दस्तक-विशेष

एक ऐसी भी है प्रथम नागरिक !!

के. विक्रम राव

स्तंभ: आज प्रात: (25 जुलाई 2022) जब द्रौपदी मुर्मू राजघाट पर राष्ट्रपतिा की समाधि पर माथा टेकने गयीं थीं तो उनके दिल में कैसे बुलबुले उभर रहे होंगे? नरेन्द्र मोदी की भांति आजाद भारत में जन्मी इस जनजाति नारी ने इसे अपने शपथ ग्रहण समारोह पर राष्ट्र के नाम संबोधन में वाणी दी। उनके शब्द थे : ”यह भारत के गरीबों की उपलब्धि है।” वह बात जो 77 साल पूर्व राष्ट्रपिता ने बताया थी। अत्योदयवाली। मगर उनके निष्ठावान अनुयायियों ने सत्तासीन होते ही विसरा दी। मगर इस पन्द्रहवीं राष्ट्रपति ने अपनी इच्छा शक्ति जता दी। संकल्प जाहिर कर दिया। कुनबापरस्ती से ग्रसित भारत में वे स्वजनों से दूर रहेंगी। सभागार में अगली सोचें पर सोनिया गांधी विराजमान थीं।

संदर्भ है कि राजधानी की मीडिया में चर्चित खबर रही कि उनका परिधान कैसा होगा? कल उनके भ्राता तरणीसेन टूडू ने मीडिया को बता दिया था कि द्रौपदी मूर्मू नीले बार्डरवाली सफेद साड़ी पर पक्षी, फूल, पत्ते आदि चित्रित रहने वाली, धारण करेंगी। द्रौपदी मुर्मू साड़ी बिना छाप—छपाई वाली धोती पहनेंगी। मगर अपने आत्मीयजनों से नये राष्ट्रपति का नातावास्ता ज्यादा दृढ हुआ है। चौंसठ वर्षीय द्रौपदी मुर्मू ने अपने जन्मस्थल रायरंगपुर से 54 अतिथियों को विशेष आमंत्रित किया। उनके गांव उपड़ाखेड़ा में इन्हीं स्वजनों ने दैत्याकार टीवी लगाकर राष्ट्रपति भवन में विशाल दरबार हाल से सजीव प्रदर्शन कराया। दिन भर तक भण्डारा होता रहा।

एक विशेष दृश्य यह था कि द्रौपदी मुर्मू ब्रहमकुमारी संगठन से वर्षों से संबंधित हैं। जब से उनके पति तथा दो दो पुत्रों का निधन हुआ, द्रौपदी मुर्मू ने राजयोग को विशेषतौर अभ्यास किया। शपथग्रहण के अवसर पर मीडिया संयोजक ब्रहमकुमारी नथमलजी तथा ब्रहमकुमारी आशाबहन शामिल हुयी थीं। दो बेटे और पति को खोने के बाद द्रौपदी मुर्मू अब डेढ सौ करोड़ की मां बनेंगी, अपनी एक बेटी को मिलाकर। जो महिला केवल चाकू से तस्करी काटती रही अब इक्कीस तोपों की सलामी मिली। वह महिला जो गांधीवादी अहिंसावादी, शांतिप्रिय रही, अब तीनों सैन्यबलों (थल, जल, नभ) की सर्वोच्च कमांडर बन गयीं। मगर उनकी आस्था वही ”ओम शान्ति” में है। यह सूत्र उन्होंने पारिवारिक दुर्घटनाओं के बाद ब्रह्मकुमारी चिन्तन से पाया। अपने राजयोग अभ्यास तथा चिंतन केन्द्र घर पर ही निर्मित किया था। अभतक जल, जंगल और जमीन से जुड़ी द्रौपदी मुर्मू अब अपने नये 350—कमरे वाले 330 एकड़ चूकि पर निर्मित 90—वर्ष पुराने राष्ट्रपति भवन की ज्यामिति ही बदल डालेंगी। क्रूर लार्ड एडबर्ड इर्विन (1931) से ऐय्याश लुई माउन्टबेटन (1947) तक के इस भवन को द्रौपदी अब सात्विक बनायेगी। याद रहे भारत का हिंसक विभाजन कर इसी माउंटबेटन और पत्नी एडविन ने लाखों को मौत दिलवाया था। प्रारब्ध था कि आयरलैण्ड के स्वाधीनता ने 79—वर्षीय माउन्टबेटन की नौका में बम लगाकर उसकी (27 अप्रैल 1979) इहलीला समाप्त कर दी थी।

