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उत्तराखंड में पिघल रहे ग्लेशियर, क्लाइमेट चेंज से पैदा हुआ संकट

दस्तक टाइम्स, देहरादून। क्लाइमेट चेंज, आज दुनिया की सबसे बड़ी समस्या के रूप में सामने आ रहा है। भारत में उत्तराखंड सहित हिमालयी राज्यों पर भी क्लाइमेट चेंज का साया पड़ने लगा है। इसके बुरे परिणाम भी देखने को मिलने लगे हैं। हाल ही में एक रिपोर्ट में उत्तराखंड में ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने की पुष्टि भी हुई है। पिछले दो से तीन दशक में ग्लेशियरों के पिघलने की गति में तेजी दर्ज हो रही है। इस स्थिति को देखकर वैज्ञानिक भी हैरान हैं। वैज्ञानिकों ने इसका कारण क्लाइमेट चेंज को माना है।

ग्लेशियरों में सालाना पिघल रही 20 अरब टन बर्फ

जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयन पर्यावरम संस्थान कटारमल (अल्मोड़ा) की ओर से ग्लेशियरों पर एक महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट जारी की गई है। इसमें सन् 1975 से 2010 तक ग्लेशियरों की भौतिक स्थिति का अध्ययन किया गया था। वैज्ञानिकों ने पाया है कि ग्लेशियरों में 1975 से 1985 तक सालाना औसतन 7 अरब टन बर्फ पिघली है। जबकि, वर्ष 1985 से 2000 तक सालाना 20 अरब टन बर्फ पिघली, जो कि अनपेक्षित वृध्दि को दर्शाता है। वर्ष 2000 से 2010 तक भी 20 अरब टन बर्फ पिघली है। इसके बाद से अब तक बर्फ पिघलने की मात्रा में कमी देखने को नहीं मिली है। वैज्ञानिकों ने चेताया है कि क्लाइमेट चेंज को रोकने की दिशा में कड़े व प्रभावी कदम उठाने होंगे। उत्तराखंड व हिमालयी राज्यों में पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण नितांत आवश्यक है।

राष्ट्रीय आपदा सम्मेलन में भी वैज्ञानिकों ने किया था आगाह

बता दें कि इससे पहले भी दिसंबर 2023 में देहरादून में हुई छठवें राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन सम्मेलन में भी देश-विदेश के वैज्ञानिकों ने स्वीकारा था कि उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर जैसे हिमालयी राज्यों में क्लाइमेट चेंज का बुरा असर पड़ रहा है। इससे न सिर्फ ग्लेशियर, मानसून, तापमान के रूप में जलवायवीय व मौसमीय चक्र पर खतरा मंडरा रहा है, बल्कि ये दुष्प्रभाव राज्यों में प्राकृतिक आपदाओं का कारण भी बन रहे हैं। इसे उत्तराखंड की धामी सरकार ने भी गंभीरता से लिया है और राज्य के विकास में ‘इकोनॉमी व इकोलॉजी’ मॉडल को अपनाया है।

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