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मोबाइल के अधिक इस्तेमाल से बच्चों की एकाग्रता में आ रही कमी : डॉ. शुक्ला

माता-पिता बच्चों को दें पर्याप्त समय, बाहर खेलने और मनपसन्द के कार्यों में करें व्यस्त

लखनऊ : अलीगंज क्षेत्र में रहने वाले शर्मा परिवार में आयोजित पारिवारिक कार्यक्रम में वयस्कों के साथ बच्चे भी शामिल हुए लेकिन कार्यक्रम के दौरान बच्चों की सहभागिता या मौजूदगी का एहसास नाम मात्र का ही रहा क्योंकि बच्चे मोबाइल में गेम खेलने या यूट्यूब देखने में व्यस्त थे। राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग के एक अध्ययन के अनुसार.स्मार्टफोन के अधिकउपयोग से बच्चों में एकाग्रता की कमी आ रही है। 37.15 प्रतिशत बच्चे हमेशा या कभी.कभी स्मार्टफोन के उपयोग के कारण एकाग्रता में कमी का अनुभव करते हैं।

इस बारे में बलरामपुर अस्पताल के मानसिक रोग विभाग के अध्यक्ष डा देवाशीष शुक्ला का कहना है . कोरोना ने जीवन को बहुत प्रभावित किया है द्य बच्चों का लंबे समय तक घर पर ही रहनाए पढ़ाई का बोझए लैपटॉप व स्मार्टफोन पर ऑनलाइन पढ़ाई करना आदि ने उन्हें सामाजिकता से बहुत हद तक दूर किया है द्य इसका एक कारण आज का भौतिकतावादी युग है। एक अच्छा जीवन जीने के लिए परिवार के पुरुषों के साथ महिलाएं भी काम करने लगी हैं। कामकाजी महिलाओं के बच्चे नौकरानी के भरोसे रहते हैं। बच्चों को घर से बाहर खेलने के बजाय मोबाइल पकड़ा दिया जाता है। इसके साथ ही बच्चा अभिभावकों को परेशान न करे तो वह बच्चों के हाथ में स्मार्टफोन पकड़ा देते हैंं। मोबाइल, लैपटॉप बच्चों के मानसिक विकास में बहुत बड़े अवरोधक हैं।

बलरामपुर अस्पताल के मानसिक रोग विभाग के अध्यक्ष डा देवाशीष शुक्ला

मोबाइल और लैपटॉप के उपयोग से बच्चों में चिड़चिड़ापन, गुस्सा, एकाकीपन, लापरवाह, एकाग्रता की कमी, जिद्दी, अभिभावकों की बातों को अनसुना करनाए नींद न आना आदि समस्याएं आती हैं। इसके साथ ही शारीरिक समस्याएं जैसे आँखों की रोशनी कम होनाए आँखों में दर्दए मोटापा का सामना करना पड़ता है द्य विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि छोटे बच्चों को दो घंटे से ज्यादा मोबाइल नहीं देखना चाहिए। इस समस्या का समाधान यही है कि बच्चों को स्मार्टफोन से दूर रखें। उन्हें खेलकूद, पढ़ने या उनकी रुचि के किसी काम में व्यस्त रखें। माता.पिता बच्चों को भरपूर समय दें द्य बच्चों की मतों को अनसुना न करें द्य स्मार्टफोन देखने के समय को सीमित करेंं। इस पर भी नजर रखें कि बच्चे क्या देख रहे हैं क्योंकि जो चीज बच्चे देखते हैं उसका असर बच्चों के मस्तिष्क पर पड़ता है।

डा. देवाशीष का कहना है कि मानसिक रोगों में लगातार इजाफा हो रहा है। इसका मुख्य कारण आज का भौतिकतावादी युग, कोरोना सहित गंभीर बीमारियां हैंं। कोरोना के चलते आर्थिक परेशानियाँए संवेदनहीनता से लोग रूबरू हो रहे हैं। इस कारण लोगों में तनाव और मानसिक बीमारियाँ बढ़ रही हैंं। इस संबंध में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि वर्ष 2025 तक मानसिक बीमारी दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी बीमारी होगी जिसमें डिप्रेशन अर्थात अवसाद मुख्य होगा। यह लोगों के जीवन को बड़े पैमाने पर प्रभावित करेगा।

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