देर से ही सही, नंदी के होकर ही रहेंगे आदि विशेश्वरनाथ
फैसले में वर्शिप एक्ट की बांधा खत्म होने के बाद ज्ञानवापी में मिले एक-दो नहीं, बल्कि नंदी, स्वास्तिक, कमल, देवी-देवताओं की नक्काशी समेत कई साक्ष्यों के मिलने के दावे से अब यह साफ हो गया है देर से ही लेकिन हजारों से साल से नंदी से बिछड़े बाबा आदि विशेश्वरनाथ मिलकर ही रहेंगे। सर्वे में मिला शिवलिंग ही बाबा विशेश्वर है, इसके सबूत तो चीख-चीख कर गवाही दे रहे है। न्यायालय ने कुछ ऐसे ही संकेतों व दलीलों के आधिर पर वजू खाने वाले जगह पर मिली शिवलिंग ऐरिया को सील करा दिया है। यह अलग बात है वजू खाना सील होने के पर मुस्लिम पक्ष ने भी दावा किया है कि जिसे शिवलिंग बताया जा रहा है, वह एक फव्वारा है ।
–सुरेश गांधी
हिंदू पक्ष के दावे के मुताबिक 1993 से पहले तक मस्जिद के कुछ हिस्सों में हिंदू रीति रिवाज के मुताबिक पूजा होती थी और इस ज्ञानवापी मस्जिद का पूरा ढांचा मंदिर को तोड़कर बनाया गया है। दूसरी ओर मुस्लिम पक्ष लगातार इस बात पर जोर देता रहा है कि 1947 के बाद किसी धार्मिक स्थल के चरित्र को बदला नहीं जा सकता। साथ ही साथ 1991 के विशेष उपासना स्थल कानून के तहत कमीशन की कार्यवाही भी गलत है। अब जिला जज के फैसले से हिंदू पक्ष के दावों पर मुहर लगी है। श्रृंगार गौरी नियमित दर्शन का मामला अब आगे चलेगा। फैसले के खिलाफ एक पक्ष ऊपरी अदालत का रुख करेगा। जिला जज की अदालत में अगली सुनवाई 22 सिंतबर को होगी। ऐसे में माना जा रहा है कि ये मामला अभी लंबा चलेगा। लेकिन बाबा विशेश्वरनाथ को न्याय मिलकर ही रहेगा।
फिरहाल, वर्शिप एक्ट की बांधा खत्म होने के बाद ज्ञानवापी की लड़ाई सेशन कोर्ट, हाईकोर्ट होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचेगी। तीनों जगह पक्षकार अपने-अपने तरीके से दलीलें रखेंगे। कई इतिहासकार मानते है कि काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण गुप्तकाल के दौरान हुआ. मोहम्मद गौरी के आदेश पर मंदिर के कुछ हिस्से तोड़े गए. आखिरी दफा औरंगजेब ने मंदिर तोड़ दी और ज्ञानवापी मस्जिद उसकी जगह बनाई गई. पक्षकार और याचिकाकर्ता सोहन लाल ने बताया कि मस्जिद में सर्वे के दौरान वे इस काम के लिए अधिकृत टीम के साथ अंदर गए थे। उन्होंने सर्वे के समय आंखों देखी चीजें बयान की हैं। उनके मुताबिक, मस्जिद में मिली आकृति को शिवलिंग साबित करना बहुत कठिन नहीं होगा। इसके सबूत चीख-चीख के खुद बोल रहे हैं। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने भी उस जगह को संरक्षित करने का आदेश दिया है जहां शिवलिंग मिलने का दावा किया गया है। उन्होंने बताया कि इस बात को साफ-साफ देखा जा सकता है कि काले पत्थर पर ऊपर से कुछ सीमेंट से जोड़ा गया है। मस्जिद कमेटी के लोगों से जब पूछा गया कि अगर यह फव्वारा है तो इसे चालू कर दीजिए। इस पर उन्होंने जवाब दिया कि यह खराब है। जब पूछा गया कि कब से खराब है तो बताया गया कि वर्षों से। उसे पूरी तरह साफ करने के बाद भी ऐसा कुछ नहीं मिला कि वहां पाइप से कुछ आ रहा है। न किसी अंडरग्राउंड पाइप का सुराग मिला। इस पर कमेटी के लोगों से पूछा गया क्या और कोई अंडरग्राउंड पाइप आता है तो उन्होंने कहा नहीं। उनसे कहा गया कि फिर यह फव्वारा कैसे हुआ। इसे लेकर उनका कहना था कि ऐसा बताया गया है। सच तो यह है कि वहां पानी आने-जाने का कोई रास्ता नहीं था।
औरंगजेब ने मंदिर तोड़ा इसके प्रमाण कई है
