निचली अदालतों में जजों की नियुक्ति पर निर्देशों की अनदेखी
नई दिल्ली : सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा था कि न्यायिक और कानूनी सेवाओं का उद्देश्य समाज की सेवा करना है। वादी को अगर लंबे समय तक न्याय की प्रतीक्षा करनी पड़े, यह उद्देश्य पूरा नहीं होता। लोगों को त्वरित न्याय उपलब्ध नहीं करा पाने की एक प्रमुख वजह निचली न्यायपालिका में न्यायाधीशों और अधिकारियों की कमी है। निचली अदालतों में ये पद लंबे समय से खाली हैं। हाल में, दिल्ली स्थित विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी ने अपने एक अध्ययन में पाया कि अधिकांश राज्य न्यायाधीशों की नियुक्ति में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों को नहीं मान रहे हैं। अध्ययन के अनुसार राज्यों के न्यायालयों में लगभग 2.5 करोड़ मामले लंबित हैं। निचली न्यायपालिका में लगभग तीन फीसदी पद खाली हैं। राज्यों में सिविल जज (जूनियर डिविजन) की त्रिस्तरीय चयन की औसत अवधि 326.7 दिन है। यह औसत 18 राज्यों में पिछले दस सालों की अवधि में निकाला गया है। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए थे कि सिविल जज के चयन की औसत अवधि 273 दिन होनी चाहिए। जिन राज्यों में द्विस्तरीय चयन प्रणाली है, वहां न्यायाधीशों की नियुक्ति में औसतन 196.3 दिन का समय लगता है। द्विस्तरीय चयन प्रणाली में भी सुप्रीम कोर्ट ने 153 दिन की औसत समयसीमा तय की थी।
इसी साल कानून मंत्रालय से सर्वोच्च न्यायालुय के जनरल सेक्रटरी को भेजे गए एक पत्र पर स्वतः संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस पीआईएल पर सुनवाई शुरू की थी। इस पत्र में पूरे देश में निचले स्तर पर जजों की नियुक्ति के लिए केंद्रीय व्यवस्था का सुझाव दिया गया था। अध्ययन में कहा गया कि जजों की नियुक्ति के लिए समय पर परीक्षाएं आयोजित नहीं की जाती हैं। विधि सेंटर की यह अध्ययन सन 2007 से सन 2017 के बीच राज्यों के हाईकोर्ट और पब्लिक सर्विस कमीशन के डेटा पर आधारित हैं। 20 राज्यों के इस डाटा में यह खुलासा हुआ है कि सिविज जज (जूनियर डिविजन-डायरेक्ट रिक्रूटमेंट) के मामले में अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और पंजाब टॉप पर हैं, जबकि जम्मू-कश्मीर, मणिपुर और दिल्ली सबसे निचले पायदान पर हैं। वहीं, जिला जज (डायरेक्ट रिक्रूटमेंट) के 15 राज्यों के डेटा के मुताबिक तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल सबसे आगे हैं जबकि असम और बिहार इसमें सबसे पीछे हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत त्वरित सुनवाई और न्याय जरूरी है। भले ही आधारभूत ढांचे में कमी हो, लेकिन इस संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। अदालत के पास यह अधिकार है कि वह जांच व्यवस्था, नए कोर्ट के गठन, नए कोर्ट हाउसों के निर्माण, कोर्ट को अधिक स्टाफ और साजोसामान उपलब्ध कराने और त्वरित सुनवाई के लिए अतिरिक्त न्यायाधीशों की नियुक्ति को बढ़ावा दे।