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बिजेथुआ महावीरन: यहां हनुमान जी ने किया था कालनेमि राक्षस का वध

सुलतानपुर: जिले के कादीपुर स्थित बिजेथुआ महावीरन धाम जहां कालिनेमि राक्षस का वध हनुमान जी ने किया था। रामचरित्र मानस में इस स्थान का वर्णन मिलता है। यह स्थान श्रद्धालुओं के लिए आस्था एवं श्रद्धा का केंद्र है।

कादीपुर तहसील के सूरापुर में एक बहुत प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर पर मंगलवार और शनिवार को विशेष कर बहुत से लोग पूजा अर्चना के लिए आते हैं। भक्त अपनी मनोकामना की सिद्धि के लिए यहां पर घंटियां चढ़ाते हैं। सड़क मार्ग बस और निजी टैक्सी द्वारा यहां पहुंचा जा सकता है।

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मनीराम बाबा आश्रम के संत लाल चन्द्र पाठक उर्फ निक्के पाठक ने हिन्दुस्थान समाचार से बताया कि यहां पर स्थापित हनुमानजी की मूर्ति स्वयंभू प्रतिमा है। उस समय मूर्ति निकालने का कार्य शुरू हुआ था।

परंतु कई दिनों की खुदाई के बाद भी जब मूर्ति की गहराई का पता नहीं चला, तो भक्तों ने खुदाई का कार्य बंद कर दिया। इस कारण यहां स्थापित हनुमानजी की प्रतिमा का एक पैर कितनी गहराई में है, इसका आज भी पता नहीं है।

हनुमत पुष्प वाटिका

श्री पाठक ने बताया कि मनीराम बाबा की कुटिया में हनुमत पुष्प वाटिका है। यह नित्य गुलाब का पुष्प हनुमान जी को चढ़ने के लिए जाता हैं।


बिजेथुआ महावीरन में मकड़ी का रहस्य

श्री पाठक जी रामचरित मानस में दिए गए चौपाई का वर्णन करते हुए बताया कि लक्ष्मण को जब मेघनाद द्वारा चलाए गए बीरघाती से मूर्छित हो जाते हैं, तो हनुमान जी सुषेन वैद्य के बताए अनुसार धौलागिरी की ओर संजीवनी बूटी लाने के लिए प्रस्थान किये।

जब इसकी जानकारी रावण को हुई तो उसनेे मुनि वेशधारी कालिनेमि राक्षस को हनुमान जी का मार्ग अवरुद्ध करने के लिए भेजा। हनुमान जी प्यास लगने पर इस आश्रम में उतरे। कालिनेमि के द्वारा रचित सरोवर पर हनुमान जी को भेजा गया।

हनुमान जी के सरोवर में प्रवेश करते ही अभिशापित अप्सरा ने मकड़ी के रूप में, उनका पैर पकड़ लिया।

मकड़ी ने कालिनेमि का रहस्य बताते हुए हनुमानजी से कहा, ‘‘मुनि न होई यह निशिचर घोरा। मानहुं सत्य बचन कपि मोरा।।’’ ऐसा कहकर मकड़ी लुप्त हो गई। उन्होंने दैत्य कालनेमि को मारा और विश्राम किया था।


यहां पर अनेकों सन्तों ने की तपस्या

श्री पाठक ने बताया कि शक्तिपीठ बिजेथुआ महावीरन धाम में समय-समय पर अनेक संतों ने घोर तपस्या की। मकड़ी कुंड के पूरब टीले पर बाबा निर्मल दास, हरिदास, चेतनदास, जोगी दास, युक्त दास आदि की समाधियां बनी हुई हैं।

मंदिर के पुजारी शनि पाण्डेय पूरे मंदिर परिसर में आज भी 1889 अंकित (चीना) घंटा लोगों के आकर्षण का केंद्र है। मान्यता है कि यहां माथा टेकने वालों की मनोकामनाएं जरूर पूरी होती हैं।

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