ज्ञानवापी मस्जिद के भीतर तालाब है और उसी में औरंगजेब ने शिवलिंग फेकवा दिया था, इसका जिक्र कई इतिहासकारों ने किया है। एस आल्तेकर समेत कई इतिहासकारों का मानना है कि दो सितंबर, 1669 के दिन औरंगजेब ने विश्वेश्वर मंदिर का ध्वंस कर दिया। इसी की जगह मस्जिद बनाई गई। मंदिर में रखे शिवलिंग को इसी मस्जिद परिसर में छिपाने के लिए फेंक दिया गया। वाराणसी कोर्ट ने जब मां श्रृंगार गौरी की पूजा के लिए मिली अर्जी के बाद सर्वे के आदेश दिए तो ये सच्चाई सामने आ गई। सर्वे के तीसरे दिन तालाब से पानी पंप किया गया। तभी मुस्लिम पक्षकारों ने इसका विरोध किया। दलील थी कि मछलियां मर जाएंगी। ये बेतुका तर्क था। जब पानी हटाया गया तब कुएं जैसी रचना के बीच शिवलिंग का आकार दिखा। हिंदू पक्ष के मुताबिक इसका व्यास चार मीटर है और ऊंचाई तीन मीटर। देखना है कि कोर्ट के भीतर इतिहास की परतें किस करवट खुलती हैं। हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन ने कहा कि मुस्लिम पक्ष फव्वारे को शिवलिंग बताकर पूरे देश को गुमराह कर रहा है। जबकि यह शिवलिंग नंदी के मुंह से उत्तर 84.3 फीट की दूरी पर स्थित है।
हिन्दू पक्ष का दावा है कि वजूखाना के नीचे 100 फीट ऊंचा आदि विश्वेश्वर का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है। काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करीब 2050 साल पहले महाराजा विक्रमादित्य ने करवाया था, लेकिन मुगल सम्राट औरंगजेब ने साल 1664 में मंदिर को तुड़वा दिया। दावे में कहा गया है कि मस्जिद का निर्माण मंदिर को तोड़कर उसकी भूमि पर किया गया है जो कि अब ज्ञानवापी मस्जिद के रूप में जाना जाता है। याचिकाकर्ता ने मांग की है कि ज्ञानवापी परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण कर यह पता लगाया जाए कि जमीन के अंदर का भाग मंदिर का अवशेष है या नहीं। साथ ही विवादित ढांचे का फर्श तोड़कर ये भी पता लगाया जाए कि 100 फीट ऊंचा ज्योतिर्लिंग स्वयंभू विश्वेश्वरनाथ भी वहां मौजूद हैं या नहीं। मस्जिद की दीवारों की भी जांच कर पता लगाया जाए कि ये मंदिर की हैं या नहीं। याचिकाकर्ता का दावा है कि काशी विश्वनाथ मंदिर के अवशेषों से ही ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण हुआ था। इन्हीं दावों पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कोर्ट कमिश्नर नियुक्त करते हुए आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) की एक टीम बनाई। इस टीम को ज्ञानवापी परिसर का सर्वे करने के लिए कहा गया था,जो अब पूरा हो चुका है।
अब करेंगे ज्ञानावापी सर्वे की मांग
महिला याचिकर्ताओं के वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा कि उम्मीद के मुताबिक फैसला हमारे पक्ष में आया है। उन्होंने कहा कि अब हम एएसआई सर्वे और शिवलिंग की कार्बन डेटिंग की मांग करेंगे। उन्होंने कहा कि आज का दिन काफी महत्वपूर्ण है। कोर्ट में मस्जिद कमेटी की तरफ से 1991 के प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट का हवाला दिया गया था। हम लोगों ने बहुत वैज्ञानिक तौर पर अपने तर्क कोर्ट में रखे थे। हमारा पक्ष बहुत मजबूत था।
हिंदू पक्ष की दलीलें
