नियामक के तौर पर RBI की जवाबदेही से जुड़े मुद्दों पर गौर करे सरकार
संसद की एक समिति ने सरकार से एक नियामक के तौर पर केंद्रीय बैंक की जवाबदेही से जुड़े मुद्दों पर गौर करने के वास्ते एक समिति बनाने का आग्रह किया है. इसके साथ ही समिति ने रिजर्व बैंक से बैंकों के लिए पूंजी पर्याप्तता नियमों (capital adequacy norms) में ढील देने और त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (prompt corrective action) की समीक्षा करने को कहा है.
संसद की वित्तीय मामलों की स्थायी समिति (The standing committee on finance) ने आरबीआई को इस बात का आंकलन करने को भी कहा है कि धोखाधड़ी से निपटने के लिए उसके द्वारा बनाए गए दिशा-निर्देश कितने प्रभावी रहे हैं. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एम वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाली समिति ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्रमुखों की सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाकर 70 साल करने का सुझाव भी दिया है. इसके अलावा सरकारी स्वामित्व वाले बैंकों में श्रमबल और मानव संसाधन के उचित प्रबंधन का परामर्श भी दिया गया है. समिति की रिपोर्ट गुरुवार को संसद के पटल पर रखी गई.
आरबीआई द्वारा पूंजी पर्याप्तता (capital adequacy norms) को बेसिल तीन की वैश्विक रूपरेखा के तहत निर्दिष्ट सीमा से अधिक रखने के निर्णय पर सवाल उठाते हुए समिति ने कहा कि केंद्रीय बैंक ने कर्ज देने की क्षमता को सीमित कर दिया है और सरकार पर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में पूंजी डालने के भार को बढ़ा दिया है. समिति ने कहा कि उसे सूचित किया गया है कि बेसिल (Basel) के नियम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय बैंकों पर लागू होते हैं और सार्वजनिक क्षेत्र के 9 बैंक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय नहीं हैं. इसके अलावा अधिकतर पुराने सरकारी बैंक भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय नहीं रहे हैं.
मार्च 2018 तक के आंकड़े के मुताबिक 9 बैंकों के पास करीब 9.93 लाख करोड़ रुपये मूल्य की जोखिम वाली पूंजी है. इससे इन बैंकों को करीब 35,000 करोड़ रुपये के अतिरिक्त कोष की जरूरत होगी. इन 9 बैंकों में सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, आंध्रा बैंक, ओबीसी, कॉरपोरेशन बैंक, विजया बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया, देना बैंक और पंजाब एंड सिंध बैंक शामिल हैं.
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘हमारे बैंकों के लिए आरबीआई द्वारा निर्धारित ऐसे कड़े नियम अवास्तविक और अनुचित हैं.’ संसदीय समिति ने कहा कि इन 9 बैंकों के लिए अतिरिक्त पूंजी आवश्यकता को रखा गया है. यदि इससे उन्हें निजात मिलती है, तो इन बैंकों से 5.34 लाख करोड़ रुपये की भारी भरकम राशि बाजार में जारी हो सकती है. ऐसा करने से इन बैंकों की कर्ज राशि में 51 प्रतिशत तक वृद्धि हो सकती है. यह कर्ज बाजार में जाने से इन बैंकों को 50,000 करोड़ रुपये तक का अतिरिक्त ब्याज मिल सकता है. इन बैंकों को रिजर्व बेंक ने त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई के तहत रखा हुआ है. इससे इन बैंकों पर कई तरह के कर्ज प्रतिबंध लगा दिए गए हैं.
रिजर्व बैंक के पीसीए (prompt corrective action) के नए नियम 2017 में लागू किए गए थे. इसके तहत बैंकों की तीन मानदंडों पर निगरानी की जाती है, जिसके तहत बैंकों की पूंजी पर्याप्तता, शुद्ध गैर-निष्पादित राशि (एनपीए) और सपत्ति पर मिलने वाला प्रतिफल आदि को देखा जाता है. समिति को आशंका है कि रिजर्व बैंक के इन पीसीए नियमों के तहत ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक आ जाएंगे.