अन्तर्राष्ट्रीय

श्रीलंका के लिए IMF के राहत पैकेज के सपोर्ट में सबसे आगे भारत

नई दिल्ली : भारत कर्ज में घिरे श्रीलंका के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) राहत पैकेज के समर्थन में खड़ा हुआ है। इसके साथ ही भारत गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहे श्रीलंका के उबरने के प्रयासों को समर्थन देने वाला पहला प्रमुख ऋणदाता बन गया है। 2 दिवसीय यात्रा पर गुरुवार को श्रीलंका पहुंचे जयशंकर ने श्रीलंकाई समकक्ष अली साबरी और राष्ट्रपति रानिल विक्रमासिंघे सहित अन्य शीर्ष नेताओं से मुलाकात की। दोनों देशों के बीच नए द्विपक्षीय समझौते के तहत भारत ने समुदाय विकास परियोजना की राशि दोगुनी करने पर सहमति जताई। जयशंकर ने भारत की ओर से लागू आवासीय परियोजना के तहत गाले, कैंडी और नुवारा इलिया जिले में 300 तैयार घरों को सौंपा।

जयशंकर ने कहा कि कोलंबो आने का मेरा पहला मकसद इन कठिन पलों में श्रीलंका के साथ भारत की एकजुटता व्यक्त करना है। उन्होंने कहा, ‘हमारे लिए यह ‘पड़ोसी पहले’ का मुद्दा है और किसी सहयोगी को अपने हाल पर नहीं छोड़ना है। भारत ने दृढ़ता से महसूस किया है कि श्रीलंका के ऋणदाताओं को इसके उबरने के प्रयासों में मदद के लिए सक्रिय कदम उठाने चाहिए। भारत ने तय किया है कि वह दूसरों का इंतजार नहीं करेगा, बल्कि उसे जो उचित लगेगा, वैसा करेगा। हमने श्रीलंका के लिए आगे बढ़ने का रास्ता साफ करने की खातिर IMF को वित्तपोषण का आश्वासन दिया है। हमारी उम्मीद है कि इससे न केवल श्रीलंका की स्थिति मजबूत होगी, बल्कि यह भी सुनिश्चित होगा कि सभी द्विपक्षीय ऋणदाताओं के साथ समान व्यवहार किया जाए। ‘

मालूम हो कि श्रीलंका 1948 में आजादी के बाद सबसे गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है और उसे संकट से उबरने में मदद के लिए भारत ने विभिन्न तरीकों से करीब 4 अरब अमेरिकी डॉलर की मदद दी है। श्रीलंका आईएमएफ से 2.9 अरब डॉलर का ऋण हासिल करने की कोशिश में लगा है। वह चीन, जापान और भारत जैसे प्रमुख कर्जदाताओं से वित्तीय आश्वासन हासिल करने की कोशिश कर रहा है। दरअसल, आईएमएफ ने राहत पैकेज को रोक दिया है और वह श्रीलंका के प्रमुख कर्जदाताओं से वित्तीय आश्वासन चाहता है।

श्रीलंका को IMF की ओर से मिलने वाली सहायता राशि को लेकर चीन ने अभी तक लेटर ऑफ सपोर्ट नहीं सौंपा है। हालांकि, माना जा रहा है कि अगले कुछ ही दिनों में ड्रैगन की ओर से इसे लेकर समर्थन मिल सकता है। इसे चीन की आनाकानी के तौर पर भी देखा जा रहा है। श्रीलंका आज जिस गहरे आर्थिक संकट का सामना कर रहा है उसके पीछे चीन का भी हाथ बताया जाता है। दरअसल, श्रीलंका ने व्हाइट एलिफैंट इंफ्रास्ट्रक्चर पोर्ट और एयरपोर्ट प्रोजेक्ट्स के लिए चीनी बैंक से लोन लिया जो कि उसे बहुत ही ऊंची दर पर मिला। श्रीलंका की आर्थिक स्थिति बिगड़ने के पीछे इसे भी अहम कारक माना जाता है।

इतना ही नहीं, चीन ने तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा की श्रीलंका की प्रस्तावित यात्रा का भी विरोध किया है। चीनी प्रशासन की ओर से कहा गया कि दिवालिया द्वीप राष्ट्र को द्विपक्षीय संबंधों की रक्षा करनी चाहिए। दूतावास के बयान में कहा गया है कि चीनी दूतावास के एक शीर्ष अधिकारी ने यात्रा का विरोध व्यक्त करने के लिए कैंडी शहर में शक्तिशाली बौद्ध धर्मगुरुओं से मुलाकात की। दलाई लामा की यात्रा के लिए अभी तक कोई तारीख तय नहीं की गई है। मालूम हो कि दलाई लामा 1959 में तिब्बत से भाग जाने के बाद से भारत में रह रहे हैं। तिब्बत की निर्वासित सरकार भारत से संचालित होती है और देश में 1,60,000 से अधिक तिब्बती रहते हैं।

वहीं, श्रीलंकाई राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के कार्यालय की ओर से जारी बयान में कहा गया, ‘भारत की मदद से श्रीलंका में सामुदायिक विकास परियोजना संबंधी समझौते पर वर्ष 2005 में हस्ताक्षर किए गए थे। इस परियोजना की सीमा 30 करोड़ रुपये थी, जिसे इस समझौते में दोगुना कर 60 करोड़ रुपये किया जाएगा। भारत के विदेश मंत्री से बातचीत के दौरान श्रीलंका के कर्ज पुनगर्ठन कार्यक्रम पर विशेष गौर किया गया और भारत सरकार की ओर से इसपर सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली।’

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