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आलू भंडारण किसानों के लिए हो रहा नुकसान सौदा साबित

patनई दिल्लीः पिछले साल उपभोक्ताओं की जेब ढीली करने वाला आलू इस साल किसानों का दम निकाल रहा है। किसानों ने नई फसल के समय पिछले साल की तरह नई फसल खत्म होने के बाद बेहतर दाम की उम्मीद में आलू शीत भंडारगृहों में रखा लेकिन इस समय किसानों को शीतगृह के आलू में खर्च जोड़कर उतनी भी कीमत नहीं मिल रही है, जितनी नई फसल के समय मिल रही थी। पिछले साल के मुकाबले किसानों को आधे से भी कम दाम मिल रहे हैं। आलू सस्ता होने की वजह पैदावार से ज्यादा भंडारण होना है। इस साल भंडारगृहों में रखा ज्यादातर आलू किसानों का है क्योंकि अधिक उत्पादन के बीच दाम ज्यादा न बढऩे के अनुमान से कारोबारियों ने आलू भंडारण से परहेज किया। इस साल पिछले साल के 415 लाख टन के मुकाबले करीब 449 लाख टन आलू पैदा हुआ है।प्रमुख उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश की आगरा मंडी में इस माह आलू की मॉडल कीमत 580-700 रुपए रही, जबकि अप्रैल-मई में आलू भंडारण के समय कीमत 350-450 रुपए प्रति क्विंटल थी। भंडारण किराया, परिवहन, पल्लेदारी, बोरे की कीमत आदि मिलाकर एक क्विंटल पर करीब 300 रुपए खर्च आता है। जाहिर है कि आलू का भंडारण किसानों के लिए नुकसान का सौदा साबित हो रहा है। उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के किसान बटुक नारायण मिश्रा ने बताया कि मौजूदा भाव पर आलू किसान नुकसान में हैं। खर्च मिलाकर नई फसल के समय जितनी भी कीमत नहीं मिल रही है, जबकि पिछले साल किसानों को आलू भंडारण पर काफी फायदा हुआ था। राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान के निदेशक आर पी गुप्ता कहते हैं कि  इन दिनों आलू के भाव देखते हुए किसानों की लागत भर निकल रही है। अब तक आलू का भंडारण किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित नहीं हुआ है। गुप्ता ने कहा कि इस साल करीब 250 लाख टन आलू का भंडारण हुआ है, पिछले साल यह आंकड़ा 200-225 लाख टन था। सभी राज्यों में अच्छी पैदावार से आलू सस्ता है। दिल्ली की आजादपुर मंडी के कारोबारी त्रिलोकचंद शर्मा के अनुसार पिछले साल ज्यादा दाम मिलने से इस साल नई फसल के समय किसान कम दाम पर आलू बेचने को तैयार नहीं थे और कारोबारियों को ज्यादा उत्पादन से दाम बढऩे की उम्मीद नहीं थी। लिहाजा भंडारगृहों में रखा ज्यादातर आलू किसानों का है और वे कम दाम मिलने से नुकसान में हैं। भंडारण को देखते हुए आगे भी आलू ज्यादा महंगा होने की संभावना कम है।

 

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