नई दिल्ली : कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष (National President of Congress) कौन होगा इसका फैसला 17 अक्टूबर को होने वाला है। इस दिन कांग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव होना है। चुनाव के नतीजे 19 अक्टूबर को आएंगे, हालांकि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने से इन्कार कर चुके हैं। ऐसे में ये तो तय है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Chief Minister Ashok Gehlot) चुनाव के लिए पर्चा दाखिल करेंगे। इसी बीच अब यह भी बात सामने आ रही है कि अशोक गहलोत (Chief Minister Ashok Gehlot) के साथ तीन और नेता दावेदारी कर सकते हैं।
आपको बता दें कि कांग्रेस में 1998 के बाद पहली बार राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर चुनाव हो रहा है और ढाई दशकों के बाद पहली बार गांधी परिवार से बाहर का कोई नेता इस पद पर आ सकता है। हाईकमान के इस फैसले को लेकर बड़ी आशंकाएं भी हैं तो वहीं कुछ लोगों को लगता है कि इससे कांग्रेस को फायदा भी हो सकता है।
गहलोत से जब पूछा गया कि क्या वह सीएम बने रहेंगे? इस सवाल पर उन्होंने कहा, ‘ये समय बताएगा कि मैं कहां रहता हूं। मैं वहीं रहना चाहूंगा जहां पार्टी को मुझसे फायदा होगा, मैं जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटूंगा।’ गहलोत ने कहा कि वह पार्टी की सेवा करना चाहते हैं, चाहे दिल्ली में या राजस्थान में।
उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस ने मुझे सबकुछ दिया है। पद मेरे लिए महत्वपूर्ण नहीं है। अगर ये मेरे ऊपर है तो मैं कोई भी पद नहीं लेना चाहूंगा। देश की स्थिति को देखते हुए मैं राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होना चाहूंगा।
अशोक गहलोत या फिर किसी अन्य नेता के कांग्रेस अध्यक्ष बनने से कांग्रेस के ऊपर से फैमिली टैग हट जाएगा। लंबे समय बाद सोनिया गांधी और राहुल गांधी के हाथ से पार्टी की कमान किसी और नेता को मिलेगी। इससे पार्टी इस आरोप से बच सकेगी कि कांग्रेस में अध्यक्ष का पद एक ही परिवार के लिए रिजर्व रहता है। कांग्रेस के इतिहास में 48 सालों तक अध्यक्ष का पद नेहरू-गांधी परिवार के पास ही रहा है। ऐसे में कांग्रेस के लिए यह अहम हो सकता है। एक तरफ गांधी परिवार पीछे से पूरी पार्टी को मैनेज करेगा ही, लेकिन नए नेता के चुनाव से धारणा बदलने में भी मदद मिलेगी।
अशोक गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष बनने की अटकलें हैं और वह ओबीसी समाज से आते हैं। ऐसे में उनके अध्यक्ष बनने से कांग्रेस सामाजिक समीकरण भी साधने की कोशिश करेगी। ओबीसी समाज की संख्या देश में सबसे ज्यादा मानी जाती है। इसलिए कांग्रेस गहलोत को ट्रंप कार्ड के तौर पर देख रही है।
कांग्रेस के लिए खुद को उत्तर भारत में मजबूत करना अहम है और उसके लिए हिंदी भाषी नेता अहम हो सकता है। अशोक गहलोत खुद राजस्थान से आते हैं और यूपी, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश समेत हिंदी भाषी राज्यों में अच्छी पहचान रखते हैं। ऐसे में कांग्रेस को उम्मीद है कि अशोक गहलोत के जरिए वह उत्तर भारत में अपनी पकड़ एक बार फिर से मजबूत कर सकती है। पार्टी को लगता है कि उसकी स्थिति दक्षिण भारत में बेहतर है और अब उत्तर में भी मजबूती हासिल करने से उसे बूस्ट मिल सकता है।
कांग्रेस नए अध्यक्ष और गैर-गांधी नेता के जरिए 2024 के आम चुनाव के लिए नई शुरुआत कर सकती है। राहुल गांधी बीते 8 सालों से भाजपा से मुकाबला कर रहे हैं, लेकिन अब तक उतने सफल नहीं हुए हैं। ऐसे में राहुल गांधी पीछे से पार्टी को मैनेज कर सकते हैं और नए चेहरे के जरिए भाजपा पर हमलावर हो सकती है। भाजपा के लिए भी अशोक गहलोत जैसे नेता पर अटैक करना बहुत आसान नहीं होगा, जो ओबीसी वर्ग से ही आते हैं।
दूसरी तरफ अशोक गहलोत 71 बरस के हैं और गांधी परिवार की तीन पीढ़ियों के साथ काम कर चुके हैं। ऐसे में उनका अध्यक्ष बनना पार्टी में सीनियर नेता बनाम युवा की जंग को भी कमजोर करेगा। इससे यह संदेश जा सकता है कि पार्टी में सभी का सम्मान है। एक तरफ कांग्रेस ने अनुभवी नेता को कमान दी है तो वहीं युवाओं को भी मौके मिल रहे हैं।