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मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को दी राफेल खरीद की जानकारी

  • याचिकाकर्ताओं को बताये गये दस्तावेजों में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने राफेल की खरीद में सभी प्रकियाओं का पालन किया गया
  • सरकार ने दस्तावेजों में यह भी कहा कि सीसीएस से अनुमति लेने के बाद समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं
  • केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि राफेल खरीद में ऑफसेट पार्टनर चुनने में सरकार का कोई रोल नहीं है


नई दिल्ली : राफेल खरीद के फैसले की प्रक्रिया से जुड़ी जानकारी के दस्तावेज केंद्र सरकार ने याचिककर्ताओं को सौंपे हैं। केंद्र सरकार ने इसके साथ ही राफेल जेट की कीमतों के बारे में मांगी गई जानकारी पर अपना जवाब सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंप दिया। याचिकाकर्ताओं को सौंपे गए दस्तावेजों में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने राफेल की खरीद में सभी प्रकियाओं का पालन किया गया। सरकार ने बताया कि इस प्रक्रिया के लिए फ्रांस की सरकार से करीब एक साल तक बात चली। सरकार ने दस्तावेजों में यह भी कहा कि सीसीएस (कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्यॉरिटी) से अनुमति लेने के बाद समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं। इस दस्तावेज का शीर्षक ’36 राफेल विमानों की खरीद में फैसले लेने की प्रक्रिया की विस्तार से जानकारी’ है। केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि ऑफसेट पार्टनर चुनने में सरकार का कोई रोल नहीं है, नियमों के मुताबिक विदेशी निर्माता किसी भी भारतीय कम्पनी को बतौर ऑफसेट पार्टनर चुनने के लिए स्वतंत्र है। यूपीए के जमाने से चली आ रही रक्षा उपकरणों की खरीद प्रकिया के लिए रक्षा खरीद प्रक्रिया 2013 का ही पालन किया गया है। इसमें कहा गया है कि जब भारतीय वार्ताकारों ने 4 अगस्त 2016 को 36 राफेल जेट से जुड़ी रिपोर्ट पेश की, तो इसका वित्त और कानून मंत्रालय ने भी आंकलन किया और सीसीएस ने 24 अगस्त 2016 को इसे मंजूरी दी। इसके बाद भारत-फ्रांस के बीच समझौते को 23 सितंबर 2016 को अंजाम दिया गया। सुप्रीम कोर्ट के 31 अक्टूबर के आदेश के मुताबिक केंद्र सरकार ने याचिकाकर्ताओं को यह दस्तावेज उपलब्ध कराया है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि राफेल विमान खरीद की प्रक्रिया की विस्तृत जानकारी सुप्रीम कोर्ट को दी जाए।

सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई अब 14 नवंबर को करेगा। बेंच ने अटर्नी जनरल से कहा था कि यदि यह विवरण इतना ‘विशेष’ है और इसे न्यायालय के साथ भी साझा नहीं किया जा सकता है तो केंद्र को ऐसा कहते हुए हलफनामा दाखिल करना चाहिए। बेंच ने वेणुगोपाल से अपनी मौखिक टिप्पणी में कहा, ‘यदि कीमतें विशेष हैं और आप हमारे साथ इन्हें साझा नहीं कर रहे हैं तो ऐसा कहते हुए हलफनामा दायर कीजिए।’ बेंच ने यह भी कहा कि गोपनीय और रणनीतिक महत्व वाली जानकारियों को बताने की जरूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने ऐडवोकेट प्रशांत भूषण, पूर्व मंत्री अरुण शौरी व यशवंत सिन्हा की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही थी। याचिकाकर्ताओं ने इस मामले में सीबीआई जांच की मांग की थी। गौरतलब है कि राफेल डील को लेकर कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष लगातार मोदी सरकार पर हमलावर है। वहीं, दूसरी ओर बीजेपी का कहना है कि इस डील से संबंधित जानकारियां सार्वजनिक होने से दुश्मन देश फायदा उठा सकते हैं।

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