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मदन द्वादशी का व्रत रखने से मिलता है पुत्ररत्न

ज्योतिष : चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मदन द्वादशी है। इस दिन काम के देव कामदेव की पूजा की जाती है। मदन, कामदेव का ही नाम है और इस दिन कामदेव की आराधना की जाती है। इसलिए कामदेव की उपासना के कारण इस तिथि को मदन द्वादशी कहते हैं। मान्यता है कि इस दिन कामदेव की पूजा करने से समस्त पापों का नाश होता है और पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। इस व्रत के करने से मां को पुत्र के शोक से भी मुक्ति मिलती है और इसके साथ ही पुत्ररत्न की भी प्राप्ति होती है। मदन द्वादशी का व्रत 13 द्वादशी तक रखने का प्रावधान है इससे भक्त के सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है। कामदेव की पूजा करते हुए ‘रामय-कामाय’ मंत्र का जाप करना चाहिए। मान्यता है कि दैत्य माता दिति ने अपने पुत्रों की मृत्यु के बाद मदन द्वादशी का व्रत रख कर फिर से पुत्र रत्न की प्राप्ति की थी। मान्यता है कि एक बार देवताओं ने दैत्यकुल का संहार कर दिया। इस कारण दैत्य माता दिती को बहुत दुख हुआ। अपनी तकलीफों से मुक्ति पाने के लिए वह पृथ्वी लोक में स्यमन्त पंचक क्षेत्र में आकर सरस्वती नदी के तट पर अपने पति महर्षि कश्यप का आह्वान करते हुए कठोर तप करने लगीं। अपनी वृद्धावस्था के बावजूद पुत्रों के शोक से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने सौ सालों तक कठोर तप किया, लेकिन उनकी इच्छाएं पूर्ण नहीं हुई। दिति ने वशिष्ठ आदि ऋषियों से अपनी मनोकामना पूर्ण करने का उपाय पूछा।

ऋषियों ने उनको मदन द्वादशी व्रत की महिमा बता कर उसको करने के लिए कहा। दिती ने ऋषियों की आज्ञा के अनुसार ऐसा ही किया। तब उनके पति महर्षि कश्यप उसके सामने उपस्थित हुए। तब दिति ने कह की वे उसको एक ऐसा पुत्र चाहिए, जो इंद्र सहित समस्त देवताओं का विनाश कर सके महर्षि कश्यप ने उन्‍हें ऐसा पुत्र पाने के लिए आपस्तम्ब ऋषि के द्वारा पुत्रेष्टियज्ञ का अनुष्ठान करने के लिए कहा और फिर दिती को सौ सालों तक गर्भवती रह कर पुत्र जन्म का आर्शीवाद दिया। उन्होंने अपनी पत्नी दिती की इच्छा की पूर्ति के लिए उनको वृद्ध से युवती बना दिया और वर मांगने को कहा। तब दिती ने पूजा के लिए एक घड़े की स्थापना की। कलश में अक्षत, सफेद फूल, दो सफेद वस्त्र, विभिन्न खाद्य सामग्री और सोना रखा गया। घड़े के नजदीक ऋतुफल रखे गए और घड़े के ऊपर गुड़ से भरा तांबे का पात्र रखकर उसके ऊपर कदललीपत्र पर काम और रति को बनाकर उनकी विधि-विधान से पूजा की। दिती ने व्रत के दौरान सिर्फ एक समय भोजन किया और सिर्फ जमीन पर शयन किया। उसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर उनको घड़े के साथ दक्षिणा देकर मंत्रोच्चार किया।
प्रीयतामत्र भगवान् कामरूपी जनार्दनः|
ह्रदये सर्वभूतानां य आनन्दोअभिधीयते||
इंद्र दिती की तपस्या से भयभीत हो गया था इसलिए उसने सौ सालों से पहले ही दिती के गर्भ को नष्ट करने का प्रयास किया। देवराज इंद्र ने गर्भस्थ शिशुओं पर वज्र से प्रहार किये। वज्र के प्रहार से शिशुओं को अमरत्व प्राप्त हो गया और वह उनचास शिशुओं में बदल गए। वज्र के प्रहार से भी जब दिती के गर्भस्थ शिशुओं की मृत्यु नहीं हुई तो इंद्र को ध्यान से इस बात का पता चला कि मदन द्वादशी के व्रत से प्रभाव से शिशु अमर हो गए थे। इंद्र अपने कृत्य पर काफी शर्मिंदा हुए और उन्होंने दिती से क्षमा मांगी और उन उनचास शिशुओं को मरुद्गण की संज्ञा देते हुए और देवताओं के समान बतलाते हुए यज्ञों में उनके लिए उचित भाग की व्यवस्था की। उसके बाद इंद्र दिति के पुत्रों को विमान में बैठाकर अपने साथ स्वर्ग ले गए।

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