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पाकिस्तान के प्रति ट्रंप ने अपनाया कड़ा रुख, 1.6 अरब डॉलर की सहायता रोकी

अमेरिका की कमान संभालने के बाद से ही डोनाल्ड ट्रंप पाकिस्तान के प्रति कड़ा रुख अपनाए हुए हैं। इमरान खान के नेतृत्व में नई सरकार के वक्त में भी ट्रंप का रवैया बदला नहीं है और अमेरिका लगातार पाकिस्तान पर आर्थिक मदद रोकने की दिशा में काम कर रहा है।

नई दिल्ली: आर्थिक तंगी से जूझ रहे पाकिस्तान पर हर तरफ से संकट के बादल मंडराते दिख रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की सख्ती के बाद अब पाकिस्तान के सबसे बड़े मददगार कहे जाने अमेरिका ने भी आतंकिस्तान की ‘आर्थिक डोज’ बंद कर दी है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ऐलान के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली 1.66 बिलियन डॉलर की सहायता पर रोक लगा दी है। अमेरिका ने यह फैसला पाकिस्तान की ‘मदद’ करने वाले रवैये को देखते हुए उठाया है।

अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता कर्नल रॉब मैनिंग ने मंगलवार को ई-मेल के जरिए भेजे गए सवालों के जवाब में कहा, ‘पाकिस्तान को दी जाने वाली 1.66 अरब डॉलर की सुरक्षा सहायता रोक दी गई है।’ अमेरिका के इस निर्णय से पहले आईएमएफ ने भी पाकिस्तान को झटका दिया है। IMF ने पाकिस्तान को राहत पैकेज देने के लिए कुछ कड़ी शर्तें रखी हैं। बता दें कि यह राहत पैकेज पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को फिर से रास्ते पर लाने के लिए बेहद जरूरी है। आईएमएफ ने पाकिस्तान से चीन के साथ वित्तीय सहयोग समझौते की भी पूरी जानकारी मांगी है। जबकि पाकिस्तान और चीन दोनों ही इस समझौते की राशि का खुलासा नहीं कर रहे हैं।

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बीते रविवार को अपने ट्वीटों में पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाने पर उसे दी जाने वाली लाखों डॉलर की सैन्य सहायता को बंद करने के अपने प्रशासन के फैसले का बचाव किया था। ट्रंप ने अल-कायदा प्रमुख बिन लादेन को एबटाबाद में छिपने का ठिकाना देने के लिए भी इस्लामाबाद की आलोचना की थी। ट्रंप ने कहा था कि हम पाकिस्तान को हर साल अरबों डॉलर देते हैं। बिन लादेन पाकिस्तान में रह रहा था। उसने कोई मदद नहीं की, मैंने आर्थिक मदद देना इसलिए देना बंद कर दिया क्योंकि वो हमारे लिए कुछ नहीं करते।’ ट्रंप के इस रुख पर पाकिस्तान ने भी जवाब दिया। मंगलवार को पाकिस्तान ने एक वरिष्ठ अमेरिकी राजनयिक को तलब किया और ओसामा बिन लादेन पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए कड़ा विरोध दर्ज कराया और कहा कि ‘यह इतिहास का बंद हो चुका अध्याय है’ और इससे द्विपक्षीय संबंधों पर गंभीर असर पड़ सकता है।

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