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कीकू शारदा बोले अच्छी कॉमिडी के लिए अच्छे राइटर की जरूरत होती है

बचपन में जॉनी लीवर को देखकर उन्हें मिमिक्री का शौक जागा। कॉलेज पहुंचे तो लगा कि सिर्फ इससे काम नहीं चलने वाला फिर वह नाटकों का हिस्सा बने और खुद को ऐक्टर के रूप में स्थापित किया। उन्होंने ‘एफआईआर’ से दर्शकों के दिल में जगह बनाई तो ‘नच बलिए’, ‘कॉमिडी नाइट्स विद कपिल’ से बुलंदियों को छुआ। इन दिनों कीकू शारदा, जॉनी लीवर के साथ ‘पार्टनर’ में अपनी कॉमिडी से लोगों को गुदगुदा रहे हैं। वह कहते हैं कि मुझे एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में 15 साल हो गए हैं। अब तो मैं खुद से भी थोड़ा-बहुत ह्यूमर तलाश लेता हूं और उसे ऐक्ट में शामिल करने का सुझाव दे देता हूं। फिर भी मुझे लगता है कि कॉमिडी में सबसे अहम भूमिका राइटर की ही होती है क्योंकि वही उसे जन्म देता है। कीकू शारदा बोले अच्छी कॉमिडी के लिए अच्छे राइटर की जरूरत होती है

मुझमें फुल टाइम राइटिंग का पेशंस नहीं है 
मैंने कई कॉमिडी शोज में खुद की क्रिएट की हुई लाइनों को जगह दी है फिर भी फुल टाइम लैपटॉप पर बैठकर पूरी स्क्रिप्ट नहीं लिख पाया। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि मुझमें इतना पेशंस नहीं है। हां, मैं राइटर्स के साथ बैठता जरूर हूं। कपिल शर्मा शो के दौरान अक्सर राइटर्स के साथ बैठकी लगती थी। उनके पास अजीब-अजीब आइडिया होते थे और उनसे बातों-बातों में कई नई चीजें निकलकर आती थीं। 

पलक ने तोड़ा है मिथक 
मैंने पलक का किरदार खूब एंजॉय किया है। इस किरदार को लेकर मेरा मानना है कि वो एक ऐसी लड़की है, जो खूबसूरत न होते हुए भी बेबाक है। उसे अपनी बात कहने में कोई झिझक नहीं रहती है। अमूमन, खूबसूरत न होने पर लड़कियों का कॉन्फिडेंस लेवल डाउन रहता है। मां-बाप भी कई बार उनकी शादी को लेकर परेशान रहते हैं कि यह मोटी है, हाइट कम है और ज्यादा खूबसूरत नहीं तो क्या उसे कोई लड़का पसंद करेगा या नहीं। पलक के किरदार ने इस मिथक को काफी हद तक तोड़ा है। 

कॉमिडी को तो राइटर ही जन्म देता है 

अच्छी कॉमिडी के लिए अच्छे राइटर और एनवाइरमेंट की जरूरत पड़ती है। आप में जहां अभिमान आता है, वहां काम पर प्रभाव पड़ने लगता है। कॉमिडी के लिए एक अच्छी टीम की भी जरूरत पड़ती है। असल में कॉमिडी की सोच को राइटर ही जन्म देता है। इस लिहाज से अच्छी कॉमिडी बनाने में सबसे ज्यादा अहमियत राइटर की होती है।

पिताजी ने कहा, शौक के साथ पढ़ाई भी करो 
मैं मारवाड़ी हूं। हमारा अपना बिजनस है। अमूमन जैसे बेटे पिता का बिजनस आगे बढ़ाते हैं, वैसा ही मुझे भी करना था। मैं पिताजी के ऑफिस जाता था लेकिन कभी उन्होंने उसे संभालने का दबाव नहीं बनाया। पिताजी का कहना था कि तुम अपने ऐक्टिंग के शौक को पूरा करो। बस, पढ़ाई पर ध्यान दो ताकि भविष्य में तुम्हें नौकरी करनी पड़े तो वो भी कर लो। मैंने उनकी बातों को गंभीरता से लिया और अपना एमबीए पूरा किया। 

