बाइडेन की सफलता कसौटी पर !!
स्तंभ: अमेरीकी वोटरों ने कल (8 नवंबर 2022) तय कर दिया है कि अस्सी-वर्षीय जो बाइडेन फिर राष्ट्रपति बन पाएंगे अथवा डोनाल्ड ट्रंप अपनी दो वर्ष पूर्व की पराजय का बाइडेन से प्रतिशोध ले सकेंगे? अमेरीकी राष्ट्रपति का चुनाव 2024 में है। भारतीय लोकसभा का भी तभी है। करीब चार करोड़ वोटरों ने अमरीकी संसद के दोनों सदनों के (100-सदस्यीय सीनेट के पैंतीस तथा निचली सदन के सभी 435) सदस्यों का भाग्य मतपेटी में कैद कर दिया है। ट्रंप का अभियान रहा कि अमेरीका आज विश्व पटल पर “मजाक” बन गया है। ट्रंप ने कल मीडिया को बताया कि वे मंगलवार को “विशेष घोषणा” करेंगे। तब तक स्पष्ट हो जाएगा कि सीनेट में उनकी रिपब्लिकन पार्टी को बहुमत मिल पायेगा? अभी दोनों दलों के सदस्यों की संख्या समान (50-50) है। उपराष्ट्रपति कमला (श्यामला-गोपालन) हैरिस हैं जो सीनेट (राज्यसभा) की सभापति हैं। उनके वोट ही निर्णायक होता हैं, मगर निचले सदन (प्रतिनिधि सभा) के 435 सदस्यों के चुनाव में ट्रंप को बहुमत की आवश्यकता है।
ऐसे मतदान की घड़ी पर राष्ट्रपति बाइडेन ने मतदाताओं से एक ओजस्वी अपील की थी : “अपनी आवाज सुनाईये : वोट दीजिए।” उनकी पार्टी का खास मुद्दा है : “हर नारी को गर्भपात कराने का हक है।” उच्चतम न्यायालय ने गत दिनों उसे अवैध करार दिया था। अपने दो वर्षों के शासन काल के गुण दोष पर भी बाइडेन ने जनमत मांगा है। यूक्रेन की सुरक्षा इसका खास मसला हैं। कल हुए संसदीय चुनाव के परिणाम से तय हो जाएगा कि क्या कि फिर राष्ट्रपति पद के लिए बाइडेन दुबारा प्रत्याशी बन पायेंगे? इन चुनावों को कई कारणों से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। ये मध्यावधि चुनाव अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के बाकी बचे दो वर्षीये कार्यकाल की दिशा तय करेंगे। तमाम संकेत डेमोक्रेटिक पार्टी के खिलाफ हैं। चुनाव पूर्व के जनमत सर्वेक्षणों से आम संकेत मिले हैं कि हाउस ऑफ रिप्रंजेंटेटिव में सत्ताधारी डेमोक्रेटिव पार्टी बहुमत हासिल नहीं कर पाएगी। सीनेट का बहुमत भी वह गवां सकती है। अगर ऐसा हुआ, तो राष्ट्रपति बाइडन की मुश्किलें बढ़ जाएंगी।
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन की अलोकप्रियता का हाल यह है कि मिडटर्म चुनाव के प्रचार के अभियान से उन्हें खुद को लगभग हटा लेना पड़ा है। पिछले कुछ दिन से उन्होंने किसी बड़ी चुनाव सभा को संबोधित नहीं किया है। इसके बजाय लोगों के छोटे समूहों से संवाद करने की रणनीति पर वे चल रहे हैं, जहां उन्हें अपने प्रशासन के कामकाज के बारे में स्पष्टीकरण देने का बेहतर मौका मिलता है। ब्रिटिश अखबार “फाइनेंशियल टाइम्स” ने अपने एक आकलन में कहा है कि अगर दोनों सदनों में रिपब्लिकन पार्टी का बहुमत हो गया, तो वह बाइडन के खिलाफ कई तरह की जांच शुरू करवा सकती है। साथ ही वह प्रशासन के बजट प्रस्तावों को लटका सकती है। इसी बीच बाइडेन के लिए शासन करना बहुत मुश्किल हो जाएगा।
अमेरिका के इन मध्यवर्ती संसदीय चुनाव में “रसोई” ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण अभियान का बिंदु है। आम वोटर भी महंगाई, बेरोजगारी, कानून व्यवस्था (खासकर शस्त्र लाइसेंस का बेजा उपयोग), वेतन वृद्धि आदि है। इनके अतिरिक्त तीन प्रश्न अन्य अभी उठते हैं। यदि ट्रंप राष्ट्रपति पद के उम्मीदद्वार बने तो क्या बाइडेन उनसे मुकाबला कर पाएंगे? स्वयं बाइडेन के स्थान पर डेमेक्रेटिक पार्टी के पास विकल्प कौन है? उधर रूस-यूक्रेन युद्ध और चीन की आक्रामकता, खासकर ताइवान की सुरक्षा के परिप्रेक्ष्य में, विशेष ध्यान आकृष्ट करते हैं। स्पष्ट तौर पर यह चुनाव परिणाम राष्ट्रपति जो बाइडेन के दो वर्ष के कालखंड की उपलब्धियों और विफलताओं पर भी रायशुमारी होगी। कुल मिलाकर अमेरिका के विश्व शक्ति की स्थिति पर भी नजरिया तय होगा। इन्हीं बिंदुओं पर आगामी समय में अमेरिकी राजनीति वैश्विक उथल पुथल का कारक भी बन सकती है। भविष्य के गर्भ में आशंकायें और आशायें समाहित हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)