जिला जज की अदालत में चार महिला वादियों की ओर से सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अधिवक्ता हरिशंकर जैन और विष्णु जैन पक्ष रखा। इसमें उन्होंने 26 फरवरी 1944 के गजट को फर्जी करार दिया और दलील दी थी कि यह धौरहरा बिंदु माधव मंदिर के लिए था। बादशाह आलमगीर ने हिंदू मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई। वादिनी राखी सिंह के अधिवक्ता मानबहादुर सिंह की दलील थी कि मंदिर के स्ट्रक्चर पर मस्जिद का ढांचा खड़ा कर दिया गया। यह विशेष उपासना स्थल एक्ट से बाधित नहीं है। औरंगजेब आतताई था और मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवाया, लेकिन मस्जिद के पीछे मंदिर का दीवार छोड़ दी। वक्फ मामले में दीन मोहम्मद के केस का भी हवाला दिया गया है। अदालत में हिंदू पक्ष की ओर से दायर प्रार्थना पत्र के अनुसार दशाश्वमेध घाट के पास आदिविशेश्वर महादेव का ज्योतिर्लिंग है और पूर्व में एक भव्य मंदिर यहां पर मौजूद था, जिसमें आज भी हिंदुओं की आस्था है। इसे लाखों सालों पूर्व त्रेता युग में स्वयं भगवान शिव ने ही यहां स्थापित किया था। इस समय यह ज्ञानवापी परिसर प्लाट संख्या 9130 पर स्थित है। यहां पुराने मंदिर परिसर में ही मां श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश, हनुमान, नंदी, दृश्य और अदृश्य देवी देवता हैं। मुस्लिम आक्रमणकारियों ने वर्ष 1193-94 से कई बार इस मंदिर को नुकसान पहुंचाया। हिंदुओं ने उसी स्थान पर मंदिर का निर्माण कर मंदिर को पुनर्स्थापित किया है।
मुस्लिम पक्ष की दलीलें
अंजुमन इंतजामिया मसाजिद के अधिवक्ता शमीम अहमद ने काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट एक्ट और विशेष उपासना स्थल कानून का हवाला दिया था। इसमें उन्होंने 1944 के गजट और 1936 के दीन मोहम्मद केस के निर्णय का हवाला दिया। इसमें उन्होंने दावा किया कि यह मस्जिद औरंगजेब के जमाने के पहले से है। विशेष उपासना स्थल कानून 1991 का जिक्र कर कहा गया है कि अदालत में आजादी के बाद जो भी धर्म स्थल जिस रूप में होगा, उसी रूप में रहेगा। इसमें मुस्लिम पक्ष ने मामले को सुनवाई योग्य नहीं मानने के लिए दलील दी है।
ऐतिहासिक फैसला
सोमवार दोपहर अदालत का फैसला आने से पहले एक बजे के बाद से ही परिसर में गहमागहमी तेज हो गई और दोपहर दो बजे अजय कुमार विश्वेश की अदालत ने फैसला पढ़ना शुरू किया, सवा दो बजे अदालत ने अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी के प्रार्थना पत्र को अपने फैसले में खारिज कर दिया। अदालत का फैसला आने के बाद अब ज्ञानवापी के वजूखने में में मिले शिवलिंग के पूजन की अनुमति सहित श्रृंगार गौरी और अन्य देवी देवताओं के विग्रह के पूजन अर्चन संबंधी वाद को गति मिल जाएगी।
जलाएं दिएं
हिंदू पक्ष की याचिकाकर्ता मंजू व्यास ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि अदालत के फैसले से संपूर्ण देश खुश हैं। हमारे हिंदू भाइयों और बहनों से विनती है कि आज फैसले के जश्न में अपने घरों में घी के दीये जलायें, शंख और नगाड़े बजाने के साथ ही हर-हर महादेव के नारे भी लगाएं।
ऐतिहासिक तथ्य
सन 1585 में जौनपुर के तत्कालीन राज्यपाल राजा टोडरमल ने अपने गुरु नारायण भट्ट के कहने पर उसी स्थान पर भगवान शिव का भव्य मंदिर बनवाया। वह स्थान जहां मंदिर मूल रूप से अस्तित्व में था यानी भूमि संख्या 9130 पर केंद्रीय गर्भगृह से युक्त आठ मंडपों से घिरा हुआ था। इस क्षेत्र में मुगल शासक औरंगजेब ने 1669 ईस्वी में मंदिर को ध्वस्त करने का फरमान जारी किया था। भगवान आदि विशेश्वर के प्राचीन मंदिर को आंशिक रूप से तोड़ने के बाद, वहां ’ज्ञानवापी मस्जिद’ नामक एक नया निर्माण किया गया था। