दस्तक-विशेषराजनीतिसाहित्यस्तम्भ

भारत के 1980-95 तक की राजनीति की एक झलक

के.एन. गोविन्दाचार्य

भाग -1

स्तम्भ: भारत में और दुनिया में भी इस कालखंड में बाहुबल, सैन्यबल, हथियारवाद का प्रभाव बढ़ा। अमेरिका दुनिया की अन्य ताकतों का ठहराव देख कर उन्मत्त हो गया। सारी दुनिया को हांकने को अपना दुनिया के प्रति दायित्व मान बैठा। सरकारवाद, समाजवाद, साम्यवाद पूरे विश्व मे कमजोर पड़ने लगे। दक्षिण अमरीकी, पूर्व एशियाई देश आंतरिक अव्यवस्था में उलझ गये।

जापान का बुलबुला फूट जाने की आशंका सतह पर आने लगी।  चीन ने अपनी उत्पादन की मशीनरी को बदला। SEZ भी बनाए गये। समाजवाद की बजाय बाजारवाद की ओर चीन बढ़ा। अपनी तानाशाही वाली राजनैतिक व्यवस्था का भरपूर फायदा उसने उठाकर निर्यात की नीति बना डाली। रूस मे परेशानियाँ बढ़ने लगी थी। 1985 के बाद जब GATT वार्ता निर्णायक दौर की तरफ बढ़ रही थी। रूस मे पेरेस्त्रोइका और ग्लासनोस्त का हल्ला मचने लगा।

वहां भी उत्पादन विधि एवं बाजार, आयात-निर्यात नीति को सुधारा गया। चीन, रूस, जापान, कोरिया, वियतनाम सभी देशों मे राष्ट्रवाद का भी उपयोग किया गया।  अमेरिका ने ग्लोबल विलेज, One World Govt. One Currency On Market आदि नारे उछाले। 1990 आते-आते End of History, End of Ideology आदि जुमले उछाले जाने लगे। दुनिया भर मे दादागिरी को अमेरिका ने अपना वैश्विक दायित्व मान लिया। उसने ऐसा माहौल बनाना शुरू किया मानो विधाता ने ही दुनिया का अमेरिका की राह पर, अमेरिका के लिये चलाने का दायित्व दिया है।

1990 मे USSR टूट गया। एक ध्रुवीय विश्व की बात लोगों को सच लगने लगी। मन थोड़े समय में ही ऐसा सब तो दिवास्पन ही है। चीजे उतनी साधी या सरल नही होती। सभ्यतामूलक अभीप्सा भी कुछ होती है। उससे राष्ट्र, समाज अपनी दिशा तय करते है, अनुकरण को जन सामान्य अस्वीकार करता है।

अफ्रिका, दक्षिण मध्य अमेरिका में आंतरिक तनाव, तख्ता पलट की अलोकतांत्रिक दुर्घटनाएँ सामने आने लगी। 70 और 80 मे अमेरिका हर उपद्रव मे साझीदार सा लगने लगा। लगा शीत युद्ध समाप्त नही हुआ केवल पात्र बदल रहे हैं। अब चीन भी अंतर्राष्ट्रीय पहलुओ मे रूचि लेने लगा। नवउपनिवेशवाद की बू आने लगी।

भारत में यही काल है जिसमे सन् 1984 में अकाल तख़्त पर इंदिरा जी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार की सैनिक कार्रवाई की। भिण्डरवाला महोदय मारे गये। सिख आतंकवाद बढ़ा और फ़ैल गया। भारत के बाहर भी गूंज सुनाई दी। जून 84 के बाद अक्टूबर अंत में देश की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की ह्त्या उन्ही के सुरक्षाकर्मियों ने कर दी। सिखों का नरसंहार प्रतिक्रिया में हुआ।

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