जॉनी लीवर से सीखी थी मिमिक्री 

बचपन में मैंने स्टार्स की मिमिक्री करनी जॉनी लीवर जी से सीखी है। उस वक्त उनकी बेस्ट कॉमिडी के ऑडियो कैसेट सुनकर और टीवी पर उनके शो देखकर मैं दिलीप कुमार, शत्रुघ्न सिन्हा, राजबब्बर, अमजद खान जैसे कलाकारों की मिमिक्री करता था। बाद में शाहरुख खान और सनी देओल की मिमिक्री करने लगा। उसके बाद कॉलेज में नाटक करने शुरू किए। फिर लगा कि सिर्फ मिमिक्री से खुद को स्थापित नहीं कर सकता तो मैंने इंटर कॉलेज कॉम्पिटिशंस में पार्टिसिपेट किया और एक ऐक्टर के गुण खुद के अंदर पैदा किए। सौभाग्य की बात है कि मुझे जॉनी लीवर जी के साथ ‘पार्टनर’ में काम करने का मौका मिला। मैं जब ‘एफआईआर’ कर रहा था तो पहली बार उनसे मुलाकात हुई थी। उन्होंने मेरी खूब तारीफ की थी। अब जब उनके साथ काम कर रहा हूं तो काफी कुछ सीखने को मिल रहा है। इतने बड़े कलाकार होने के बावजूद वो इतने विनम्र हैं। अगर डायरेक्टर उन्हें कुछ सजेस्ट करता है तो वह उसे भी फॉलो करते हैं। 

40 पर्सेंट जोक्स हम बातों-बातों में क्रिएट कर लते हैं 
हम सब ऐक्ट से पहले एकसाथ बैठते हैं। स्क्रिप्ट और ऐक्टिंग को लेकर बातें करते हैं। बातों-बातों में कोई अच्छा जोक निकलता है और क्रू के बाकी मेंबर्स उस पर हंसते हैं तो हमें समझ आ जाता है कि यह बिक जाएगा। शो के 40 पर्सेंट जोक्स और फनी डायलॉग्स तो आपस में बातचीत और मस्ती करने के दौरान ही क्रिएट हो जाते हैं। 

फिल्मों में करना चाहता हूं गंभीर किरदार 
मैं कॉमिडी के अलावा गंभीर किरदार निभाना चाहता हूं लेकिन टेलिविजन पर नहीं। असल में टीवी पर ऐसे किरदार सिर्फ डेलीसोप में मिलते हैं, जिसमें जाने का मेरा फिलहाल इरादा नहीं हैं। टीवी पर ऐसे किरदार करने पर आप 200 से 300 एपिसोड तक खिंचे चले जाते हैं, जबकि फिल्म सिर्फ दो या तीन घंटे की होती है। उसकी कहानी का अंत होता है। स्टोरी टेलिंग का जो मजा है, वो सिर्फ फिल्मों में ही आता है। हालांकि, अभी मैं सिर्फ टीवी और लाइव इवेंट्स में ही व्यस्त हूं। 

मैं अपनी जॉब से बोर नहीं हो सकता 
मैं इस इंडस्ट्री से बिलॉन्ग नहीं करता था। नहीं पता था कि यहां काम कैसे होता है। मुझे पहला आउटिंग का शूट मिला, जहां घूमने, नए लोगों से मिलने और एंजॉय करने के साथ काम करने के पैसे मिले। लगने लगा कि इससे अच्छी लाइफ नहीं हो सकती है। मैंने अपने कुछ फ्रेंड्स को देखा, जो जॉब करते थे। वो हमेशा यही कहते थे कि ऑफिस का काम बोरिंग होता है। मुझे अपने काम में मजा आने लगा लेकिन ऐसा नहीं है कि मौज-मस्ती के लिए ही मैंने इस लाइन को चुना है। मैं ऐक्टिंग के प्रति पैशनेट था। सब अपनी जॉब से बोर हो सकते हैं लेकिन मैं नहीं हो सकता। 

छोटी है कॉमिडी की दुनिया 
कॉमिडी करना सबके बस की बात नहीं होती है। कॉमिडी वही लोग कर पाते हैं, जो हर लम्हे में ह्यूमर तलाशते हैं। अपने आसपास के माहौल से कॉमिडी को निकाल लेते हैं। मैं इसीलिए कहता हूं कि कॉमिडी की दुनिया छोटी है। हर इनसान की जिंदगी में कुछ न कुछ दिक्कतें होती हैं। कभी घर की तो कभी बाहर की। ऐसे माहौल में जो खुश रहकर कॉमिडी को जन्म देता रहे, वो ही असली कॉमिडी कर पाता है। 

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