दस्तक-विशेष

कहानी – जंगल का कानून

लेखक- जंग हिन्दुस्तानी

जंगल के बीचोबीच से होकर बहने वाली इस नदी का पानी जितना साफ और मीठा है उतना ही खतरनाक भी ,क्योंकि इस पानी में हजारों की संख्या में मगरमच्छ और घड़ियाल रहते हैं जो पलक झपकते ही किसी को अपना भोजन बना लेते हैं। बाघिन को उस दिन इस बात का कतई अंदाजा नहीं था कि पानी के अंदर कोई मौजूद है। अपने छोटे से शावक के साथ नदी के किनारे जाकर पानी पीना शुरू किया था लेकिन यह बहुत महंगा पड़ गया। जैसे ही बाघिन ने पानी में मुंह डाला, वैसे ही एक मगरमच्छ ने हमला बोलते हुए उसके मुंह को जबड़ों में दबोच लिया। बाघ के बच्चे ने पानी में कूदकर अपनी ओर से बहुत हो हल्ला करते हुए अपनी माँ को बचाने का प्रयास किया लेकिन कुछ नहीं कर सका। एक ही झटके में मगरमच्छ बाघिन को लेकर पानी में अदृश्य हो गया। रोता बिलखता नन्हा शावक बाघ मगरमच्छ को पुकार पुकार कर मां को छोड़ने का आग्रह करता रहा । देर शाम तक इंतजार करने के बाद वापस जंगल लौट आया। मात्र एक साल की उम्र में वह अनाथ हो गया था। खुद को तेन्दुआ और दूसरे अन्य बाघों के हमले से बचाने की चुनौती उसके सामने थी। अब जंगल के अंदर बसा हुआ गांव के किनारे का जंगल उसका आशियाना बन गया था। उसे जंगल के अन्य जीवों से अधिक गांव के लोगों पर भरोसा था।

जब से उसकी माँ की मगरमच्छ के हमले में मौत हुई है तब से उसके मन को बहुत कष्ट है। वह रोज इस आशा के साथ नदी के किनारे उस स्थान पर जाता था कि शायद उसकी माँ जीवित लौट आए। आज सर्दी के कारण वह हत्यारा मगरमच्छ नदी के किनारे धूप सेंक रहा है।बाघ का बच्चा उस को अच्छी तरह से पहचानता है । उसने दूर से मगरमच्छ से कहा कि मेरी मां को कहाँ ले गए हो? मगरमच्छ ने आंख खोलकर के देखा और बोला -बाघ के बच्चे वापस लौट जाओ। जंगल का यही कानून है कि मौका पाने पर किसी को नहीं छोड़ा जाता है। हम सब एक दूसरे के भोजन हैं। बाघ को सबकुछ समझ में आ गया था अब वह वहां से वापस लौट आया।

मां को बच्चे से जुदा हुए तीन साल हो चुके हैं। नन्हा शावक बाघ युवा हो चुका है और उसने मुसीबतों से लड़ते हुए खुद को मजबूत भी बना लिया है। इस सब के बाद भी उसकी आँखें न तो मां को भूल पांई हैं और न ही उस हत्यारे मगरमच्छ को। चांदनी रात थी। बाघ अपने दैनिक भ्रमण के लिए निकल चुका था। रात में 20 से 25 किलोमीटर तक घूमना और दिन में सोना उसकी आदत बन चुकी थी।गांव के बाहर बनी खांई के किनारे किनारे चल रहा था। अचानक उस पतले से नालीनुमा खांई में पड़ा हुआ मगरमच्छ दिखाई दिया।

बाघ ने खुद को सुरक्षित करते हुए मगरमच्छ से डांटते हुए पूंछा तुम कौन हो और यहां गांव के किनारे नाली में कैसे आए? मगरमच्छ ने कहा कि अब गांव के लोग नदी के किनारे अपने जानवरों को पानी पिलाने के लिए नहीं लाते हैं तो हम को भोजन कैसे प्राप्त हो? इस नाते हम गांव के अंदर बने हुए तालाब में रहने के लिए जा रहे थे तभी गांव के लोगों की नजर हमारे उपर पड़ गई । उनसे बचने के चक्कर में मैं नाली में भागकर आया और यहां फंस गया। अब मैं ना आगे जा पा रहा हूं और न पीछे। मुझे बचा लो। कल दिन भर चरवाहे लड़कों ने मुझ पर पत्थर बरसाया है। मेरा अंग अंग टूट गया है। दर्द हो रहा है और वह बोल कर गए हैं कि कल फिर आएंगे और मुझे तिल तिल करके मार डालेंगे।

बाघ ने कहा कि शायद तुम हमें नहीं पहचान रहे हो लेकिन मैं तुम्हें अच्छी तरह पहचान रहा हूं। मै उसी मां का बेटा हूं जिसे तुम ने पानी में डूबा कर मार डाला और खा लिया। जब मैंने तुमसे अपनी मां के बारे में पूछा था तो तुमने मुझे जंगल का कानून बताते हुए कहा था कि जंगल का यही नियम है कि मौका पाने पर किसी को नहीं छोड़ा जाता है। आज स्वयं नियति ने तुझे मेरे हवाले कर दिया है। मैं चाहूं तो अभी तुझे पंजे से फाड़ करके खा जाऊं लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगा। मेरी मां ने मुझे सिखाया था कि यदि कोई दुश्मन मुसीबत में हो तो भी उसके उपर वार नहीं करना चाहिए। तुम्हारे लिए यही सजा है कि इसी नाली में पड़े रहो। शिकार तो हम भी करते हैं लेकिन दौड़ा करके करते हैं। तुम्हारी तरह चुपके से नहीं करते और उसका शिकार तो बिल्कुल नहीं करते, जिसके साथ छोटा सा बच्चा हो। तुमने तो माफ नहीं किया लेकिन मैं तुम्हें माफ करता हूँ।

इतना कहते हुए बाघ आगे की ओर बढ़ गया और मगरमच्छ अपने प्राणों की भीख मांगता ही रह गया।

(कहानी काल्पनिक है)

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