दस्तक-विशेष

कहानी -डॉल्फिन और मेंढक

लेखक-जंग हिन्दुस्तानी

बरसात का महीना जैसे-जैसे खत्म होता जा रहा था वैसे वैसे इस पहाड़ी नदी का पानी भी साफ होता चला जा रहा था।नदी का प्रवाह भी शांत हो चला था। डॉल्फिन को नदी के किनारे पर बैठकर बोलते हुए मेंढक की आवाज सुनाई दी। आवाज तो मधुर नहीं थी लेकिन उसका लंबा तराना सुनकर के बरबस ही उस ओर खिंची चली गई ।

इस नदी में डॉल्फिन का पूरा परिवार रहता था। पूरे परिवार में यह डाल्फिन जिसे घर के लोग डॉली कहकर के पुकारते थे ,अभी इसने जवानी की दहलीज पर कदम रखा था लेकिन इसके अंदर चंचलता कूट-कूट कर भरी हुई थी। काफी देर तक मेंढक का तराना सुनती रही। शांत नदी के अंदर एकाकी जीवन बिता रही डॉली को कोई साथी नहीं मिल रहा था जिसके साथ वह नाच गा सके, उछल कूद कर सके। कुदरत ने पहले से ही उसे अंधा बना करके रखा था। केवल गंध के सहारे ही वो सब कुछ पहचान लिया करती थी। जब मेंढक ने गाना गाना बंद किया तो दोस्ती बढ़ाने के उद्देश्य से डॉल्फिन ने उससे पूछा- आप कौन हैं और इतना अच्छा कैसे गा लेते हैं? मेंढक ने कहा कि मैं बहुत बड़ा गायक हूँ। मेरा नाम शूरसेन है। मैं आजकल नदी के किनारे बैठ कर संगीत की साधना कर रहा हूं। मैंने बहुत लोगों को संगीत की शिक्षा दी है।

मेंढक की बात से डॉली बहुत प्रभावित हुई । बचपन से ही उसकी भी गाने की इच्छा होती थी तो सीटी बजा बजाकर अपना शौक पूरा कर लेती थी। धीरे-धीरे रोज शाम को डॉल्फिन और मेंढक आपस में मिलने लगे। गहरी दोस्ती भी हो गई। जब भी मेंढक को नदी घूमने की इच्छा होती वह फटाफट डॉल्फिन की पीठ पर सवार हो जाता था। डॉल्फिन सीटी बजाते हुए नदी में इधर से उधर घूमती रहती थी। बातूनी मेंढक की बातों में डॉल्फिन को बहुत मजा आ रहा था। धीरे-धीरे दोनों में आपस में प्रेम भी हो गया और अब दोनों लंबी लंबी यात्रा भी करने लगे। मेंढक डॉल्फिन का मार्गदर्शन करता था और रास्ते का आंखों देखा हाल सुनाया करता था। इस दोस्ती को जब डॉल्फिन के परिवार वालों ने देखा तो उन्हें अच्छा नहीं लगा और उन्होंने डॉली को डांट फटकार भी सुनाई। लेकिन डॉल्फिन का मन अब मेंढक सूर सेन के बिना नहीं लगता था।

डॉली ने मेढ़क से घर वालों के द्वारा परेशान किए जाने और जल्द ही उसकी शादी किसी दूसरे के साथ कर देनी की बात बताई तो मेंढक में डाली से कहा कि तुम्हारी इतनी बड़ी संगीतकार से दोस्ती उन लोगों को अच्छी नहीं लग रही है। जहां पर संगीत की कदर न हो, वहां रहने से क्या मतलब है? हमें नदी छोड़कर के बगल में बैराज से बहने वाली नहर में निकल चलना चाहिए। फिर हमको कोई बोलने वाला नहीं रहेगा। हमारा प्यार हमेशा के लिए अमर हो जाएगा ।

डॉल्फिन मेंढक की बात में आ गई और उसने अपना घर छोड़ दिया। मेंढक डॉल्फिन की पीठ पर बैठकर के रास्ता बताता रहा और बैराज के गेट के नीचे से निकलते हुए नहर में आ गए । यहां से प्रेम गीत गाते हुए मेंढक और डॉल्फिन ने सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा की। अचानक धीरे-धीरे नहर का पानी घटने लगा।डॉल्फिन को भोजन के लिए न तो नदी का शैवाल ही मिल पा रहा था और न ही मछलियाँ। मेंढक को तो हर जगह भोजन मिल जा रहा था लेकिन डॉल्फिन भुखमरी का शिकार होती जा रही थी। उसने अपनी सुनने वाली शक्ति का उपयोग करके मेंढक को बताया कि आगे बिल्कुल भी पानी नहीं है। अगर पानी इसी तरह सूखता रहा तो हम मर जाएंगे ।

मेंढक ने कहा कि चिंता की कोई बात नहीं है। हम तो मिट्टी चाट करके अपना जीवन चला लेते हैं और छह माह तक जमीन के अंदर दबे रहते हैं। हमें भूख प्यास कुछ नहीं लगती। तुम भी अपनी आदत में परिवर्तन लेकर आओ। खा खाकर के मोटी हो गई हो। वजन कम करो, नहीं तो बीमारियां घेर लेंगी। हम जा रहे हैं और अगले बरसात में फिर मिलेंगे। इतना कहकर मेंढक डॉल्फिन के पीठ से कूद कर नहर की ऊंचाइयों पर चढ़ गया। मेंढक की बात और उसकी हरकत को देख कर डॉल्फिन को अपने फैसले पर बहुत पछतावा हुआ लेकिन अब कर भी क्या सकती थी । बहुत देर हो चुका था ।वापस लौटने का प्रयास किया कई किलोमीटर तक थोड़े से पानी और कीचड़ में घिसटते हुए भी आई लेकिन मछली फंसाने के लिए शिकारियों के द्वारा लगाए गए जाल में फंस गई और उन अज्ञानियों के द्वारा मारी गई जो डॉल्फिन को मछली समझ रहे थे।

(कहानी काल्पनिक है)

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