दस्तक-विशेषराजनीति

मुकाबला: बेदाग अखिलेश दागी माया-शीला

उत्तर प्रदेश में सीएम बनने की रेस

संजय सक्सेना
संजय सक्सेना

उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के लिये भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर सभी प्रमुख दलों ने अपना मुख्यमंत्री प्रत्याशी घोषित कर दिया है। सपा की तरफ से अखिलेश यादव और बसपा की ओर से मायावती का नाम तो सीएम की रेस के लिये पहले से ही तय था, लेकिन कांग्रेस की तरफ से दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को आगे बढ़ाना सियासी रूप से काफी चौंकाने वाली घटना रही। कांग्रेस ने ब्राह्मण चेहरा शीला दीक्षित को सीएम की कुर्सी के लिये प्रोजेक्ट करके चुनावी हवा का रुख अपनी तरफ मोड़ने का जो प्रयास किया है उससे कांग्रेस को कितना फायदा होगा, यह तो समय ही बतायेगा लेकिन कांग्रेस ने कम से कम एक मामले में सपा की राह जरूर आसान कर दी। कांग्रेस द्वारा शीला दीक्षित के नाम की घोषणा के साथ ही तय हो गया कि अखिलेश का मुख्यमंत्री पद की दो ऐसी महिला दावेदारों से सीधे मुकाबला होगा जिनके ऊपर भ्रष्टाचार के कई आरोप हैं। शीला दीक्षित टैंकर घोटाले में आरोपी है तो माया के खिलाफ आय से अधिक सम्पति, ताज कॉरिडोर में भ्रष्टाचार के मामले कोर्ट में लंबित हैं,जिसको भाजपा के साथ-साथ समाजवादी पार्टी भी शिद्दत के साथ मुद्दा बनाये हुए है। अखिलेश सरकार भले ही कानून व्यवस्था के मोर्चे पर बुरी तरह से नाकाम रही है, लेकिन अखिलेश के ऊपर आज तक भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा हैं। इसी प्रकार समाजवादी पार्टी को भले ही उसके विरोधी गुंडों की पार्टी कहते रहते हों,मगर अखिलेश ने बाहुबली डीपी यादव से लेकर मुख्तार अंसारी तक को अपनी पार्टी के अंदर फटकने नहीं दिया। मुख्तार की पार्टी कौमी एकता दल और सपा के बीच तो चुनावी तालमेल की घोषणा भी हो गई थी,परंतु अखिलेश की जिद्द के चलते मुलायम सिंह को सार्वजनिक रूप से अपने कदम पीछे खींचने पड़ गये। ईमानदार,अपराधियों से दूरी बनाकर चलने वाले अखिलेश के मुकाबले कांग्रेस और बसपा में स्वच्छ छवि वाले नेताओं का टोटा साफ दिखाई पड़ता है।
akhileshचुनावी मौसम में यह ‘अंतर’ बसपा-कांग्रेस के लिए मुश्किल पैदा कर सकता है। पहले माया के और अब शीला के भ्रष्टाचार को भी अखिलेश हवा देने लग गये हैं। माया-शीला पर आरोपों की झड़ी और अपनी सरकार के विकास कार्यों और स्वच्छ छवि को लेकर जनता के बीच इमेज बनाने की कोशिश में अखिलेश चाहते हैं कि चुनाव विकास के पक्ष में और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ा जाये। अगर ऐसा हुआ तो समाजवादी पार्टी को इसका बड़ा फायदा मिल सकता है। बात मायावती की की जाये तो बसपा में पिछले दिनों जो घटनाक्रम घटा, उससे भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी मायावती की ताकत और कम हुई है। माया के कई नेताओं ने पार्टी छोड़ दी। हैरान-परेशान मायावती के लिये ‘दयाशंकर प्रकरण’ (मायावती के चरित्र की तुलना एक वैश्या से करने वाला बयान) संजीवनी बनकर आया तो उन्होंने झट से उसे कैच कर लिया। राज्य सभा में तो मायावती ने गुजरात में दलितों की पिटाई और अपने (मायावती) ऊपर उत्तर प्रदेश भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह की अभद्र टिप्पणी के मुद्दे को उछाला ही, इसके अलावा लखनऊ में विधान भवन के पास धरना-प्रदर्शन