अद्धयात्म

यहां देवताओं को लोरियां गाकर सुलाती हैं महिलाएं

kullu-dussehra-562cf7fb85b7a_exlstजैसे मां बच्चे को लोरियां गाकर सुलाने की कोशिश करती हैं, वैसे ही यहां कुल्लू दशहरा में महिलाएं देवताओं को लोरियां गाकर सुलाती हैं। देव रिवायतों में भी नारी शक्ति की अहम भूमिका है। इसका नजारा ढालपुर स्थित अठारह करडू की सौह में देखने को मिल रहा है। नौड़न नामक महिलाएं देवताओं को सुलाती नजर आ रही हैं।

सतयुग से लेकर महिलाएं यह रीत निभा रही हैं। माना जाता है कि महिलाओं को देव रीत निभाने का उस दौर में काम मिला है, जब देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध हुआ था। उस दौरान देवता की विशेष कारकून महिलाओं ने देव शक्ति के साथ देवताओं का पहरा करने में अहम रोल अदा किया था।

आज भी ये महिलाएं लोरियां यानी देव गीत गाकर देवी-देवताओं को सुलाती हैं। इन्हें नौड़न कहा जाता है। काहिका के दौरान इन महिलाओं को सीता नाम से भी जाना जाता है। ऐसी अनोखी परंपरा अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव में कई देवी-देवताओं के अस्थायी शिविरों में देखने निभाई जा रही हैं।

मजेदार बात यह है कि बिजली महादेव भी महिलाओं की लोरियों (देव नाम मुजरा) में मंत्रमुग्ध होकर गहरी नींद में चले जाते हैं। भले ही मुजरा होने से पहले वाद्य यंत्रों की धुनों पर पुजारी नरोल यानी रथ के मोहरों के ऊपर एक विशेष देव कपड़ा डालकर सुलाता है लेकिन जब तक नौड़न नामक महिलाओं ने मुजरा यानी लोरियां गाने की रीत को नहीं निभाया, तब तक बिजली महादेव जागे रहते हैं।

गौर रहे कि ढालपुर मैदान में शरीक हुए सैकड़ों देवी-देवताओं के पास आरती होने के बाद मूजरा किया जा रहा है। इसमें दो से तीन महिलाएं भाग लेती हैं। मूजरा गीत में ये नृत्य भी करती हैं और एक व्यक्ति ठिन-ठिन की आवाज निकालने वाले वाद्य यंत्र को बजाता है। मूजरा करने के दौरान महिलाओं को देवता की तरफ चुनरी भेंट स्वरूप दी जाती है।

बिजली महादेव के कारदार अमरनाथ ने कहा कि जिस तरह से मां बच्चे को सुलाने के लिए लोरियां गाती हैं, उसी तरह नौड़न नामक ये महिलाएं मूजरा गीत और नृत्य प्रस्तुत कर देवताओं को सुलाती हैं। इन महिलाओं को सीता कहा जाता है। काहिका उत्सव में इनकी विशेष भूमिका रहती है। इनके बिना काहिका उत्सव नहीं होता है। देवी-देवता भी इनके गीतों से दूर नहीं रहते हैं।

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