिस्तान का जन्म हुआ। पाकिस्तान में जिन्ना की पहचान कायदे आजम के रूप में है तो हिन्दुस्तान का दर्द यह है कि उसे लगता है कि पाकिस्तानी कायदे आजम की सोच के कारण अपना देश काफी दुश्वारियां झेल रहा है। बात यहीं तक सीमित नहीं है लोग यह भी नहीं भूले हैं कि जिन्ना के चलते ही देश के बंटवारे के समय बड़ा कत्लेआम हुआ था। जिसमें हजारों हिन्दुओं को मौत के घाट उतार दिया गया था। लाखों लोग बेघर हो गये थे। यही वजह है जिन्ना को लेकर आम हिन्दुस्तानी के मन में नफरत का भाव रहता है। परंतु अपने देश का यह दुर्भाग्य की यहां मुट्ठी भर लोग ऐसे भी हैं जिनमें जिन्ना का जिन समाया हुआ है। यह लोग समय-समय पर तमाम किन्तु-परंतु की आड़ लेकर जिन्ना के विचारों की पैरोकारी करते रहते हैं। जैसा की आजकल अलीगढ़ विवि में हो रहा है। जिन्ना के पैरोकार यह सुनने को तैयार ही नहीं हो रहे हैं कि जिन्ना और उनकी सोच का समर्थन करने वालों की हिन्दुस्तान में कोई जगह नहीं है। बल्कि जिन्ना की पैरोकारी करने वालों के द्वारा कहा यह जा रहा है कि बीजेपी के दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवाणी भी तो जिन्ना की तारीफ कर चुके हैं, लेकिन ऐसा कहने वाले यह भूल जाते हैं कि पाकिस्तान में जिन्ना की मजार पर जाकर उनकी तारीफ करने के कारण ही आडवाणी को बीजेपी के अध्यक्ष पद से हटना पड़ा था और उक्त प्रकरण के बाद वह कभी पार्टी में स्वीकार्यता नहीं बना सके थे।
ताज्जुब की बात यह है कि अलीगढ़ विवि के छात्र संघ भवन में जिन्ना की तस्वीर 1938 से लगी थी और इसका कभी किसी से कहीं कोई विरोध नहीं किया। यह मामला तब चर्चा में आया जब अलीगढ़ के सासंद सतीश गौतम ने एएमयू के कुलपति को पत्र लिखकर पूछा कि क्या एएमयू में कहीं जिन्ना की फोटो लगी है और अगर लगी है तो इसे अभी तक हटाया क्यों नहीं गया। सांसद के पत्र पर हंगामा तो होना ही था और हुआ भी, लेकिन सबसे अधिक आश्चर्य पूरे प्रकरण पर पूर्व राष्ट्रपति हामिद अंसारी की चुप्पी देख कर हुआ। बताते चलें कि जब जिन्ना की तस्वीर को लेकर पूरे देश में हंगामा हो रहा था, उस समय हामिद भी एएमयू में मौजूद थे, उन्हें मानद सदस्यता दी जानी थी, हंगामे के बाद उनको सदस्यता दिलाये जाने का कार्यक्रम स्थगित हो गया और हामिद चुपचाप वहां से चले गये, लेकिन उन्होंने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, जबकि पूर्व में इन्हीं हामिद अंसारी ने अपने उप-राष्ट्रपति कार्यकाल के अंतिम दिन के ठीक पहले विवादित बयान देते हुए कहा था कि मोदी राज में देश के मुस्लिमों में असुरक्षा की भावना है और घबराहट का माहौल है। उन्होंने यह बात राज्यसभा को दिए एक इंटरव्यू के दौरान कहीं थी। अंसारी ने जो बातें कहीं उन्हें मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करने वाली बातें माना जा रहा था। लेकिन जब जिन्ना की तस्वीर पर बोलने की बारी आई तो हामिद एएमयू कैम्पस में मौजूद रहने के बाजवूद चुप्पी साधे रहे। बात यहीं तक सीमित नहीं है। पाकिस्तान जिनकी