करके अपनी ताकत भी दिखाई। मायावती की एक आवाज पर 24 घंटे के भीतर लाखों बसपाई लखनऊ पहुंच गये। यह सब तब हुआ जबकि मायावती की बात को मानते हुए भाजपा दयाशंकर को पार्टी से निकाल चुकी थी। दयाशंकर प्रकरण के सहारे मायावती पिछले दिनों पार्टी में जो कुछ हुआ, उससे हताश नेताओं/ कार्यकर्ताओं में नई जान डालने की कोशिश तो कर ही रहीं थीं, लेकिन दयाशंकर की मां ने बसपा नेताओं के विवादित बयानों (दयाशंकर की बीवी बच्चों के खिलाफ अपशब्द कहने और धमकी देने संबंधी) को आधार बनाकर बसपा सुप्रीमो मायावती, नसीमुद्दीन सिद्दीकी सहित चार बसपा नेताओं के खिलाफ ही एफआईआर लिखा दी। इस काउंटर एफआईआर से दयाशंकर प्रकरण पर सियासी फायदा लेने का सपना देख रहीं मायावती फिर वहीं पर खड़ी नजर आने लगी हैं जहां पहले वह खड़ी थीं।
बहरहाल, भाजपा नेता दयाशंकर ने मायावती के खिलाफ जो भी कहा, उसकी निंदा होनी चाहिए लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि बसपा सुप्रीमो मायावती भी अपशब्दों की सियासत करती रही हैं। विरोधी ही नहीं उनकी पार्टी से बगावत करने वाले नेता भी उन पर भ्रष्टाचार, धनउगाही और अभद्र भाषा इस्तेमाल करने का आरोप लगाते रहते हैं। माया राज में भ्रष्टाचार की कई इबारतें लिखी जा चुकी हैं। माया राज के भ्रष्टाचार को झेल चुकी जनता भूली नहीं है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सूबे की सत्ता संभालने के बाद जब पहली बार मीडिया से रूबरू हुए थे तो उन्होंने पूर्ववर्ती बसपा सरकार और उसकी सुप्रीमो मायावती पर निशाना साधते हुए कहा था कि मायावती के कार्यकाल में हाथी प्रतिमाओं की स्थापना, पत्थरों के स्मारकों के निर्माण समेत विभिन्न कार्यों और योजनाओं में 40 हजार करोड़ का घोटाला हुआ है। इसमें कई पूर्व मंत्रियों की संलिप्तता है। अखिलेश यादव ने तब कहा था कि उनके शुरुआती कार्यकाल में ही एनआरएचएम, इको पार्क, नोएडा, पार्क, हाथी प्रतिमाओं और पॉम ट्री समेत एक दर्जन घोटाले अब तक सामने आ चुके हैं। सीएम अखिलेश का यह भी कहना था कि घोटाले में अभी तक सिर्फ सरकारी खजाने से निकाले गए धन का ही जिक्र किया गया है, जमीन की कीमत जोड़ी नहीं गई है। ऐसा कर दिया जाए तो आंकड़ा कहीं ज्यादा होगा। यहां यह बता देना जरूरी है कि 2012 के विधान सभा चुनाव प्रचार के दौरान सपा के कई दिग्गज नेताओं ने ऐलान किया था कि उनकी सरकार बनी तो प्रदेश का खजाना लूटने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती जेल में होंगी। यह और बात है कि 2012 से 2016 आ गया है, लेकिन अखिलेश सरकार ने उनको जेल भेजना तो दूर, एक मुकदमा तक नहीं दर्ज कराया है, शायद सपा की यह राजनैतिक मजबूरी रही होगी। मायावती को गिरफ्तार करने का मतलब एक वर्ग विशेष को नाराज करना। यह सपा कभी नहीं चाहेगी।
mayaबसपा ही नहीं कांग्रेस का भ्रष्टाचार भी समाजवादी पार्टी को संजीवनी देने का काम कर रहा हैं। यूपी की मुख्यमंत्री पद की कांग्रेसी उम्मीदवार शीला दीक्षित पर भ्रष्टाचार के जो आरोप लगे हैं वह कांग्रेस के लिये चुनावी जंग में मुश्किल खड़ी कर सकते हैं। वाटर टैंकर घोटालें में फंसी दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को हाल ही में एंटी करप्शन ब्रांच (एसीबी) ने समन जारी किया था। दिल्ली जल बोर्ड में टैंकर घोटाला साल 2010-11 के दौरान सामने आया था। दिल्ली में पीने के पानी की सप्लाई के लिए टैंकरों