राष्ट्रीय

फिल्म ‘मोदी का गांव’ रिलीज होने को तैयार

-फिल्म अस्पष्ट रूप से प्रधानमंत्री के विकास के एजेंडे से है प्रेरित

मुंबई : महीनों की जद्दोजहद के बाद आखिरकार सेंसर बोर्ड ने ‘मोदी का गांव’ अब रिलीज होने के लिए तैयार है। यह फिल्म अस्पष्ट रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकास के एजेंडे से प्रेरित है। सेंसर बोर्ड ने फिल्म के निर्माता सुरेश के झा को सूचित किया कि फिल्म को प्रदर्शित करने की अनुमति प्रदान की गई है। इस सूचना के बाद प्रसन्नचित झा ने कहा, “यह हमारे के लिए बड़ी जीत है। हमलोग अब दिसंबर के मध्य तक पूरे भारत में फिल्म का प्रदर्शन करने पर विचार कर रहे हैं।” फिल्म में मुंबई के व्यवसायी मुख्य पात्र मोदी की भूमिका में हैं। वहीं टेलीविजन कलाकार चंद्रमणि एम और जेबा ए ने अन्य महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 135 मिनट की इस फिल्म का निर्देशन तुषार ए गोयल ने किया है। दरअसल इसी साल फरवरी में सीबीएफसी के उस वक्त के चेरयमैन पहलाज निहलानी ने विविध मसलों को आधार बनाकर फिल्म को बोर्ड का प्रमाण पत्र देने से इनकार कर दिया था। उन्होंने झा को बोर्ड का प्रमाणपत्र से पहले पीएमओ और चुनाव आयोग से एनओसी प्राप्त करने को कहा था।

निहलानी ने फिल्म में मोदी से मिलते-जुलते किरदार की ओर से पाकिस्तान की तरफ से उड़ी पर हुए हमले के संदर्भ में प्रधानमंत्री के भाषण और ‘पप्पू’ बिहारी नाम का चरित्र आदि को लेकर फिल्म को मंजूरी देने में अपनी अनिच्छा जाहिर की थी। फिल्म के निर्माता ने पीएमओ को इस संबंध में पत्र लिखा था, लेकिन वहां से उनको कोई जवाब नहीं मिला। इसके बाद उन्होंने एफसीएटी का दरवाजा खटखटाया और सीबीएफसी के आदेश को वहां चुनौती दी। एफसीएटी ने 12 अक्टूबर को अपने आदेश कहा कि फिल्म को पीएमओ या निर्वाचन आयोग की ओर से एनओसी लेने की कोई जरूरत नहीं है। एफएसीटी ने कहा, “दोनों संदर्भो में प्रधानमंत्री या फिल्म में चित्रित चरित्र की बात का कोई कानूनी आधार नहीं है, इसलिए पीएमओ से एनओसी लेने की आवश्यकता नहीं है।,”एफसीएटी के आदेश के बाद फिल्म ‘मोदी का गांव’ सीबीएफसी के पास भेजी गई, जिसे बोर्ड ने अंतिम रूप ये अपनी हरी झंडी दे दी है। झा ने बताया कि फिल्म में स्वच्छ भारत अभियान, स्मार्ट इंडिया और डिजिटल इंडिया जैसी प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं का जिक्र किया गया है।

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