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Tokyo Olympics : संघर्षशील पिता के सुनहरे सपने को साकार करने से चूके पहलवान दीपक पूनिया, अब ब्रांज पर निगाहें

नई दिल्ली: टोक्यो ओलंपिक ( Tokyo Olympic ) में छारा गांव के दीपक पूनिया ( Deepak Poonia ) ने अपनी ख्याति के अनुरूप शानदार प्रदर्शन करते हुए सेमिफाइनल में प्रवेश किया। लेकिन अमेरिका के पहलवान के हाथों हार के साथ ही अपने भारवर्ग में विश्व की दूसरी पायदान पर चमक रहे दीपक की स्वर्णिम सफलता का सपना टूट गया। हालांकि दीपक ने सिद्ध कर दिखाया कि सफलता की राह में आर्थिक तंगी और गरीबी कभी आड़े नहीं आती। इसके लिए लगन और कड़ी मेहनत की जरूरत पड़ती है। मेहनत और लगन से हम सफलता की बुलंदियों को छू सकते हैं।

मिट्टी से लेकर मैट तक सफलता का इतिहास रचने वाले दीपक ने बुधवार को प्री-क्वार्टर फाइनल और क्वार्टर फाइनल मुकाबले जीत कर साबित किया कि जीवन में आप कुछ भी हासिल करना चाहते हैं, तो उसके लिए कोई शॉर्टकट नहीं है। उसके लिए आपको पूरी निष्ठा के साथ अथक प्रयास करना होगा और वह भी लगातार और लंबे समय तक। दीपक ने खुद को कमजोर नहीं समझा। नकारात्मक सोच से बचा और अपनी कमजोरियों की पहचान कर दूर किया। हालांकि एक समय दीपक के पिता सुभाष भी पहलवान बनना चाहते थे। लेकिन घर की खराब आर्थिक स्थिति ने उन्हें दंगल में उतरने से रोक दिया। फिर 1999 में दीपक के जन्म के साथ ही उनके अरसान भी जाग गए।

दूध बेचकर गुजर-बसर करने वाले सुभाष ने उसे गांव के ही लाला दीवानचंद अखाड़े में छोड़ दिया। गुरु आर्य वीरेंद्र से कुश्ती का ककहरा सीखने वाले दीपक ने एक के बाद एक दंगल जीते और घर की आर्थिक स्थिति को भी मजबूती दी। फिर 2016 में दीपक ने दिल्ली स्थित छत्रसाल अखाड़े में अभ्यास शुरू किया। दीपक के पिता सुभाष लंबे समय तक खुद ही दीपक की डाइट तैयार करके साइकिल पर छत्रसाल अखाड़े में पहुंचाते रहे। पिता-पुत्र की असाधारण मेहनत के बूते आज दीपक कुश्ती के फलक पर चमक रहा है। दीपक 86 किलोग्राम भारवर्ग में टॉप पर पहुंचा और वर्तमान में दूसरे नंबर पर है। दुआ कर रहे देशवासियों और संघर्षशील पिता के सुनहरे सपने को साकार करने से चूक गए दीपक की निगाहें अब कांस्य पदक पर टिक गई हैं।

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