उत्तर प्रदेश

बंगालियों के लिए दुर्गा पूजा इसलिए होती हैं खास…

shasthiनई दिल्ली (7 अक्टूबर):वैसे तो देश में नवरात्रों का खास महत्व होता है, लेकिन बंगाल में षष्ठी से दशमी तक जो धूम मचती है वो देखने को बनती है। बंगाल के छोटे-छोटे जिलों में बंगाली अलग-अलग रंग में पूजा के हर दिन सेलेब्रेट करते हैं। मां के मंडप पर विराजमान होने के बाद से आराधना शुरू हो जाती है। नवरात्रि के हर दिन एक महत्व रखते हैं। पहले दिन से पंचमी तक मां को तैयार किया जाता है। षष्ठी के बाद से पूजा शुरू हो जाती है।

बंगालियों के लिए इन पांच दिन के खास महत्व…

महाषष्ठी:
षष्ठी को महाषष्ठी भी कहा जाता है। इस दिन बंगाली एक अलग अंदाज में नजर आते हैं। अगर हम पुराणों की बातें याद करें तो इसी दिन देवी दुर्गा इस धरती पर आती हैं। ढाक-ढोल के साथ उनका स्वागत किया जाता है। इसी दिन देवी दुर्गा का चेहरा खोला जाता है। अब तक उनके चेहरे को ढका रखा जाता है।

महासप्तमी:
इस दिन कोला बौ को पीली सिल्क की साड़ी से सजाया जाता है। पहले उसकी ही पूजा होती है। इस दिन भगवान गणेश की भी स्थापना होती है। कोला बौ को शुभ संदेश का प्रतीक कहा जाता है। इस दिन नौ तरह के पौधों की पूजा होती है, उन्हें नहलाया जाता है, इसे महास्नान कहते हैं।

महाअष्टमी:
अष्टमी इसलिए खास है, क्योंकि इस दिन बलि दी जाती है। जो लोग अष्टमी के दिन अंजलि देते हैं उन्हें सुबह-सुबह मंडप में जाकर पुष्पांजलि देनी होती है। लाल पाड़ की साड़ी पहनकर औरतें मां को प्रसन्न करती हैं। शादी-शुदा महिलाएं हाथ में शाखा और मांग में लंबा सिंदूर लगाकर अपने पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं।

दरअसल, आज के दिन महिषाशुर के दहन के रूप में मनाया जाता है। बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाया जाता है। कुछ कुछ गांव में आज भी बलि की प्रथा है, लेकिन ज्यादादर लोग मां की फूल और फल से ही पूजा करते हैं।

महानवमी:
नवमी यानी नौवां दिन। देश के हर कोने में हर शहर में हर कोई नवमी बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। नवमी का दिन सबसे खास होता है। संधी पूजा के बाद ही इस दिन की शुरुआत होती है। महाआरती के लिए लोग मंडप पर जाते हैं और मां की आराधना करते हैं। इस दिन कई लोग शाम को डांडिया के लिए जाते हैं तो कुछ लोग संगीत-डांस करके दिन का लुत्फ उठाते हैं।

महादशमी:
दशमी को पूजा खत्म हो जाती है। एक तरफ जहां मां के भक्तों की आंखे नम रहती हैं, दूसरी ओर विजया दशमी की खुशी घरों में होती है। खूब सारी मिठाईयां बनती है, लोग अपने वरिष्ठ जनों के घर जाकर उनका आशीर्वाद लेते हैं और शाम को सिंदूर खेला के साथ मां को विदाई देते हैं। सुहागन औरते एक दूसरे के साथ होली की तरह सिंदूर से खेलती हैं और मां को भी दुल्हन की तरह सजाया जाता है। जय मां दुर्गा की, जाच्छे कोथाई, नदीर धारे आसबे कोबे बछर परे। इस स्लोगन के साथ हर कोई मां को अलविदा कहता है।

 

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