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बीजेपी जैसा होने लगा कांग्रेस का पीके से रिश्ता, क्या टूटेगा?

एजेंसी/ kishoreनई दिल्ली। 2014 में नरेंद्र मोदी, 2015 में नीतीश कुमार को विजय दिलाने वाले चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर अब उत्तर प्रदेश और पंजाब में कांग्रेस पर अपना जादू चलाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन कांग्रेस के साथ पीके (प्रशांत किशोर) का अभी तक का सफर ढेर सारी रुकावटों से भरा हुआ है। पीके के लिए यह परेशानी राज्य के ही कुछ कांग्रेसी नेता बनकर आए हैं। कांग्रेस यूपी की सत्ता से पिछले 20 साल से बाहर है।

यूपी और पंजाब में कांग्रेसी नेताओं के विरोध के बीच, अगर प्रशांत की कार्यशैली पर चोट पहुंचती है तो वह पार्टी से अपनी राह अलग कर सकते हैं। प्रशांत के करीबियों ने यह जानकारी दी।

2014 में नरेंद्र मोदी, 2015 में नीतीश कुमार को विजय दिलाने वाले चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर अब उत्तर प्रदेश और पंजाब में कांग्रेस पर अपना जादू चलाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन …

 यूपी और पंजाब के मुश्किल हालात के बीच प्रशांत किशोर को कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पार्टी की जीत सुनिश्चित करने के लिए साथ लेकर आए थे। वह अभी तक यूपी में कांग्रेस के लिए पांच सूत्रीय प्लान बना भी चुके हैं, जिसका कांग्रेस के कुछ नेताओं ने विरोध किया है।

पीके ने राज्य में कांग्रेस को एक ब्राह्मण सीएम उम्मीदवार उतारने का सुझाव दिया था। उनके मुताबिक कांग्रेस राज्य के 13 फीसदी ब्राह्मण वोट को हासिल करने के लिए सबसे अनुकूल स्थिति में है। ब्राह्मण सीएम उम्मीदवार उतारकर वह मुस्लिम और राजपूत वोट भी हासिल कर सकती है। प्रशांत मानते हैं कि दलित मायावती की बीएसपी को कभी नहीं छोड़ेंगे इसलिए कांग्रेस के लिए दलितों तक पहुंच बनाने की कोशिश छोड़ देनी चाहिए।

प्रशांत ने प्रियंका और राहुल के लिए राज्य में प्रमुख भूमिका तय करने पर जोर दिया है। कैंडिडेट को लेकर प्रशांत का सुझाव था कि जिस नेता के पीछे 250 कार्यकर्ताओं की फौज हो उसे ही टिकट के योग्य माना जाए, प्रशांत के इस फॉर्मुले को भी कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है।

प्रशांत ने कांग्रेस में दूसरो को आगे न बढ़ने देने वाली नेताओं की छोटी मानसिकता से समन्वय स्थापित करने के लिए कई चीजें सीखीं। कांग्रेस के ही कई नेताओं ने राहुल गांधी और वरिष्ठ नेताओं के पास जाकर उनकी शिकायत की और कहा कि वह बाहरी हैं और पार्टी कार्यकर्ताओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का काम कर रहे हैं।

पार्टी ने कहा है कि प्रशांत का काम सिर्फ रणनीति तय करना और कैंपेन डिजायन करना है, न कि ये तय करना की संगठनात्मक मामले और टिकट वितरण किस तरह से होगा। सूत्र बता रहे हैं कि प्रशांत फ्री हैंड होकर उसी तरह काम करना चाहते हैं जैसा नीतीश ने उन्हें दिया था। कांग्रेस में कई नेता इस बात से चिंतित हैं कि जिस तरह नीतीश ने पीके को कैबिनेट रैंक दिया, कहीं राहुल भी उन्हें इसी तरह का सम्मान न दे दें। राजनीतिक विश्लेषकों में यह राय आम हो चली है।

पंजाब में पीके की एक और ‘लड़ाई’ कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ भी शुरू हो चुकी है। अमरिंदर राज्य में कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं। कांग्रेस जानती है कि आम आदमी पार्टी राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है और अकाली दल का ग्राफ तेजी से नीचे गिरा है। प्रशांत की स्टाइल अमरिंदर के करीबियों को भी अस्वीकार्य है। अमरिंदर एक मजबूत और जिद्दी सोच रखते हैं और वह शायद ही पीके की किसी राय पर अमल करें। अमरिंदर का हालिया बयान जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्हें किसी से सीखने की जरूरत नहीं है, पीके से भी नहीं… ।

प्रशांत ने 2014 चुनाव के वक्त कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर के ‘चायवाला’ बयान का फायदा उठाया था और ‘चाय पे चर्चा’ कार्यक्रम शुरू किया था, जो बेहद कामयाब रहा। बिहार चुनाव में मोदी के नीतीश पर दिए गए डीएनए वाले बयान को भी प्रशांत के दिमाग ने ही भुनाया, जिसके बाद बिहार भर में बिहारी अस्मिता के नाम पर वोटरों से बाल और नाखूनों के सैंपल इकट्ठा किए गए।

आखिर में, बीजेपी के भीतर प्रशांत को लेकर उठती नाराजगी ने उन्हें पार्टी से रास्ता अलग करने को मजबूर किया। अब यही हाला कांग्रेस के साथ उनके संबंधों का भी हो सकता है। पीके के करीबी सूत्र बताते हैं कि वह बाहर निकाले जाने का इंतजार करने की जगह खुद ही अलग हो जाना बेहतर समझेंगे। प्रशांत मानते हैं कि कांग्रेस यूपी चुनाव तभी जीत सकती है जब वह उनकी सलाह पर चले। लेकिन 150 साल पुरानी पार्टी एक ‘बाहरी’ को स्पेस देगी, यह कहना जरा मुश्किल है।

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