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ओडिशा के ‘दशरथ मांझी’, सियासी वादे फेल हुए तो पुल बनाने के लिए बेच दिए पत्नी के गहने

भुवनेश्वर: जहां सियासी वादे करक भूल जाती है वहीं जनता की मेहनत और लगन काम करती है। ओडिशा के रायगढ़ जिले में गुंजारमपुंजारा गांव में स्थानीय नेताओं ने कई बार कहा कि पास की नदी पर स्थायी पुल का निर्माण किया जाएगा लेकिन समय क धूल में चुनावी वादे कहां खो गए, कुछ पता नहीं चला। यहां लोगों के सामने इलाज की बड़ी समस्या थी। नदी की वजह से पास के जिले कालाहांडी के अस्पताल जाना मुश्किल था। नदी में जब पानी ज्यादा होता था तो पार करते वक्त कई ग्रामीण बह भी गए। लेकिन यहां 26 साल के दलित युवक रंजीत नायक और उनकी पत्नी ने लोगों की समस्या का समाधान निकालने का बीड़ा उठाया।

नायक ने अपनी पत्नी की जूलरी बेच दी और नदी पर तीन अस्थायी पुल बनाने का फैसला कर लिया। उन्होंने बांस और लकड़ी से पुल बनाना शुरू किया। नायक ने कहा, नदी के ऊपर पुल ना होने की वजह से गांव वालों को बहुत परेशानी होती थी। हम बहुत समय से यहां पुल बनाने का विचार कर रहे थे। नायक और उनके पिता को पुल बनाने में तीन महीने का वक्त लग गया। इसके बाद नायक ने फैसला किया कि वह पत्नी की जूलरी बेचकर और लोगों की भी मदद लेंगे और बांस का इंतजाम करेंगे।

नायक ने 70 गहने बचकर 70 हजार रुपये जुटाए थे। नायक ड्राइवर का काम करते थे। उन्होंने कहा, मैंने और मेरे पिता ने फैसला किया कि किसी भी हालत में जब तक काम नहीं पूरा हो जाएगा वे दोनों ही ब्रेक नहीं लेंगे। ऐसे में नायक ने ड्राइवर का काम भी छोड़ दिया। पिछले महीने यह पुल बनाकर तैयार हो गया। इस निर्माण से गांव के लोगों को राहत मिली। अब लोग आसानी से बाइक से भी नदी पार कर सकते हैं और आसानी से अस्पताल भी पहुंच सकते हैं। यहां पर डोंगासिल ग्रामपंचायत में एक अस्पताल है लेकिन सड़क की हालत बहुत खराब है। जब लोग नदी पार कर लेते हैं तो आसानी से अस्पताल तक पहुंच जाते हैं।

ओडिशा सरकार ने अपनी महत्वाकांक्षी बीजू सेतु योजना शुरू की है लेकिन पिछड़े इलाकों में अभी प्रभावी ढंग से काम नहीं हो रहा है। कैग की हालिया रिपोर्ट में कहा गया था कि बिना लंबे समय का विचार किए प्रोजेक्ट चुने गए हैं। मंत्रियों और विधायकों ने निर्देशों का पालन भी नहीं किया है। सर्वे और अध्ययन के दस्तावेज भी नहीं उपलब्ध करवाए गए हैं। ऐसे में कई ऐसे इलाके पुल से वंचित रह जाएंगे जहां लोगों को ज्यादा जरूरत है।

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