राष्ट्रीयसाहित्य

जी एस टी– गिव सर्वाइवल टैक्स

जग मोहन ठाकन

प्रकृति का सिद्धांत है जो विपरीत परिस्थितियों के अनुसार अपने आप को ढाल पायेगा वही जीवित रहने का अधिकारी है , बाकी खल्लास . डार्विन ने भी बहुत पहले कह दिया था – सर्वाइवल ऑफ़ दि फिट्टेस्ट . अब भी आपको कोई संदेह है , तो आपका राम ही रखवाला है . बाबा रामदेव बहुत समय से आपको संकेत दे रहे थे , फिट रहो . अगर आपने उनकी सलाह के अनुसार अभी तक शीर्षासन करना नहीं सीखा है , तो इसमे केवल और केवल आपकी गलती है . सरकार ने यह मानकर कि आप फिट हो चुके हैं और देश में बदलाव की प्राणवायु को अपने फेफड़ों में समा लेने में सक्षम हैं, आधी रात तक आपके भले के लिए जाग कर आपकी सेवा ( सर्विस ) में आपकी भलाई ( गुड्स) हेतु सारे देश को एकीकृत करते हुए ऐसे सर्वाइवल टैक्स का इजाद किया है , जिसके लिए नेहरू भक्त अपने दशक में असफल रहे और अब इस बिराणी सफलता को देखने के लिए भी मात्र एक दिन आधी रात तक नहीं जाग सके .
“बदलते रहे होंगे इधर से उधर करवटें, नींद तो मगर उनको भी नहीं आई होगी” .
ये सत्ताहीन हो चुके दल अब शोर मचा रहे हैं कि जनता का गला घोटा जा रहा है , पर अन्दर ही अन्दर तिलमिला भी रहे हैं कि हम क्यों चूक गए ? अगर यह गला घोटन हम करते तो इससे आधा ही घोंटते . पब्लिक को पता ही नहीं चल रहा है कि मार कहाँ पड़ेगी ? हमारे नत्थू शाह रंगीला मस्त हैं . सवेरे पहले घर आ टपके अखबार का पुलिंदा लेकर . बोले –अरे साहब कृष्ण युग तो गौ भक्तों ने पहले ही ला रखा है , अब तो राम राज आ जायेगा . अब कोई नमक हरामी नहीं करेगा . नमक पर कोई टैक्स नहीं , यानि नमक एकदम सस्ता . ख़ुशी मनाईये , देश का नमक खाईए , देश के प्रति वफादार बनिये , श्रद्धावान बनिये . खैर अगर नमक पर भी जी एस टी लगा देते तो भी कौन सा दांडी मार्च आन्दोलन छिड़ जाता ? अब कोई चतुर बनिया तो जिन्दा है नहीं , फिर काहे की चिंता . पोस्टेज पर केवल पांच प्रतिशत का जी एस टी लगेगा , हम तो निहाल हो गए . अब दूर प्रदेश बैठी घर वाली को आराम से प्रेयसी की तरह प्रेम पत्र लिखेंगे और मेरी राधिका का मन मयूर नाच उठेगा . मैं लिखूंगा –
“ये मेरा प्रेम पत्र पढ़कर , के तुम नाराज ना होना ; कि तुम मेरी जिन्दगी हो , कि तुम मेरी बंदगी हो”
रसीदी टिकेट भी सस्ते होंगे . वाह क्या आनंद आयेगा ? अब खूब प्रोनोट लिखेंगे और कर्जा लेकर महंगा घी पीयेंगे . कर्जा तो आने वाली सरकारें माफ़ कर ही देंगी .
मनोरंजन के लिए ताश सस्ते , कैरम बोर्ड सस्ता और तो और शतरंजी चाल चलने के लिए चेस बोर्ड सस्ता .
एक मार्के की बात और बताऊँ गम भुलाने को शराब पर कोई जी एस टी नहीं . बादलों की एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में शाम को सावनी हवाओं में सुरा की हर घूँट गम में डूबे हर व्यक्ति को अपनी कल्पना के आगोश में ले जायेगी और वह जी एस टी के गुणगान करते हुए गा उठेगा –
“कहीं दूर जब दिन ढल जाये ,
साँझ की दुल्हन बदन चुराए , चुपके से आये ; मेरे ख्यालों के आँगन में ,
कोई सपनों के दीप जलाये , दीप जलाये .”
नत्थू शाह रंगीला चहक उठा -भई कोई माने या ना माने मैं तो मोगाम्बो की तरह खुश हुआ हूँ .
एक हरियाणवी सर्वे
पत्रकार कै बी खुजली की बिमारी होवे सै , उसपे डटा कोनी जान्दा . मैं बी पहोंच ग्या रलदू जाट धोरे, जी एस टी का सर्वे करण नै . रलदू बोल्या – आपां नै तो थारा जी एस टी सेधता कोनी . आपां ना तो गुड़ बणान्दे , सारा गन्ना मिल मैं जा पटकां सां .अर ना आप्पां कोई सर्विस (नौकरी ) करदे . के बिगाडैगा मेरा थारा यो जी एस टी ? जी एस टी तो गुड़ अर सर्विस पर ए तो लागु होगा .
मेरी सारी पत्रकारिता का ढारा सा बैठ ग्या . नत्थू शाह रंगीला खुश , रलदू जाट खुश , फेंकू खुश . जब मियां बीबी राजी , तो क्या करेगा अलगू काजी .

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