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BJP को कांग्रेस और APP के सामने साधना पड़ रहा दोहरा मोर्चा

नई दिल्ली : गुजरात की चुनावी जंग में भाजपा (BJP) को सत्ता बरकरार रखने के लिए दोहरा मोर्चा साधना पड़ रहा है। एक तरफ प्रमुख प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस (major rival congress) से जमीनी लड़ाई लड़नी पड़ रही तो वहीं आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) के बड़े दावों और वादों को लेकर किए जा रहे प्रचार अभियान से जूझना पड़ रहा है। हालांकि, राज्य में मजबूत विपक्ष न होने का लाभ भाजपा को मिल सकता है। पार्टी की रणनीति के केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) और गृहमंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) हैं। दोनों नेता बीते छह महीने से राज्य की एक-एक सीट की सूक्ष्म रणनीति से जुड़े रहे हैं।

नेतृत्व को लेकर भाजपा कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों पर भारी है, लेकिन बीते चुनावों के आंकड़े उत्साहवर्धक नहीं हैं। वर्ष 1995 से लगातार सत्ता पर काबिज भाजपा की सीटें 2002 के बाद से हर चुनाव में घटी हैं। वर्ष 2017 में वह बहुमत के आंकड़े 92 से महज सात सीटें ज्यादा ही जीत पाई थी। इस बीच कांग्रेस से कई नेता पार्टी में शामिल भी हुए हैं। पिछली बार के पाटीदार आंदोलन और जीएसटी जैसा बड़ा मुद्दा भी इस बार नहीं है। ऐसे में किसी तरह की अंदरूनी नाराजगी घातक हो सकती है। यही वजह है कि भाजपा की रणनीति में एक-एक मतदाता शामिल है और वह उन तक पहुंच रही है।

भाजपा इस बार सौराष्ट्र और पंचमहल के आदिवासी क्षेत्रों पर ज्यादा काम कर रही है। दोनों क्षेत्रों में पार्टी को पिछली बार नुकसान हुआ था। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों से निपटने के लिए भाजपा इस बार शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए अलग-अलग ढंग से काम कर रही है। सशक्त पाटीदार समुदाय को साधा है तो कांग्रेस में सेंध लगाकर उसके सामाजिक समीकरण को कमजोर किया है। आम आदमी पार्टी की राजनीतिक घुसपैठ को कमजोर करने के लिए युवा और आकांक्षी वर्ग में उसके नेता सक्रिय हैं।

गुजरात भाजपा के लिए अन्य राज्यों की तुलना में सबसे अहम है। क्योंकि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का गृह राज्य है। यही वजह है कि लगभग छह महीने पहले जब उत्तर प्रदेश समेत पांच विधानसभाओं का चुनावों के परिणाम भी नहीं आए थे, प्रधानमंत्री मोदी ने गुजरात का मोर्चा संभाल लिया था। तब से अब तक मोदी दर्जनों बार गुजरात का दौरा कर चुके हैं। गृह मंत्री अमित शाह खुद सारी चुनावी रणनीति के केंद्र में हैं। एक-एक सीट के लिए उम्मीदवार चयन का काम वह खुद देख रहे हैं।

भाजपा ने बीते साल ही गुजरात की रणनीति पर अमल शुरू कर दिया था। कोरोना महामारी के दौरान जनता की नाराजगी को खत्म करने के लिए पूरी सरकार को ही बदल दिया था। इसके बाद से लगातार सत्ता विरोधी माहौल की काट के हिसाब से कदम उठाए जा रहे हैं। भाजपा का फोकस उन मतदाताओं पर है जो भाजपा के शासन काल में जन्में हैं। इन्होंने केवल भाजपा का ही शासन देखा है। ऐसे में उनमें बदलाव की इच्छा को विकास की नई उड़ान के साथ भाजपा के साथ जोड़े रखने के प्रयास किए जा रहे हैं।

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