आजाद भारत में जब बिना संविधान के 29 महीने तक चला देश
देश आज आजादी की 70वीं वर्षगांठ मना रहा है. अंग्रेजों के खिलाफ चले आजादी के संघर्ष के बाद 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ था. लेकिन देश का अपना संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ था. ये रोचक है कि कैसे इन 29 महीनों तक देश का शासन चला. जबकि आजाद होने के बाद कोई भी देश खुद का शासन चाहता है. हम बताते हैं कि कैसे इन 29 महीनों तक देश का शासन चला.
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15 अगस्त 1947 को आजादी हासिल करने के वक्त देश के पास अपना संविधान नहीं था और ना ही एक दिन में संविधान बनाया जा सकता था. संविधान सभा का गठन किया गया लेकिन तब तक के लिए इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट-1947 को प्रभाव में लाया गया और इसके तहत देश को चलाने का फैसला हुआ. इसमें ब्रिटिश संसद द्वारा पारित Government of India Act 1935 को इस्तेमाल में लाने की व्यवस्था की गई. ये ब्रिटिश संसद में पारित सबसे बड़े कानूनी दस्तावेजों में एक था. इसे तत्कालीक तौर पर संविधान की जगह इस्तेमाल करने का फैसला किया गया.
2 वर्ष में बना देश का संविधान
आजादी के बाद देश के संविधान के लिए संविधान सभा का गठन किया गया. इस सभा ने अपना काम 9 दिसम्बर 1947 से शुरू किया. संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे. जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर, सरदार वल्लभभाई पटेल, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे.
अनुसूचित वर्गों से 30 से ज्यादा सदस्य इस सभा में शामिल थे. सच्चिदानन्द सिन्हा इस सभा के प्रथम सभापति थे. किन्तु बाद में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को सभापति निर्वाचित किया गया. बाबासाहेब डॉ. भीमराव राव अंबेडकर को ड्राफ्ट कमेटी का अध्यक्ष चुना गया था. संविधान सभा ने 2 साल, 11 माह 18 दिन में 166 दिन बैठक की और देश के संविधान को तैयार किया. इसकी बैठकों में प्रेस और जनता को हिस्सा लेने की स्वतन्त्रता थी.
गवर्नर जनरल के पद को क्यों बरकरार रखा गया
आजाद देश में राष्ट्रपति की जगह ब्रिटिश व्यवस्था वाले गवर्नर जनरल के पद को तत्कालिक तौर पर बनाए रखा गया लेकिन राष्ट्रपति के समान अधिकार नहीं सौंपे गए. लार्ड माउंटबेटन को गवर्नर जनरल पद पर बरकरार रखा गया और जून 1948 में जब लार्ड माउंटबेटन ने पद छोड़ा तो सी राजगोपालाचारी को इस पद पर लाया गया. वे पहले और आखिरी भारतीय गवर्नर जनरल थे. 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के बाद गवर्नर जनरल का पद खत्म कर सर्वोच्च सत्ता राष्ट्पति के हाथों में निहित कर दी गई.
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किन ब्रिटिश व्यवस्थाओं को बरकरार रखा गया
आजादी से पहले 1946 में कैबिनेट मिशन के बाद विधानसभा का गठन किया गया था. इसके जरिए ब्रिटिश भारत में शासन की व्यवस्था को आगे बढ़ाया गया. नेहरू को अंतरिम प्रधानमंत्री चुना गया. भारत में शासन चलाने के लिए 1860 के इंडियन पैनल कोड जैसे कानूनों को लागू किया गया. ये तय हुआ कि वर्तमान व्यवस्था के अनुसार ब्रिटिश शासन द्वारा स्थापित सिविल सर्वेंट और सशस्त्र बलों को जारी रखा जाएगा.
पाकिस्तान और भारत की व्यवस्था में बुनियादी अंतर
इन सब अंतरिम व्यवस्थाओं के मुताबिक भारत आजादी की तरफ तो बढ़ा ही लेकिन किसी हिंसक संघर्ष के जरिए नहीं बल्कि अपनी मांग को लेकर शांतिपूर्ण विरोध और व्यवस्था के हस्तांतरण के जरिए. 15 अगस्त 1947 को आधी रात को जब सत्ता का हस्तांतरण हो रहा था तो भारत एक लोकतांत्रिक देश के रूप में नई शुरूआत कर रहा था. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की इन्हीं बुनियादी बातों ने भारत को जहां एक लोकतांत्रिक देश बनाए रका वहीं विभाजित होकर साथ ही बने पाकिस्तान में लोकतंत्र की जड़े कमजोर होती गईं.