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समलैंगिकता अपराध बना रहेगा या नहीं? सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई आज

download (7)दस्तक टाइम्स एजेन्सी/नई दिल्ली: समलैंगिकता को IPC की धारा 377 के तहत अपराध की श्रेणी से हटाया जाएगा या यह अपराध बना रहेगा? इस मामले में क्यूरेटिव पिटीशन पर सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों की पीठ आज (मंगलवार को) अहम सुनवाई करेगी। हालांकि दो साल पहले 2014 में ही सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए तैयार हो गया था। इस मामले में यह आखिरी कानूनी उपचार है।

कौन करेगा सुनवाई
इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के तीन वरिष्ठ जज चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर, जस्टिस एआर दवे और जस्टिस जगदीश सिंह खेहर करेंगे। हालांकि क्यूरेटिव पिटीशन की सुनवाई चेंबर में होती है लेकिन इसकी सुनवाई खुली अदालत में होगी। वैसे सुप्रीम कोर्ट नियमों के मुताबिक क्यूरेटिव की सुनवाई के लिए तीन वरिष्ठ जजों के अलावा फैसला देने वाले जज होने चाहिए लेकिन फैसला देने वाले दोनों जज जस्टिस जीएस सिंघवी और जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय रिटायर हो चुके हैं।

मामले में क्या हुआ था
इस मामले में 2009 में दिल्ली हाईकोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटाने का फैसला दिया था। लेकिन फैसले को केंद्र सरकार ने चुनौती दी और सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2013 में हाईकोर्ट के आदेश को पलटते हुए समलैंगिकता को IPC की धारा 377 के तहत अपराध बरकरार रखा।  दो जजों की बेंच ने इस फैसले पर दाखिल पुनर्विचार याचिका भी खारिज कर दी थी।

चार जजों ने दी थी इजाजत
23 अप्रैल 2014 को चार जजों तत्कालीन चीफ जस्टिस पी सथाशिवम, जस्टिस आरएम लोढा, जस्टिस एचएल दत्तू और जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की बेंच ने क्यूरेटिव पिटीशन पर खुली अदालत में सुनवाई करने का फैसला दिया था। लेकिन यह चारों जज भी रिटायर हो चुके हैं।

क्या हो सकता है
मामले में नाज फाउंडेशन, श्याम बेनेगल और समलैंगिकों के संगठन की आठ याचिकाओं पर होनी है सुनवाई। सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों की पीठ केंद्र सरकार और याचिकाकर्ता को नोटिस जारी कर पूछ सकती है कि इस मसले पर उनका क्या रुख है।  कोर्ट कुछ कानूनी पहलुओं और वर्तमान हालात पर सवाल उठा सकता है। यानी वह इस मामले में आगे सुनवाई कर सकता है। कोर्ट इस क्यूरेटिव पैटिशन को खारिज भी कर सकता है, जिसके बाद सारे कानूनी रास्ते बंद हो जाएंगे।

क्या है बड़ा आधार
वैसे 2013 में ही सुप्रीम कोर्ट की दूसरी बेंच ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए ट्रांसजेंडर को तीसरी केटेगरी में शामिल कर उन्हें ओबीसी केटेगरी में आरक्षण और दूसरी सुविधाएं देने के आदेश दिए थे। हालांकि बेंच ने समलैंगिकता के आदेश पर कोई टिप्पणी नहीं की थी।

 

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