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‘उत्तर प्रदेश की थारू जनजाति : विकास और सम्भावनायें’ विषयक संगोष्ठी

लखनऊ : थारू जनजाति के लोग बहुत मेहनती, लगनशील और ईमानदार होते हैं। थारु स्त्रियां कला व काश्तकारी के हुनर में बहुत अच्छी होती हैं। इनके इन गुणों को निखारने और मंच देने की आवश्यकता है। इनके पारम्परिक गीत व नाटकों को जंगल की खोह से निकालकर बाहर लाना होगा। उनकी परम्परा, उनके समाज का मनोविज्ञान, संस्कार उनके लोकगीतों में हैं। जब हम उन्हें व उनकी परम्पराओं को मान देंगे तो उनकी झिझक दूर होगी और वह मुख्य धारा से स्वतः ही जुड़ते चले जायेंगे। डिजीटल फोम में उनके गीतों को सहेजने की भी आवश्यकता है।

ये बातें लोक एवं जनजाति कला एवं संस्कृति संस्थान द्वारा आजादी के अमृत महोत्सव एवं चौरीचौरा शताब्दी महोत्सव की श्रृंखला के अन्तर्गत मंगलवार को ‘उत्तर प्रदेश की थारू जनजाति, विकास और सम्भावनायें’ विषयक वेबिनार में जनजातीय लोक संस्कृति की अध्येता डॉ. करुणा पांडे ने कहीं।

संस्थान के निदेशक श्री विनय श्रीवास्तव ने जनजातीय संस्कृति और लोक कलाओं के संरक्षण-संवर्द्धन हेतु किये जा रहे कार्यों का उल्लेख करते हुए अतिथि वक्ताओं का स्वागत किया। वेबिनार में डॉ. करुणा पाण्डेय, डॉ. राम प्रताप यादव, दीपा सिंह रघुवंशी, डॉ. विद्याविन्दु सिंह एवं प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित ने अपने विचार रखे।

डॉ. राम प्रताप यादव ने थारू जनजाति के इतिहास, परम्परा और उनकी समकालीन स्थिति का विस्तार से उल्लेख करते हुए बहुआयामी विकास हेतु शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, कला और संस्कृति के क्षेत्र में कार्य करने की बात कही।

लोक विदुषी डॉ. विद्या विन्दु सिंह ने कहा कि जनजातीय लोक जीवन उनकी रसमय पहचान कराता है। जनजातीय संस्कृति और साहित्य का अध्ययन संरक्षण के दया भाव और आखेटक भाव से नहीं होना चाहिए। स्वस्थ विकास के लिए जनजातियों की शिक्षा व्यवस्था, स्वास्थ्य सेवायें और रोजगार सम्बंधी व्यवस्था आदि के प्रति प्रस्तावित योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन की दिशा में काम होना चाहिए।

वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित ने अपने छात्र जीवन की घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि 60 वर्ष पूर्व लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो. मजूमदार द्वारा थारूओं के अस्थिपंजर को लेकर उनकी आनुवंशिकता आदि पर गहन शोध कार्य किया गया था तथा बहुत दिनों तक विश्वविद्यालय में थारू रिसर्च सेण्टर काम करता रहा। वहां बहुत सारी रपटें रखी हैं, जो अप्रकाशित हैं। उन्होंने थारू जनजाति के विकास की संभावनाओं को लेकर कई महत्वपूर्ण सुझाव दिये।

वेबिनार में जनजातीय लोक चित्रकार सुश्री दीपा सिंह रघुवंशी ने थारू समाज में प्रचलित विभिन्न पर्व-त्योहार से जुड़े भित्ति चित्रों का उल्लेख करते हुए उसके मनोवैज्ञानिक पक्ष पर प्रकाश डाला। वेबिनार का संचालन डॉ. एस.के. गोपाल ने किया। कार्यक्रम से सैकड़ों लोग जुड़े, सराहा और शेयर भी किया। इस अवसर पर क्षेत्रीय सांस्कृतिक अधिकारी-लखनऊ व संस्थान के अधिकारी, कर्मचारी मौजूद रहे।

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