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ट्रॉमा सेंटर अग्निकांड: 6 सदस्यीय कमेटी करेगी जांच


लखनऊ: केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर में हुए अग्निकांड मामले की जांच के आदेश दे दिए गए हैं। केजीएमयू प्रशासन ने छह सदस्यीय जांच कमेटी गठित की है। यह कमेटी जांच करेगी कि आखिर बार-बार अग्निकांड के पीछे क्या वजह है।

बुधवार देर रात ट्रॉमा सेंटर के दूसरे तल पर आग लग गई थी। जिसके बाद फानन-फानन तीन तल से मरीजों को बाहर निकाला गया था। लिफ्ट से आग फॉल सीलिंग तक पहुंच गई थी। कड़ी मशक्कत के बाद फायर विभाग ने आग पर काबू पाया था। रात करीब तीन बजे तक मरीजों को दोबारा ट्रॉमा में शिफ्ट किया गया। शुरूआती जांच में ही स्पष्ट हो गया था कि यह कोई हादसा नहीं बल्कि जानबूझ आग लगायी गई थी। इससे पहले भी कई बार यहां आग लग चुकी है।

केजीएमयू प्रवक्ता डॉ. सुधीर सिंह ने बताया कि अग्निकांड की जांच के लिए छह सदस्यीय जांच कमेटी बनाई गई है। चीफ प्राक्टर डॉ. आरएएस कुशवाहा के निर्देशन में जांच कमेटी गठित की गई है। इसमें ट्रॉमा सीएमएस डॉ. संतोष कुमार, डॉ. अब्बास अली मेंहदी, ट्रॉमा सीएमओ, मुख्य शमन अधिकारी को नामित किया गया है। जांच कब पूरी होगी। इसका जिक्र नहीं किया गया है।

बात दें कि ट्रॉमा के दूसरे तल पर दोबारा आग लगना किसी साजिश की ओर इशारा कर रही है। इस तल पर दवा स्टोर है। अहम दस्तावेज भी यहीं रखे रहते हैं। पिछली बार आग लगने से करीब 56 लाख रुपये का नुकसान हुआ था। बुधवार की देर रात आग लगने पर फायर अलार्म फिर से नहीं बजा। भीषण धुंआ भरने के बावजूद फायर अलार्म खामोश रहे। ऐसा तब है जब केजीएमयू प्रशासन फायर फाइटिंग सिस्टम स्थापित करने पर करीब 15 करोड़ रुपये फूंक चुका है। इसके बावजूद आग लगने की दशा में आग बुझाने की बात तो दूर सूचना तक नहीं मिल पाई।

ट्रॉमा सेंटर में करीब 400 बेड हैं। यहां गंभीर मरीजों का इलाज होता है। इसके बावजूद ट्रॉमा सेंटर में आग से बचाव के इंतजाम पुख्ता नहीं है। अफसरों की लापरवाही से आग से बचाव के इंतजाम की पुख्ता व्यवस्था नहीं हो पा रही है। बीती रात दूसरे तल पर लगी आग के बाद इंतजामों के दावों की पोल खुल गई। 15 जुलाई 2017 को ट्रॉमा के दूसरे तल पर आग लगी थी। बड़ी संख्या में मरीजों को दूसरे विभागों में शिफट किया गया था। इस दौरान पांच मरीजों की जान चली गई थी। तब मंडलायुक्त ने मामले की जांच की थी। जांच में पांच इंजीनियर व फार्मासिस्ट की लापरवाही उजागर हुई थी। इन्हें निलंबित कर दिया गया था।

जबकि 15 जुलाई 2017 को ट्रॉमा सेंटर के दूसरे तल पर लगी आग के बाद बड़े पैमाने पर मरम्मत का काम कराया गया था। मंडलायुक्त ने अपनी जांच रिपोर्ट में ट्रॉमा सेंटर के निर्माण पर सवाल उठाए थे। रैंप व फायर फाइटिंग सिस्टम न होने पर सवाल खड़े किए थे। साथ ही 21 बिन्दुओं पर सुझाव दिए थे। ढाई साल बाद सुझाव पर अमल नहीं हुआ।

हालात यह है कि अब ट्रॉमा सेंटर में रैंप का निर्माण कराया जा रहा है। इसी दौरान तत्कालीन डिप्टी रजिस्ट्रार के कमरे में आग लग गई थी। उसके बाद आग से निपटने के पुख्ता इंतजाम करने के दावे किए गए। हालात यह हैं कि 15 करोड़ रुपये खर्च के बावजूद स्थिति जस की तस है। लंबी जद्दोजहद के बाद फायर हाइड्रेंट तो बन गया लेकिन उससे आने वाला पानी के पाइप लाइन सभी भवनों तक नहीं जोड़े गए।

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