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास और संस्कृति विभाग के प्रोफेसर और प्रमुख डा. एएस अल्टेकर ने अपनी पुस्तक ’हिस्ट्री ऑफ बनारस’ में मुसलमानों द्वारा प्राचीन काल में बनाए गए निर्माण की प्रकृति का वर्णन किया है। औरंगजेब ने उक्त स्थान पर मस्जिद निर्माण के लिए कोई वक्फ नहीं बनाया था। इसलिए मुसलमानों से संबंधित किसी भी धार्मिक कार्य के लिए भूमि का उपयोग करने का अधिकार नहीं है। भूमि संख्या 9130 पांच क्रोश भूमि के साथ पहले से ही देवता आदिविशेश्वर में लाखों साल पहले ही निहित हो चुकी थी और देवता मालिक हैं। वर्ष 1780-90 में इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने भगवान शिव का एक मंदिर बनवाया। पुराने मंदिर और भगवान शिव के शिव लिंगम के बगल में एक शिव लिंगम की स्थापना की। सुविधा के लिए रानी अहिल्याबाई द्वारा निर्मित मंदिर को “नया मंदिर“ और श्री आदि विशेश्वर मंदिर को ’पुराना मंदिर’ कहा जा रहा है।
कथित ज्ञानवापी मस्जिद की पश्चिमी दीवार के पीछे प्राचीन काल से मौजूद देवी श्रृंगार गौरी की छवि है और उनकी लगातार पूजा की जाती है। स्कंदपुराण के अनुसार भगवान विश्वनाथ की पूजा का फल प्राप्त करने के लिए मां देवी श्रृंगार गौरी की पूजा अनिवार्य है। वर्ष 1936 में दीन मोहम्मद की ओर से ज्ञानवापी को लेकर दाखिल मुकदमें में परिसर की पैमाइस एक बीघा नौ बिस्वा छह धूर बताई गई है। इस मुकदमे के गवाहों ने देवी मां श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश, भगवान हनुमान और दृश्य और अदृश्य देवताओं की छवियों उसी स्थान पर होने दैनिक पूजा करने को साबित किया है। उत्तर प्रदेश काशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम 1983 के तहत मंदिरों, मंदिरों, उप मंदिरों और अन्य सभी छवियों की पूजा करने के अधिकार हिंदुओं को प्राप्त है। मां श्रृंगार गौरी की पूजा को वर्ष में केवल एक बार प्रतिबंधित करने का कोई लिखित आदेश पारित नहीं किया है। मांग किया कि ज्ञानवापी परिसर (आराजी संख्या 9130 ) में मौजूद मां श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश, भगवान हनुमान, नंदी जी और अन्य दृश्य और अदृश्य देवताओं के दैनिक दर्शन, पूजा, आरती, भोग का अधिकार वादियों को है इसलिए उन्हें ऐसा करने में बाधा पहुंचाने वालों को रोका जाए। साथ ही उन्हें किसी तरह की क्षति पहुंचाने से रोका जाए। वहां सुरक्षा के लिए शासन व जिला प्रशासन को निर्देश दिया जाए।
हरिशंकर जैन की दलीले
1- हिंदू मत के अनुसार जहां पर प्राण प्रतिष्ठा होती है वह स्थल का स्वामित्व अनंत काल तक नहीं बदलता। इस लिहाज से यह जमीन मस्जिद या वक्फ की नहीं हो सकती है।
2- इस भूखंड का आराजी संख्या 9130 (विवादित परिसर) पर पूर्व में भी लगातार दर्शन पूजन होता रहा है। 1993 में बैरिकेडिंग बनाए जाने तक हिंंदू देवी देवताओं की पूजा होती रही है।
3- स्वयंभू को स्पष्ट किया कि जिनकी प्राण प्रतिष्ठा नहीं होती वह ज्योतिर्लिंग होते हैं। काशी विश्वनाथ एक्ट में पूरे परिसर को ही बाबा विश्वनाथ के स्वामित्व का हिस्सा माना गया था। ऐसे में एक्ट के खिलाफ जो भी फैसले जाने अनजाने हुए या लिए गए हैं वह सभी शून्य हैं।
4- वर्ष 1983 में हिंदू कानून में भगवान के प्रकार और अधिकार को लेकर स्पष्ट व्याख्या को अदालत में पेश किया गया है। इन तथ्यों के समर्थन में पुराने फैसलों की नजीर भी पेश की है।
