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डेटा के अनुसार 11 राज्यों की निचली अदालतों में सिर्फ 12% ही ओबीसी जज

अदालतों में ओबीसी और अन्य पिछड़ी जातियों के जजों की संख्या उनकी आबादी के अनुपात में बहुत कम है। ओबीसी समुदाय के जजों की भागीदारी देश की निचली अदालतों में 12 फीसदी से भी कम है, जबकि आबादी का अनुपात इससे कहीं अधिक है। कानून मंत्रालय द्वारा मिले डेटा में इन आंकड़ों का खुलासा हुआ है।डेटा के अनुसार 11 राज्यों की निचली अदालतों में सिर्फ 12% ही ओबीसी जज

निचली अदालतों जिनमें जिला न्यायालय भी शामिल हैं में दलितों की भागीदारी में वृद्धि हुई है। दलित समुदाय के 14 फीसदी और आदिवासी वर्ग के 12 फीसदी जज इस वक्त निचली अदालतों में मौजूद हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या में 16.6 फीसदी दलित समुदायों की भागीदारी है। भारत की कुल जनसंख्या में आदिवासी आबादी 8.6 फीसदी से अधिक है। 

डेटा के आंकड़े बताते हैं कि दलित और आदिवासी समुदाय की न्यायिक सेवाओं में प्रतिनिधित्व बढ़ने की वजहआर्थिक-सामाजिक तौर पर मजबूत बनाने के लिए किए जाने वाले विशेष प्रयासों का नतीजा है। दूसरीत तरफ ओबीसी समुदाय की आबादी का अनुपात अधिक होने के बावजूद उनकी संख्या कम होने की वजह नियुक्ति में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व मिलना हो सकता है। माना जा रहा है कि बिना कोटा के भी आनेवाले समय में एससी/एसटी समुदाय की भागीदारी न्यायिक क्षेत्र में बढ़ सकती है। 

पिछले साल नवंबर में मंत्रालय की तरफ से सभी 24 हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को पत्र लिखकर एससी/एसटी के साथ ओबीसी और महिलाओं को मिलनेवाले आरक्षण और इन समुदायों के कितने जज इस वक्त निचली अदालतों में काम कर रहे हैं की सूचना मांगी थी। निचली अदालतों में रिजर्वेशन का प्रावधान इस वक्त देश के सभी राज्यों में समान रूप से लागू नहीं है। कुछ राज्यों में ऊपरी स्तरों पर न्यायिक सेवाओं में आरक्षण का प्रावधान नहीं है और कुछ राज्यों में निचली अदालतों में एससी/एसटी और ओबीसी समुदाय को रिजर्वेशन दिया जा रहा है। 

जिन 11 राज्यों के डेटा आए हैं वहां के 3,973 जजों की संख्या के आधार पर यह प्रतिशत का औसत है। सभी राज्यों के जिला जजों की संख्या इसमें शामिल नहीं है इसलिए हो सकता है कि सभी राज्यों के आधार पर जब औसत निकाला जाए तो इन आंकड़ों में कुछ परिवर्तन भी हो सकते हैं। जिन 11 राज्यों के एससी/एसटी ओबीसी जजों का आंकड़ा उपलब्ध हो सका है, वहां न्यायिक सेवाओं में रिजर्वेशन का प्रावधान है। इस सर्वे में बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे कुछ बड़े राज्यों को शामिल नहीं किया गया है। 

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