अद्धयात्म
अध्यात्म के इस रहस्य से खुद में करें भगवान के दर्शन
कहा जाता है कि जीवन का दूसरा नाम ही अध्यात्म है। लोकतान्त्रिक व्यवस्था में जैसे मुख्य सिद्धांत है- जनता के लिए, जनता के द्वारा, जनता का शासन ठीक उसी प्रकार अध्यात्म व्यवस्था के लिए स्वयं के द्वारा, स्वयं का अनुशासन होता है।
व्यक्ति स्वयं पर अनुशासन कर लेता है तो उसे नि:संदेह आत्मानुभूति होती है। यह जागृत आत्मानुभूति ही अध्यात्म है। इस अनुभूति से व्यक्ति की चेतना अविकार एवं आनन्दमय बनती है।
आज के दौर में अध्यात्म परम्परा को पुन: जागृत कर व्यक्ति जीवन में अध्यात्म साधना की अनुभूति करें, तभी जीवन में अमूल्य निधि का वरण किया जा सकता है।
आत्मसाक्षात का जरिया
मनुष्य जीवन में विभिन्न द्वंद्व व्याप्त हैं। इन द्वंद्वों से मुक्त होने का एकमात्र रास्ता अध्यात्म ही है। अध्यात्म की शरण में जाए बिना व्यक्ति जीवन में फैले अंधकार और अनैतिकता के द्वंद्व को नहीं मिटा सकता।
अध्यात्म का शतांश पालन करने वाला व्यक्ति भी जीवन में मुक्ति का मार्ग खोज सकता है। नीतिहीनता के घोर अंधेरे में अध्यात्म ही ऐसा दीपक है जिसके सहारे जीवन के पथ को आलोकित किया जा सकता है।
अध्यात्म का पर्याय अनुशासन है। अनुशासन के बिना न तो साधना के क्षेत्र में प्रवेश किया जा सकता है ओर न ही जीवन में व्याप्त समस्याओं का समाधान खोजा जा सकता है। जीवन की जटिल से जटिल समस्याओं का समाधान अध्यात्म में निहित है।
अध्यात्म के गूढ रहस्यों को समझकर ही व्यक्ति आत्म साक्षात्कार कर सकता है। अध्यात्म साधना के बिना साधक की सभ्यता, कला, ज्ञान आदि विकसित नहीं हो सकते।
अध्यात्म के अभाव में इन सबमें विकास की संभावना नहीं की जा सकती। साधक जीवन में अध्यात्म के सोपान को छूने, इसके लिए आवश्यक है सत्य और अहिंसा का पालन। बिना सत्य और अहिंसा के अध्यात्म के शिखर पर नहीं पहुंचा जा सकता।
कोई भी व्यक्ति अध्यात्म को विस्मृत कर विकास के सोपान नहीं छू सकता। अध्यात्म का प्रयोग करके ही व्यक्ति अपने जीवन में व्याप्त वृतियों को शांत कर सकता है। अध्यात्म के बल पर ही व्यक्ति अपनी कार्यक्षमता का विकास कर सकता है।