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कोविड-19: इन गलतियों का खामियाजा भुगत रहा इंसान

कोविड-19 से आज समूचा विश्व ग्रसित है। चीन से शुरू हुआ कोरोना वायरस देखते-देखते विश्व के कई प्रमुख देशों में इस कदर फैला कि लोगों की जिंदगी और जीने का ढंग ही बदल गया। इसको कहने में कोई गुरेज नहीं कि लोगों की अव्यवस्थित जिंदगी जीने के ढंग ने भी इस वारयस को फैलाने में खासी मदद की है। लेकिन, कभी सोंचा गया कि आखिर, ऐसा क्या रहा कि इस वारयस ने इतनी जल्दी विश्व की महाशक्तियों को घुटने के बल ला दिया? क्यों कोविड-19 से ग्रस्त देशों को लाॅकडाउन करना पड़ा? आखिर कैसे सभी भौतिक संसाधनों से परिपूर्ण देशों के लोगों को देखते ही देखते वर्षों पुरानी जिंदगी जीने पर मजबूर होना पड़ा? इन सबका सिर्फ एक ही कारण है, वह है मनुष्य का मशीनीकरण होना।

समय से तेज भागने की दौड़ में इंसान ने प्रकृति को चुनौती दे डाली। न जाने, कितने कल-कारखानों की चिमनियों से निकलने वाले धुएं, जहरीली गैसों ने न सिर्फ इंसानों में विभिन्न रोगों को जन्म दिया, बल्कि पेड़-पौधे और पशु-पक्षी भी इससे अछूते नहीं रहे। पिछले कई दशकों से पर्यावरण में होने वाले बदलाव को लेकर विभिन्न देशों की सरकारों ने चिंताएं जताईं, सेमीनार, कार्यक्रम में की जाने वाली बातों को अपने नागरिकों के जीवन में उतारने की सोंची, लेकिन कभी दृढ़ इच्छाशक्ति से इन बातों का क्रियान्वयन नहीं करा पायीं।

आपने गौर किया है कभी कि कोविड-19 से ग्रस्त होने वालों में अधिकतर वहीं क्यों हैं, जिनका इम्यून सिस्टम गड़बड़ है। आखिर सरकारें अपने नागरिकों से इम्यूनिटी पावर (रोग प्रतिरोधक क्षमता) बढ़ाने की बात क्यों कर रही हैं? क्यों लोगों को योग करने की सलाह दी जा रही है? क्योंकि, कोई भी वायरस तभी बखूबी अपना असर दिखा पाता है, जब मनुष्य के शरीर के अंदर रोगों से लड़ने की क्षमता का ह्रास हो जाता है। और, प्रबुद्ध वर्ग को यह बताने की जरूरत नहीं कि रोग प्रतिरोधक क्षमता कम क्यों हो गयी है।

मशीनीकरण के दौर में अव्यवस्थित दिनचर्या और खान-पान इसका सबसे बड़ा कारण रहा। गौर करिए, जिन पश्चिमी देशों की भारतवासी नकल करने जुटे थे, आज कोरोना के दौर में वही पश्चिमी देश भारत के रीति-रिवाजों और खान-पान की नकल कर रहे हैं। हाथ मिलाने को छोड़कर हाथ जोड़कर नमस्ते करना शुरू कर दिया है। समूचे विश्व में शाकाहार को लेकर एक बयार सी चलने लगी है। हाथ जोड़ कर नमस्ते करना आज सबकी मजबूरी हो गयी है। जबकि, भारत में दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार करना संस्कार है और हमारी संस्कृति में भी है।

बहुत जल्दी विकसित बनने की होड़ में हमने इतना प्रदूषण खुद में भर लिया था कि लोगों में अस्थमा, ब्रांकाइटिस जैसी बीमारियों का वास हो चला। खान-पान की लापरवाही ने कई बीमारियों को हमारे शरीर में जन्म दे दिया था। अमेरिका, ब्रिटेन, स्पेन, इटली, रूस, जापान कौन सा ऐसा देश है, जो कोविड-19 के समय लोगों को सोशल डिस्टेन्सिंग और साफ-सफाई रखने का पाठ नहीं पढ़ा रहा। लेकिन, हम लोगों को अभी भी यह समझ में नहीं आ रहा है कि हमें मशीनीकरण को छोड़कर अपने हाथों पर जोर देना होगा। हमें आत्मनिर्भर बनना होगा। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक दिन पहले राष्ट्र के नाम अपने सम्बोधन में इसी बात पर विशेष जोर दिया कि हमें ‘आत्मनिर्भर’ बनना होगा।

दरअसल, हम लोग परजीवी बन गए। मशीन के दौर में शरीर का कम से कम इस्तेमाल और नशे के सेवन ने इम्यूनिटी पावर भी कम कर दिया। साथ ही, लापरवाही और कामचोरी भी लोगों में हद दर्जे भर गई। सोंचिए, जो मजदूर लाॅकडाउन के बाद सैकड़ों किलोमीटर दूर पैदल अपने मुकाम पहुंचे, उन्हें कोविड-1़9 महामारी ने नहीं जकड़ा। वहीं, शहरों में लोग इस बीमारी से संक्रमित हो गए। कारण साफ है, कम से कम शारीरिक मेहनत और गलत खान-पान। साथ ही, प्रदूषण की भी इसमें अहम भूमिका रही।

वहीं, सरकार द्वारा देशव्यापी लाॅकडाउन घोषित करने के बाद पूरे देश में जलवायु में भी अभूतपूर्व परिवर्तन हुए हैं। मई के महीने में बारिश की फुहारों और बादलों की लुकाछिपी को लोगों ने इससे पहले शायद ही कभी देखा हो। प्रदूषण का स्तर सिर्फ नीचे ही नहीं गिरा, बल्कि देश की राजधानी दिल्ली भी ग्रीन जोन में पहुंच गई। यह कोई मामूली परिवर्तन नहीं रहे।

इन सभी परिवर्तनों को यदि हम गौर करें, तो स्पष्ट है कि मानव का मशीनीकरण से कुछ कदम पीछे हटना पर्यावरण, जलवायु और स्वयं मनुष्य के लिए बहुत हितकर रहा है। जब तक कोरोना वायरस की वैक्सीन बनेगी, यह तय है कि मनुष्य स्वभावतः काफी बदल चुका होगा और साथ ही बदल चुकी होगी इस धरती की आबोहवा। ऐसे में, एक शेर और बात खत्म-

जिसे गुमान था, मिलेगा ‘खुदा’ खुद आकर।
लगी एक ठोकर ‘मंगल’, और वो जमीदोज़ हुआ।।

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