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चूल्हे में महंगाई की आग, धूंए से फिर लाल होने लगी आंखें

घरेलू गैस सिलेंडर के दामों में हो रही बढ़ोतरी सबसे ज्यादा ग्रामीणों के सामने आ रही है। उज्जवला योजना में कनेक्शन तो मिल गए, लेकिन दामों को देखकर ग्रामीण रिफिल नहीं करवाते। पहले तेल, फिर दाल और अब गैस सिलेंडर में भी बढ़ोतरी से रसोई का भी बजट बिगड़ा गया है। हर लोग अब यही एक-दूसरे से पूछ रहा है कि कैसे होगा आम आदमी का गुजारा? छोटी कमाई वाले घर कैसे चलाएंगे? मूल्य वृद्धि से पहले से ही करीब 42 फीसदी महिलाओं ने गैस सिलिंडर से नाता तोड़ लिया है। वे फिर से लकड़ी के धुंए की आग से खाना बनाने लगी हैं।

-सुरेश गांधी

पांच राज्यों में चुनाव खत्म होते ही महंगाई का पारा आसमान छूने को बेताब है। रोजमर्रा की जरुरतों सहित पेट्रोल-डीजल के बाद अब तेल कंपनियों ने घरेलू गैस सिलेंडर की कीमत में भी 50 रुपए की बढ़ोत्तरी की है। बता दें कि बढ़ती महंगाई ने आम आदमी का जीना मुहाल कर रखा है। पेट्रोल-डीजल के दाम जहां आसमान पर चल रहे हैं, वहीं सरकार ने एलपीजी सिलेंडर की कीमतों में भी एक बार फिर से बढ़ोतरी कर दी है। सरसों तेल व सोयाबीन रिफाइंड तेल के दाम पहले से ही किचेन का बजट बिगाड़ रखा है। मतलब साफ है कमर तोड़ महंगाई फिर से लोगों को पुराने दौर में लेकर जा रही है। इसके संकेत पेट्रोल-डीजल के साथ-साथ रसोई एलपीजी सिलिंडर की महंगाई है। एक सर्वे के मुताबिक करीब 42 फीसदी लोगों ने गैस सिलिंडर का इस्तेमाल करना छोड़ दिया है और महिलाएं फिर से लकड़ी के धुंए की आग से खाना बनाने लगी हैं। जबकि मोदी सरकार का दावा है कि उज्ज्वला योजना के तहत लोगों को दिए गए मुफ्त में गैस सिलिंडर से गांव के महिलाओं की ज़िंदगी बदल गई है। अब महिलाएं धुंए की आग में अपी आंखे नहीं फोड़ती। इसके लाभार्थियों का कहना है कि महंगाई के चलते अब वे उज्ज्वला योजना के तहत मिले गैस सिलिंडर का खर्च उठाने में सक्षम नहीं हैं।

रसोई गैस सिलिंडर के दाम में 50 रुपये की वृद्धि के साथ अब 14.2 किलो वाले सिलिंडर का दाम 963.50 रुपये से बढ़कर 1013.50 रुपये हो गया है। उज्जवला योजना के लाभार्थी रंजना का कहना है कि बढ़ती महंगाई से परिवार का खर्च चलाना मुश्किल हो गया है। नूरबानों का कहना है कि दो अप्रैल से शुरू हो रहे रमजान के मद्देनजर मुश्किले और बढ़ जायेगी। वहीं पांच किलो वाले सिलिंडर के दाम में भी 18 रुपये की वृद्धि हुई हैे। अब इसका दाम 353.50 रुपये से बढ़कर 371.50 रुपये हो गया है। कचौड़ी-जलेबी के साथ ही चाट, पकौड़े के दाम भी दस से बीस फीसदी तक बढ़ गए हैं। पहले से खाद्य तेलों में डेढ़ गुना की वृद्धि हुई है, इससे खाने वाली चीजों में वृद्धि है।

दामों में वृद्धि पर एक नजर
समोसा 7 रुपये प्रति एक पीस अब 9 रुपये रुपये प्रति एक पीस
छोला समोसा 15 रुपये में एक प्लेट अब 20 रुपये में एक प्लेट
पूड़ी, कचौड़ी 7 रुपये प्रति एक पीस अब 9 रुपये प्रति एक पीस
जलेबी 120 प्रति किलो ग्राम अब 140 प्रति किलो ग्राम
लड्डू 180 प्रति किलो ग्राम अब 200 प्रति किलो ग्राम

बोली गृहणी
इस बढ़ती महंगाई ने लोगों को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि कैसे घर का बजट बिगड़ने से रोकें। पहले दूध के दाम बढ़े। अभी पेट्रोल के दाम भी 85 पैसे बढ़े हैं, जिसकी वजह से सब्जियां महंगी हो गई हैं, वहीं अब सिलिंडर के दाम बढ़ा दिए गए। सरकार के लिए 2, 3 और 50 रुपये शायद कुछ नहीं होते होंगे। लेकिन, वह उस गृहिणी से पूछे जिन्हें एक लिमिटेड कमाई में घर चलाना पड़ता है। बच्चों के स्कूल की फीस से लेकर घर-बिजली का खर्च, पानी का बिल और राशन सब देखना पड़ता है। पहले सब्सिडी मिला करती थी, वो दो साल से बंद कर दी गई है। अब एक छोटी कमाई वाला इंसान घर कैसे चलाएगा?

