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माधवी मुद्गल ने ओडिसी गुरु केलुचरण महापात्र को जीवंत किया

नई दिल्ली| ओडिसी गुरु और नर्तक केलुचरण महापात्र की उदात्त प्रतिभा को माधवी मुद्गल के प्रदर्शन ने जीवंत कर दिया। माधवी मुद्गल ने यहां त्रिवेणी कला संगम में रजा फाउंडेशन के शास्त्रीय संगीत और नृत्य के महिमा महोत्सव के समापन पर अपने दिवंगत गुरु की कुछ कृतियों को प्रस्तुत कर शमां बांध दिया।

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‘भारतीय परंपरा में गुरु के योगदान और उनकी उपस्थिति को उजागर करने के लिए’ आयोजित दो दिवसीय महिमा महोत्सव का आयोजन आधुनिक भारतीय चित्रकार सैयद हैदर रजा की स्मृति में किया गया। इसका शुभारंभ उस्ताद शुजात खान के सितार वादन और कपिला वेणु के कूडियाट्टम प्रदर्शन के साथ किया गया था। ‘महिमा’ का समापन प्रख्यात गायक अश्विनी भिडे देशपांडे के हिंदुस्तानी खयाल गायन और नृत्यांगना माधवी मुद्गल के ओडिसी नृत्य के साथ हुआ।

मुद्गल को अपनी कोरियोग्राफी के ओडिसी नृत्य की संवदेनशीलता को पुनर्परिभाषित करने का श्रेय है। उन्होंने बुधवार शाम केलुचरण महापात्र कुछ की कृतियों को इस तरह से पेश किया मानो गुरु जीवंत हो उठे हों।

मुदगल ने कहा, “मैं इस महोत्सव के आयोजन के लिए अशोक वाजपेयी का शुक्रगुजार हूं जिन्होंने मुझे यहां ओडिसी के कुछ दुर्लभ रत्नों को पेश करने का मौका दिया। पिछले लगभग 10 वर्षो से नए या अधिक समकालीन कार्यो की मांग किये जाने के कारण इन क्लासिक्स को अंधकार में धकेल दिया गया था।”

मुदगल ने गुरु हरेकृष्ण बेहरा के सानिध्य में प्रशिक्षण लेना शुरू किया और मात्र 4 साल की उम्र में अपना पहला सार्वजनिक प्रदर्शन दिया। बाद में उन्होंने केलुचरण महापात्र से प्रशिक्षण लिया।

उनके गुरु, प्रख्यात नर्तक केलुचरण महापात्र को 1960 और 1970 के दशक में ओडिसी के पुनरुद्धार का श्रेय जाता है और उन्होंने नृत्य को प्रतिष्ठित ‘शास्त्रीय’ टैग प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

 अपने प्रदर्शन से पहले मुद्गल ने कहा, “1960 और 70 के दशक के दौरान, जब भरतनाट्यम और कथक अधिक लोकप्रिय थे, गुरुजी और उनकी शिष्य संजुक्ता पाणिग्रही ने भारत में और विदेशों में ओडिसी नृत्य का प्रदर्शन कर इसे लोकप्रिय बनाया। मैं बहुत भाग्यशाली थी जो 2004 में उनकी मौत तक उनके साथ रही।”

मुद्गल ने ‘पल्लवी’ का प्रदर्शन किया गया जिसे महापात्र ने खुद अपनी पत्नी लक्ष्मी महापात्र की मदद से कोरियोग्राफ किया था और इसका संगीत बुबनेश्वर मिश्र ने दिया था। इसके बाद एक ‘अष्टपदी’ प्रस्तुत किया।

मुद्गल के प्रदर्शन से पहले डॉ. अश्विनी भिडे देशपांडे ने एक भावप्रवण खयाल गायन किया जिसे उन्होंने दो टुकड़ों में प्रस्तुत किया। दो बंदिश के साथ रात के राग के साथ इसका समापन किया गया।

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