को किराए पर हायर किए जाने के दौरान यह घोटाला किया गया था। शीला दीक्षित के कार्यकाल में दिल्ली की जिन कॉलोनियों में पानी की पाइप लाइनें नहीं हैं, वहां वाटर सप्लाई के लिए टैंकर किराए पर लिए जाने थे। इस काम के लिए जल बोर्ड को स्टेनलेस स्टील वाले 450 माउंटेड टैंकर हायर करने थे। इसके लिए कई बार टेंडर निकाले गए। पहली बार मार्च 2010 में टेंडर निकाला गया। सात साल के लिए जारी टेंडर की कुल कॉस्ट 50.98 करोड़ रुपए रखी गई थी। इसके बाद इस टेंडर को कैंसिल कर दिया। इस तरह करीब डेढ़ साल में चार बार टेंडर कैंसिल किए गए। आखिरकार दिसंबर 2011 में 10 साल के लिए टैंकरों को किराए पर लेने के लिए टेंडर पास किया गया। इस बार टेंडर की कुल कॉस्ट 50.98 करोड रुपए से अप्रत्याशित रूप से बढ़ाकर 637 करोड़ 23 लाख रुपये कर दी गई थी। इसी वजह से घोटाले का आरोप शीला सरकार पर लगने लगा था।
sheelaइसी काल खंड में यानी शीला दीक्षित के शासनकाल के दौरान दिल्ली में हुए कॉमनवेल्थ खेल घोटाले की छींटे भी शीला के ऊपर आयी थीं। खेल खत्म होने के महज एक दिन बाद ही नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने इस बड़े खेल आयोजन से जुड़ी उन विभिन्न परियोजनाओं का आकलन शुरू कर दिया है जो भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी रही हैं। कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला 2011 में सामने आया जिसे भारत के सबसे बड़े घोटालों में से एक माना जा रहा है। 2010 में नई दिल्ली में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारी के चरण और आचरण के दौरान पैसे की बड़े पैमाने पर हेराफेरी हुई थी। इस घोटाले का कुल मूल्य 70,000 करोड़ रुपये होने का अनुमान है। शीला दीक्षित की इस घोटाले में काफी बदनामी हुई थी। शीला के ऐसे ही भ्रष्टाचारों का डंका पीटकर सपा, कांग्रेस के यूपी से पैर उखाड़ देना चाहती हैं। बात भाजपा की की जाये, जिसने अभी तक अपना सीएम प्रत्याशी घोषित नहीं किया है। चार में से तीन प्रमुख राजनैतिक दलों कांग्रेस, सपा, बसपा द्वारा अपना सीएम प्रत्याशी घोषित किये जाने के बाद भाजपा के ऊपर भी मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करने का दबाव काफी बढ़ गया है। भाजपा पर न केवल सीएम प्रत्याशी घोषित करने का दबाव है, बल्कि उसे इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि उसका प्रत्याशी किसी भी तरह से 19 न नजर आये। मुख्यमंत्री के उम्मीदवार का नाम घोषित न होने से प्रतिस्पर्धी दलों ने भाजपा की घेरेबंदी शुरू कर दी है। खासतौर से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस मुद्दे पर भाजपा पर तंज कसते यहां तक कह दिया कि उप्र में साढ़े तीन मुख्यमंत्री की बात कहने वाली भाजपा मुख्यमंत्री का एक उम्मीदवार तक नहीं तलाश पा रही हैं। मुख्यमंत्री के तंज से भाजपा तिलमिला गई है। भाजपा प्रवक्ता हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव ने अखिलेश पर तंज कसते हुए कहा कि भाजपा का कथन सही था तभी तो अखिलेश को खुद को ट्रेनीज सीएम बताना पड़ा। सच्चाई यही है कि भाजपा कम से कम एक मसले पर तो अखिलेश यादव के सामने बैकफुट पर नजर आ ही रही है। इस बात का अहसास अखिलेश को बखूबी है। इसीलिये वह बीजेपी पर कुछ ज्यादा ही हमलावर रहते हैं, जिसका उन्हें फायदा मिलता भी दिख रहा है। 

Related Articles

Back to top button