लोगों ने बताईं मुश्किलें
चुनाव में वादा करते हैं कि आय बढ़ाएंगे, लेकिन बढ़ती सिर्फ महंगाई है। विकास भी सिर्फ महंगाई का होता है। सिलिंडर के दाम दोगुने हो चुके हैं। अब समझ नहीं आता कि कैसे घर चलाएं। जहां पहले 30-40 रुपये में ऑफिस से बाइक से पहुंचा जाता था, अब 60-70 रुपये लगते हैं। सिलिंडर के बढ़ते दाम ने सोचने को मजबूर कर दिया है कि क्या खाएं और क्या नहीं? सरकार को दाम बढ़ाने से पहले सोचना चाहिए था कि किस तरह से यह 50 रुपया पूरे घर के बजट को बिगाड़ सकता है। वैसे ही पिछले दो साल से कोविड की वजह से सैलरी नहीं बढ़ी। इस बार कुछ उम्मीद है, लेकिन लगता नहीं कि कुछ पैसे बचा पाएंगे।

अक्टूबर के बाद बढ़ी कीमत
चुनाव के चलते सिलेंडर के दाम नहीं बढ़े थे। अब अक्टूबर के बाद से पहली बार एलपीजी सिलेंडर की कीमत बढ़ाई गई है। जानकारों की मानें तो सरकारी तेल कंपनियों ने पिछले करीब पांच महीने से एलपीजी सिलेंडर की कीमतों में कोई बदलाव नहीं किया था। यूक्रेन और रूस के बीच चल रही लड़ाई के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमत में काफी उछाल आई है। एक समय तो यह 139 डालर प्रति बैरल के पार पहुंच गई थी जो 2008 के बाद इसका उच्चतम स्तर है। वर्तमान में यह 118.50 डालर प्रति बैरल है।

खाना भी हुआ मुश्किल
रमदेयी कहती है जब चुनाव हो गए तब 50 रुपए एलपीजी पर बढ़ा दिए जिससे उनका सारा बजट बिगड़ गया है। सरकारी राशन की दुकान पर रिफाइंड फ्री मिलता रहा। पेट्रोल डीजल की कीमत के उछाल के बाद रिफाइंड शक्कर सहित तमाम चीजों के मूल्यों में वृद्धि हुई है। सरकार ने महंगाई पर लगाम लगाने की बात कही थी। तब ही हम बीजेपी को फिर से लाये लेकिन ये सत्ता में आकर दामों को नियंत्रित करने के बजाय और बढ़ाते जा रहे हैं। जो कुछ हमें फ्री मिला अब उसकी भरपाई महंगी चीजों को बेच कर की जा रही है। ऐसे में तो आम आदमी का दो वक्त का भोजन करना भी मुसीबत हो जाएगा। पेट्रोल डीजल के रेट में हुए उछाल के बाद तमाम रोज मर्रा की चीजों के मूल्यों में वृद्धि हुई है।

तिलमिलाई ग्रामीण महिलाएं
घरेलू गैस सिलेंडर के दामों में हो रही बढ़ोतरी सबसे ज्यादा ग्रामीणों के सामने आ रही है। उज्जवला योजना में कनेक्शन तो मिल गए, लेकिन दामों को देखकर ग्रामीण रिफिल नहीं करवाते। शहर के कई परिवारों ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि महंगाई दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। बढ़ती महंगाई के लिए केंद्र सरकार जिम्मेदार है। रसोई गैस सिलेंडर के दाम में इसी तरह बढ़ोतरी होती रही तो गरीब परिवारों को बहुत परेशानी हो सकती है। कीमतों से हर वर्ग त्रस्त है। महंगाई बढ़ने से गरीब व मध्यमवर्गीय परिवार के लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। अंतिमा शर्मा ने बताया कि पहले तेल, फिर दाल और अब गैस सिलेंडर में भी 50 रुपए की बढ़ोतरी हो गई है। अब ऐसा लग रहा है कि सरकार कोरोनाकाल में खर्च हुए पैसे जनता से वसूल रही है। सिलेंडर पर वृद्धि होने से रसोई पर सीधा असर पड़ रहा है। सरकार को बढ़ती महंगाई पर रोक लगाने और मूल्य वृद्धि को वापस लेना चाहिए। संपन्न परिवारों के लिए तो इतनी परेशानी की स्थिति नहीं है, परंतु मध्यमवर्गीय और गरीब परिवारों को कहीं ना कहीं बहुत ही परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। सिर्फ गैस के दामों में बढ़ने से अन्य सभी वस्तुओं के दामों में भी वृद्धि हो जाती है, जो गुजर-बसर करने पर चौतरफा वार हो जाता है।

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