द्रौपदी मुर्मू की तत्कालिक चुनौती होगी कि अवैध खनन के कारण आदिवासी जन को जो विपदा से जूझना पड़ रहा है उसका निवारण कैसे हो ? वनधन विभाग तथा अन्य केन्द्रों को क्रियाशील बनाने का लक्ष्य हासिल करना होगा। द्रौपदी मुर्मू के चुनावी प्रतिभागिता से दो पहलू उजागर हुये है। ऐतिहासिक परिवेश में उनकी भी समीक्षा होनी चाहिये। पहली है उनकी समता प्रथम महिला राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल से की जाती है। वे प्रथम महिला राष्ट्रपति रहीं (25 जुलाई 2007 से 2012) तक। वस्तुत: यह दोनों महिलायें हर दृष्टि से असमान रहीं। प्रतिभा पाटिल पेशेवर राजनेता रही। फैनन और आकर्षण में कॉलेज ”कबीना” (1962) रह चुकी प्रतिभा वकील थी, सोनिया गांधी की निकट रहीं। उनके प्रतिद्वंदी रहे उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत। प्रतिभा पाटिल चीनी मिल कर्ज घोटाला, भूमि घपला, इंजीनियरिंग कॉलेज फण्ड में गड़बड़ी इत्यादि में उनकी संलिप्तता पायी गयी थी। द्रौपदी मुर्मू ऐसा किसी में काण्ड से कोसो दूर रहीं।

द्रौपदी मुर्मू पर उनके जनजाति महिला होने पर राजनीतिक दक्षता और प्रशासनिक क्षमता पर गेरभाजपायी राजनेताओं ने लांछन लगाये थे। यह स्तरहीन रहे और भद्दे तथा अतार्किक रहे। मसलन प्रतिद्वंदी यशवंत सिन्हा ने कहा था कि द्रौपदीबहन मात्र रबड़ स्टाम्प रहेंगी। यह बहुत बेतुका, भद्दा और आधारहीन आरोप है। यशवंत सिन्हा आईएएस नौकरशाह रहे। जनान्दोलन से कभी भी जुड़े नहीं रहे। इस 85—वर्षीय यशवंत सिन्हा को भलीभांति याद होगा कि इंदिरा गांधी के राजकाल में कौन राष्ट्रपति कठपुतली नहीं था ! याद कीजिये कीव (यूक्रेन) के गुसलखाने में तेल मालिश कराने राष्ट्रपति वीवी गिरी ने दिल्ली पांच हजार किलोमीटर नहाते यह निर्णय ले लिया था कि लखनऊ में संयुक्त विधायक नारायण सिंह की सरकार को बर्खास्त कर दिया जाये। सर्वथा फख्रुद्दीन अली अहमद ने आधी रात को उनीन्दा स्थिति में इंदिरा गांधी के आदेश पर हस्ताक्षर कर दिये थे कि एमर्जेंसी थोप दिया जाये। और सत्रह माह तानाशाही लाद दी गयी। सरदार जैल सिंह जी केवल दर्जा चार तक शिखित रहे ने मशहूर बात कहीं थी : ”यदि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी कहेंगी तो मैं राष्ट्रपति भवन में झाड़ू लगा दूंगा।” बाद में यही जैल सिंह अवैधानिक तरीके से राजीव गांधी की सरकार को बर्खास्त करने वाले थे। सद्बुद्धि आ गयी और राष्ट्र को संकट में धकेलने के गुनाह से बच गये। फिलहाल अब राष्ट्रपति भवन में नया दौर, नया युग प्रारम्भ हुआ हे। द्रौपदी मुर्मू की पारी की इतिहास को प्रतीक्षा रहेगी।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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