स्पोर्ट्स

नहीं रहे ओलंपिक गोल्ड मैडल चैंपियन हॉकी मेंबर रविंद्र पाल सिंह

स्पोर्ट्स डेस्क : मॉस्को ओलंपिक खेलों में भारतीय हॉकी टीम को गोल्ड जीतने में बड़ी भूमिका निभाने वाले रविंद्र पाल सिंह कोरोना से जंग हार गये. जुझारू प्रवृति के प्लेयर रहे रविंद्र पाल सिंह ने भी लखनऊ के कई अस्पतालों में कोरोना से संघर्ष किया और 22 दिन का उनकी जंग शनिवार को सुबह खत्म हुई.

उन्होंने लखनऊ के विवेकानंद हॉस्पिटल में आखिरी सांस ली, जहां पर वह दो दिन से वेंटिलेटर पर थे. रविंद्र पाल सिंह को लखनऊ के टीएस मिश्रा अस्पताल के बाद 24 अप्रैल को विवेकानंद हॉस्पिटल में एडमिट करवाया गया था.

रविंद्र पाल सिंह के कोरोना की चपेट में आने के बाद विवेकानंद अस्पताल में 24 अप्रैल की रात 2:30 बजे गंभीर स्थिति में एडमिट करवाया गया था. तब से वो वेंटिलेटर पर थे.

विवेकानंद पॉलीक्लिनिक के मीडिया प्रभारी डॉ विशाल ने बोला कि 5 मई को उनकी कोरोना रिपोर्ट निगेटिव निकली थी. इसके बाद 6 को उन्हें नेगेटिव वार्ड में शिफ्ट किया गया था. वह बाईपेप पर थे. मगर उनका बीपी और ऑक्सीजन सैचुरेशन अनियंत्रित होने की वजह से शुक्रवार की रात फिर से वेंटिलेटर पर लेना पड़ गया.

शनिवार को सुबह 5:00 बजकर 34 मिनट पर उनकी मौत हो गयी. इलाज में धन की कमी के चलते रविंद्र पाल सिंह आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे, जिसके बाद हॉकी इंडिया ने उनके इलाज के लिए पांच लाख रुपये देने का फैसला लिया था.

उनके घरवालों ने यूपी सरकार से भी मदद की मांग की थी. हॉकी इंडिया के पदाधिकारियों के अनुसार दस मई को दिल्ली में लॉकडाउन खुलने पर पैसा ट्रांसफर होगा. मॉस्को ओलंपिक गोल्ड मैडल चैंपियन भारतीय हॉकी टीम के अहम मेंबर रहे रविंद्र पाल सिंह के लिए हॉकी ही सब कुछ था.

मॉस्को के बाद वो 1984 के लॉस एंजिलिस ओलंपिक में भी खेले थे. सीनियर टीम में आने से पहले 1979 जूनियर वर्ल्ड कप भी खेले. सेंटर हॉफ पोजीशन पर खेलने वाले रविंद्र पाल सिंह दो ओलंपिक के अलावा 1980 व 1983 में चैम्पियंस ट्रॉफी और 1982 वर्ल्ड कप व 1982 एशिया कप में भी खेले.

इसके बाद कमर में दर्द की वजह से उनको अंतरराष्ट्रीय हॉकी जगत से रिटायरमेंट लेना पड़ा. दो ओलंपिक के अलावा उन्होंने कराची में चैंपियंस ट्रॉफी (1980, 1983), 1983 में हांगकांग में सिल्वर जुबली 10-नेशन कप, 1982 में मुंबई में वर्ल्ड कप और कराची में 1982 एशिया कप में किया था.

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