5- कोर्ट में राम जानकी प्रकरण 1999 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के नजीर को भी सामने रखा। इसके अतिरिक्त अयोध्या प्रकरण को लेकर भी हिंदू पक्ष ने अदालत में दलील रखी थी।
6- हिंदू मत में पूजा के लिए मूर्ति की जरूरत नहीं, हिंदू धर्म में समर्पण और निराकार ईश्वर की मान्यता के अनुसार पूजन की पूर्व की मान्यता को झुठलाया नहीं जा सकता।
7- हिंदू धर्म में भगवान या ईश्वर को जीवित माना जाता है। इसलिए उनकी आरती और भोग की मान्यता पुरातन है। साथ ही भारत सरकार इस पर कर भी लगाती है।
8- ज्ञानवापी वक्फ संपत्ति नहीं हो सकती क्योंकि वक्फ की संपत्ति का कोई मालिक होना चाहिए लेकिन इस मामले में संपत्ति हस्तांतरण का कोई आधार मौजूद नहीं है।
9- दीन मोहम्मद केस (1937) में भी 15 गवाहों ने स्पष्ट किया था कि यहां पर पूजा अर्चना होती है। ऐसे में यहां पर मंदिर की मान्यता आज के लिहाज से कोई नई बात नहीं।
10- मंदिर को तोड़ने के बाद किन हिस्सों में पूजा होती थी उसका दस्तावेज भी इस समय उपलब्ध है। लिहाजा मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाए जाने और विध्वंश के बाद अशेष हिस्सों में हिंदू मतावलंबी पूजन करते रहे हैं।
1993 से पहले नियमित होती थी पूजा
1993 के पहले ज्ञानवापी मस्जिद में नियमित श्रृंगार गौरी का दर्शन पूजन होता था और बाद में बैरिकेडिंग कर दी गई थी। इस बाबत वादी पक्ष का दावा है कि बिना किसी आदेश के मां श्रृंगार गौरी का दर्शन- पूजन रोक दिया गया था। इसके लिए वादी पक्ष ने अपना तर्क भी अदालत में दिया था। कहा गया है कि मस्जिद की पश्चिमी दीवार पर मौजूद मां श्रृंगार गौरी की प्रतिमा भी बैरिकेडिंग के अंदर ही आ गई। इसके चलते दर्शनार्थियों को वहां जाकर दर्शन-पूजन करने से रोक दिया गया। इस बारे में किसी तरह का कोई लिखित आदेश आज तक मौजूद नहीं है। वर्ष 1993 में उत्तर प्रदेश में जब प्रदेश के चुनाव हुए तो दिसंबर माह में मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी। उस समय केंद्र में पीवी नरसिंह राव की कांग्रेस सरकार थी। मगर, बैरिकेडिंग किसके आदेश पर हुई और मां श्रृंगार गौरी का दर्शन-पूजन किसने आदेश से रोका गया यह जानकारी किसी को नहीं है। मगर, आज लगभग तीन दशक बाद भी बैरिकेडिंग पर सवाल बरकरार है। अब केस नए सिरे से खुला है तो हौजखास नई दिल्ली निवासी राखी सिंह, सूरजकुंड लक्सा वाराणसी की लक्ष्मी देवी, सरायगोवर्धन चेतगंज वाराणसी की सीता साहू, रामधर वाराणसी की मंजू व्यास, हनुमान पाठक वाराणसी की रेखा पाठक वादी के तौर पर अदालत में सवाल बनकर खड़े हैं। तो दूसरी ओर चीफ सेक्रट्ररी के माध्यम से उत्तर प्रदेश सरकार, जिलाधिकारी वाराणसी, पुलिस कमिश्नर वाराणसी, ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद और श्री काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट को प्रतिवादी बनाया गया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी, फैसला सुरक्षित
काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है. कोर्ट ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है. एएसआई सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी हुई है. कोर्ट 28 सितंबर को याचिका पर फैसला सुनाएगा. वाराणसी कोर्ट के अप्रैल 2021 के एएसआई सर्वेक्षण आदेश को चुनौती दी गई थी. मस्जिद कमेटी और वक्फ बोर्ड ने वाराणसी कोर्ट के फैसले को चुनौती दी है .