रगों में जिन्ना बसा हुआ है। इस समय भी वह गैर-जरूरी हरकतें कर रहा है। ऐसे में जिन्ना की तस्वीर एएमयू में लगाना कितना तार्किक है? बात में जब एक मीडिया समूह द्वारा एक कार्यक्रम के दौरान हामिद अंसारी की राय मांगी गई तो वह बिफर गये और बोले उनको इस घटिया राजनीति में नहीं घसीटें यह बहस नेताओं के लिये ही रहने दीजिये, उनकी पत्नी जरूर जिन्ना की तस्वीर एएमयू में लगने की पैरोकारी करती दिखीं, उनका कहना था कि 1938 से जिन्ना की तस्वीर लगी है, अब कोई वजह नहीं है कि एएमयू के इस शानदार छात्र की तस्वीर हटा दी जाये।
करीब आठ दशकों से जिन्ना की तस्वीर एएमयू के स्टूडेंट यूनियन हॉल में लगी हुई है। इस बात को लेकर सबसे पहले हंगामा एक आरटीआई को लेकर खड़ा हुआ था, जिसमें पूछा गया था कि जिन्ना की तस्वीर कहां लगी हुई? छात्र संघ अगर उसी समय अपनी गलती मानते और वतनपरस्ती दिखाते हुए कह देता कि जो हुआ सो हुआ लेकिन अब वह जिन्ना की तस्वीर हटा लेगा, मगर ऐसा करने की बजाये छात्र संघ दलील देने लगा कि यहां करीब 30 से अधिक ऐसे लोगों की तस्वीरें लगी हुई हैं, जिन्हें यूनियन की सदस्यता दी गई है। छात्र संघ का कहना था कि जिन्ना एएमयू में बंटवारे से पहले 1938 में आए थे, तभी उन्हें यूनियन की सदस्यता दी गई थी। इस पर विवाद व्यर्थ है। वहीं उग्र प्रदर्शनों की जानकारी मिलने के बाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ भवन पर पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी का कार्यक्रम रद्द कर दिया गया, जिसके बाद हामिद अंसारी बिना कार्यक्रम में शामिल हुए वापस दिल्ली के लिए रवाना हो गए, तो उम्मीद के अनुसार ही हामिद अंसारी के साथ-साथ एएमयू में जिन्ना तस्वीर प्रकरण पर तथाकथित धर्मनिरपेक्ष शक्तियां मौन साधे रहीं। इसी बीच यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में जिन्ना की तस्वीर को लेकर चल रहे विवाद के बीच सरकार का रूख स्पष्ट करते हुए कहा कि जिन्ना ने हमारे देश का बंटवारा किया था। हम किस तरह से उनकी उपलब्धियों का बखान कर सकते हैं। भारत में जिन्ना का महिमामंडन बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। सीएम योगी ने यह भी कहा कि एएमयू मामले में जांच के आदेश दिए हैं, जल्द ही इसकी रिपोर्ट मिल जाएगी। रिपोर्ट मिलते ही वह इस मामले में ऐक्शन लेंगे। लब्बोलुआब यह है कि चुनावी साल होने की वजह से जिन्ना की तस्वीर प्रकरण को ज्यादा हवा मिल रही है। बीजेपी के लिये यह मुद्दा इसलिये भी अहम है क्योंकि इससे उसके हिन्दुत्व के एजेंडे को ऊर्जा मिलती है, लेकिन मुस्लिम वोट के सौदागार समझ नहीं पाते हैं कि वह किस तरफ खड़े हों, अगर वह जिन्ना के पैरोकारों का साथ देते हैं तो बीजेपी को विपक्ष पर हमला बोलने का नया हथियार मिल जायेगा और अगर इसका विरोध किया तो मुस्लिम वोटर नाराज हो सकता है, इसीलिये पूरे प्रकरण में गैर भाजपा दल फूंक-फूंककर कदम रख रहे हैं।

  • संजय सक्सेना

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