उत्तराखंड

आपदा संवदेनशील जिलों में टॉप पर उत्तराखंड का रुद्रप्रयाग, आज फिर क्यों हुई चर्चा ?

देहरादून (गौरव ममगाईं)। देश में सबसे संवेदनशील राज्यों में उत्तराखंड को शामिल किया गया है। देश के सबसे चार संवेदनशील जिलों में अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाया जा रहा है, जिनमें उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग को भी शामिल किया गया है। इससे एक बार फिर उत्तराखंड की आपदा की दृष्टि से सबसे संवेदनशील राज्य के रूप में चर्चा होने लगी है। इससे पहले भी वैसे भी वैज्ञानिक उत्तराखंड व अन्य हिमालयी राज्यों को आपदा की दृष्टि से अति संवेदनशील बताते रहे हैं।

   दरअसल, जियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया देश में सबसे संवेदनशील जिलों में आपदा की पूर्व सूचना प्रदान करने के लिए सूचना प्रणाली विकसित कर रहा है। इसके लिए जियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया ने 11 राज्यों में अर्ली वार्निंग सिस्टम लगायेगा। पायलट प्रोजेक्ट के रूप में पहले चार जिलों में यह सिस्टम लगाया गया है। इसमें सबसे संवेदनशील जिलों को शामिल किया है। चिंता की बात है कि इसमें उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग को देश के चार संवेदनशील जिलों में स्थान दिया है। यहां अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाया गया है, जो भूस्खलन व भूकंप जैसी आपदा से एक या दो दिन पहले ही सूचना देने में सक्षम होगा, ताकि लोगों को संभावित आपदा को लेकर अलर्ट किया जा सके। पायलट प्रोजेक्ट के सफल रहने के बाद सभी 11 राज्यों में इस सिस्टम को लगाया जायेगा।

11 राज्यों में कौन-कौन से राज्य हैं शामिल ?

उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, केरल, सिक्किम, असम, नागालैंड, मिजोरम, मेघालय व कर्नाटक।

उत्तराखंड आपदा की दृष्टि से क्यों है संवेदनशील ?

उत्तराखंड की भौगोलिक विषमता आपदा का मुख्य कारण मानी जा सकती है। साढ़े 53 हजार वर्ग किमी. क्षेत्रफल वाले उत्तराखंड राज्य का लगभग 86 प्रतिशत भू-भाग पर्वतीय है। पूरा राज्य हिमालय की 4 पर्वत श्रेणियों पर बसा है। ऊपरी एवं सीमांत भाग (सबसे कम) ट्रांस हिमालय में हैं, उत्तरकाशी, चमोली, पिथौरागढ जिले का अधिकांश क्षेत्र महान हिमालय (ग्रेट हिमालय) में हैं। जबकि, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी (निचला हिस्सा), चमोली (निचला हिस्सा), बागेश्वर, अल्मोड़ा जैसे जिले मध्य हिमालय व देहरादून, नैनीताल, टिहरी, पौड़ी समेत कई जिले शिवालिक हिमालय में हैं। इन पर्वत श्रेणियों को टेथिस भ्रंश, मुख्य केंद्रीय भ्रंश (मेन सेंट्रल थ्रस्ट), मुख्य सीमांत भ्रंश (मेन बाउंड्री थ्रस्ट) अलग करती हैं।

इन पर्वत श्रेणियों को अलग करने वाली भ्रंश रेखाओं को भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील माना जाता है। मुख्यतः मेन बाउंड्री थ्रस्ट को, क्योंकि यही थ्रस्ट लाइन (भ्रंश रेखा) टिहरी डैम के नीचे से भी होकर गुजरती है। थ्रस्ट लाइन होने के कारण उत्तराखंड के कई जिले संवेदनशील हैं और यहां का पर्वतीय इलाका होना इसे और संवेदनशील बना देता है। वाडिया हिमालय भूगर्भ शोध संस्थान के वैज्ञानिकों ने भूकंप के लिए थ्रस्ट लाइन के अलावा कई अन्य कारण को भी महत्वपूर्ण कारक बताया है। वहीं, रुद्रप्रयाग जिले की बात करें तो यह महान हिमालय में बसा है। यहां अधिक संख्या में बड़े ग्लेशियर हैं, जिनमें झील का निर्माण भी हुआ है। इसलिए यहां ग्लेशियर टूटने, बाढ़, भूकंप व भूस्खलन की संभावना अधिक बनी रहती है।

 उत्तराखंड में 1 दिसंबर को संपन्न हुआ था राष्ट्रीय आपदा सम्मेलन

बता दें कि 28 नवंबर से 1 दिसंबर तक चारदिवसीय छठवां राष्ट्रीय आपदा सम्मेलन का आयोजन भी उत्तराखंड में ही हुआ था, जिसमें देश-विदेश के बड़े वैज्ञानिकों ने स्वीकारा था कि भारत में आपदा से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, सिक्किम जैसे हिमालयी राज्य हैं। इसके लिए उन्होंने जलवायु परिवर्तन को भी जिम्मेदार ठहराया था और कार्बन उत्सर्जन को रोकने व वनीकरण (पौधरोपण) की जरूरी बताया था।

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