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बिजली बनाने की कोई भी परियोजना सरकार के पास लंबित नहीं

नई दिल्ली : दिल्ली सहित तीन राज्यों में शहर के ठोस अपशिष्ट से बिजली बनाने की परियोजनाएं चल रही हैं। इससे देश में बिजली की कमी पूरी होने के साथ-साथ शहरों में यहां वहां कूड़े के ढेर की समस्या भी हल हो रही है। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा तथा विद्युत राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) आरके सिंह ने गुरुवार को लोकसभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में बताया कि दिल्ली में तीन संयंत्र हैं, जिनमें गाजीपुर में 12 मेगावाट, नरेला बवाना में 24 मेगावाट और ओखला में 16 मेगावाट के संयंत्र हैं। मध्य प्रदेश के जबलपुर में 11.50 मेगावाट का संयंत्र है, जिसमें 9 मेगावाट निर्यात योग्य है।

महाराष्ट्र के शोलापुर में संस्थापित संयंत्र की क्षमता 3 मेगावाट है। इस प्रकार इन पांचों संयंत्रों की कुल क्षमता 66.50 मेगावाट है। उन्होंने बताया कि सरकार को पिछले तीन सालों में पर्यावरणीय संबंधी मंजूरी के लिए सात परियोजनाएं प्राप्त हुईं। इसमें दो को पर्यावरणीय मंजूरी, दो को टीओआर (टर्म आफ रिफरेंस) जारी किया जा चुका है। तीन परियोजनाओं में अभी तक पर्यावरणीय प्रभाव मूल्‍यांकन (ईआईए) प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है। इस प्रकार कोई भी परियोजना पर्यावरण, वन और जलवायु मंत्रालय के पास लंबित नहीं है। उन्होंने बताया कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को पिछले तीन वर्षों के दौरान पर्यावरण संबंधी मंजूरी के लिए सात अपशिष्ट से ऊर्जा परियोजनाएं प्राप्त हुई हैं। इसमें तेहखंड, ओखला में प्रस्तावित 25 मेगावाट का नगरीय ठोस अपशिष्ट आधारित तापीय विद्युत संयंत्र को 26 जुलाई, 2018 को पर्यावरणीय मंजूरी प्रदान की गई। भोपाल में प्रस्तावित 21 मेगावाट की परियोजना को 11 जनवरी, 2019 को मंजूरी दी गई। गाजीपुर लैंडफिल साइट के पास 20 मेगावाट की परियोजना को 16 जुलाई, 2019 को टीओआर (टर्म आफ रिफरेंस) जारी किया जा चुका है। ओखला में 40 मेगावाट के संयंत्र को 20 अगस्त, 2018 को टीओआर (टर्म आफ रिफरेंस) जारी किया जा चुका है।

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