दस्तक-विशेष

प्रसंग एक राजनैतिक हैरत का है !!

के. विक्रम राव

स्तंभ: आखिर गत आठ वर्षों से हिन्दुवादी (मोदी की) भारत सरकार गैर—हिन्दू बहुल नौ राज्यों में हिन्दुओं को अल्पसंख्यक क्यों घोषित नहीं कर रही है? संविधान की धारा 29 तथा 30 यह अधिकार केन्द्र सरकार को देती है। कल (18 जुलाई 2022) सर्वोच्च न्यायालय में यह मुद्दा गूंजा था। मथुरावासी देवकीनन्दन ठाकुर की याचिका पर तीन—जजवाली खण्डपीठ विचार कर रही थी। इसमें अध्यक्ष न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित थे। वे केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के अधिवक्ता रह चुके हैं। कन्नडभाषी न्यायमूर्ति श्रीपति रवीन्द्र भट्ट (अमेरिका में​ शिक्षित), और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया थे। धूलियाजी उत्तराखण्ड हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति थे तथा गुवाहाटी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे। उनके पिता न्यायमूर्ति केशवचन्द धूलिया इलाहाबाद हाईकोर्ट में थे।

उनके पितामह गांधीवादी श्री भैरवदत्त धूलिया 1942 के”भारत छोड़ो” आन्दोलन में तीन वर्ष जेल में रहे थे। इस खण्डपीठ का यह प्रश्न था कि सिख—बहुल पंजाब में खालसा कॉलेज को अल्पसंख्यक संस्था नामित करना न्याय को विकृत करना होगा। मसलन स्वामी दयानंद के नामवाले डीएवी कॉलेज को सम्पूर्ण राष्ट्र में अल्पसंख्यक नहीं करार दिया जा सकता है। पर पंजाब आदि हिन्दू अल्पसंख्यक राज्यों में अवश्य। याचिका में निगदित था कि हिन्दुओं को नौ राज्यों में अल्पसंख्यक क्यों नहीं घोषित किया गया? हिन्दुओं की आबादी इनमें केवल चार प्रतिशत कश्मीर में, 38.5 प्रतिशत पंजाब में, एक प्रतिशत लद्दाख में, 2.8 प्रतिशत मिजोरम में, 8.7 प्रतिशत नागालैंड में, 11.5 प्रतिशत मेघालय में, और 29 प्रतिशत अरुणाचल में है।

सर्वोच्च न्यायालय के 2002 में दिया गया (टीएमए पई वाले मुकदमें में) एक निर्णय था। इसी संदर्भ में कहा गया कि हिन्दू—बहुल महाराष्ट्र सरकार ने यहूदियों को अल्पसंख्यक करार दिया है। कर्नाटक में उर्दू, तेलुगु, तमिल, मलयालम तथा मराठी को अल्पसंख्यकों की भाषा करार दिया गया हे। बौद्ध, जैन, मुस्लिम, ईसाई, सिख, पारसी को धार्मिक अल्पसंख्यक घोषित किया गया है। इस बीच केरल में हिन्दू आबादी घटकर 54.73 प्रतिशत पर आ गयी। मुसलमान बढ़े हैं। पश्चिम बंगाल में हिन्दू आबादी 1951 में 78.45 प्रतिशत थी। अब 70.54 है।

जबकि मुर्शीदाबाद अब पूर्णत: मुस्लिम बहुल हो गया है। वहां 1951 में 55.24 प्रतिशत था, अब 2011 में बढ़कर 66.27 प्रतिशत हो गया है। उत्तर प्रदेश में मुस्लिम जनसंख्या बढ़ी है। चिन्ताजनक तो असम राज्य हे। यहां मुस्लिम आबादी केवल पांच प्रतिशत हुआ करती थी। गत 2011 की जनगणना में 41.95 प्रतिशत हो गयी। गुवाहाटी हाईकोर्ट के एक मुख्य न्यायधीश ने कहा भी था कि जनसंख्या में विकृति के कारण एक दिन आयेगा जब एक बांग्लादेशी मुसलमान राज्य का मुख्यमंत्री बन जायेगा।

इसी प्रकार की जनहित याचिका मार्च (27 मार्च 2022) को अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने पेश की थी। उच्चतम न्यायालय न्यायमूर्ति द्वय संजय कृष्ण कौल तथा एमएम सुन्दरेश की खण्डपीठ ने भी इसी मसले पर सुनवाई की थी। सरकारी वकील तुषार मेहता ने बताया कि इन राज्यों तथा केन्द्र—शासित प्रदेशों में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं। अत: प्रश्न उठता है कि हिन्दुओं को कानूनन अल्पसंख्यक घोषित करने में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार को क्यों और कैसी झिझक, असमंजस, दुविधा, संकोच, हिचक, पसोपेश, ऊहापोह, कशमकश, तर्क—वितर्क, उधेड़बुन, शशोपंज, आगापीछा, अन्तरद्वंद, किंकर्तव्य—विमूढपन हो रहा है ?

संसद में भाजपा का अपार बहुमत है। उन्हें पीड़ित, व्यथित हिन्दू बहुजन को नैसर्गिक न्याय देना होगा। पिछली सुनवाईयों में जब तर्क और फैसले की बेला आयी थी तो प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई तभी रिटायर हो गये थे। राज्यसभा में नामित हो गये। मुकदमें में प्रगति नहीं हुयी। फिर आये अगले प्रधान न्यायधीश शरद अरविन्द बोबडे। उन्होंने बिना कारण बताये ही याचिका निरस्त कर दी थी। मगर मसला जीवंत ही रहा। आखिर भारत में बहुसंख्यक हिन्दुओं को न्याय से वंचित कब तक रखा जायेगा ? भारत में हिन्दुधर्म सबसे बड़ी आस्था है। नरेन्द्र दामोदरदास मोदी को सुनना चाहिये।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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