अद्धयात्मदस्तक-विशेष

रामेश्वरम

डॉ. विमलेश शुक्ला

राम से रामेश्वर, नारायण से नारायणत्व की ओर प्रयाण करने वाला, इच्छा-ज्ञान-क्रिया की त्रिवेणी के पावन प्रवाह में तप, त्याग और तपस्या की डुबकियों से स्नात, सत्य- प्रेम-करुणा के आनन्द सागर की अनन्त गहराइयों की यात्रा कराने वाला एक अद्भुत पावन ग्रन्थ है। आपके हाथों तक पहुंचा यह ‘रामेश्वरम’, आकार से पुस्तक, किन्तु विषय वस्तु से ग्रन्थ की गरिमा का संस्पर्श करता है।
समीक्ष्य पुस्तक में “पार्थवेश्वर महादेव” एवं “सीता परित्याग”, इन दो कथाओं का अभूतपूर्व विश्लेषण मानवीय संवेदना को अलौकिक संचेतना के जिस शिव संकल्प-मय धरातल पर अवतरित किया गया है, वह लेखक आशुतोष राणा के समर्पण की तन्मयता, चिंतन की सार्वभौमिकता, सर्वजनीनता एवं मानव मनोभावों की सूक्ष्मता को मूर्तमान करता है और शब्द अनायास निकल ही पड़ते हैं –
सोइ जानहि जेहि देहु जनाई। जानत तुमहिं तुमहिं होइ जाई॥
कैसे संभव हुआ, और हो पाता है इस स्तर का सृजन और वह भी इतने कम समय में, यह भी ध्यान देने योग्य है।
तन्मे मन: शिवसंकल्पमस्तु ।
हमारा मन शिव संकल्पों वाला- अर्थात् ‘श्रद्धा विश्वास रूपिणौ पार्वती पर्मेश्वरौ’ की तरह मंगलमय, कल्याण मय, शिवमय हो, जो आत्मगत , सुप्त और विस्मृत चैतन्य तत्व को जाग्रत करनेवाला, जनमानस को शव से शिवमय बनाने वाला हो।
और यह संकल्प सद्गुरु के सुदुर्लभं सानिध्य तथा अनुकम्पा से ही प्राप्त होता है। आराध्य और आराधक , साध्य और साधक की समुपस्थिति में ही मन शिवमय अथवा शिवसंकल्प वाला होता है।
रामसेतु और रामहेतु रामेश्वरम् की पवित्र रज कण कण में विद्ममान है। रामसेतु ही राम का हेतु है और रामहेतु रामसेतु का निमित्त ही है।
पार्थवेश्वर शिवलिंग निर्माण के लिए मृन्मय मन को चिन्मय बनाने की आवश्यकता है क्यों कि- मन एव मनुष्याणां कारण बन्ध मोक्षयो:।
इस अद्भुत रचना का विमोचन पूज्य गुरुदेव श्री देवप्रभाकर जी शास्त्री ‘दद्दाजी’ की प्रेरणा, संकल्प व निर्देशन में रामेश्वरम धाम-तमिलनाडु में हो रहे सवा करोड़ पार्थिव शिवलिंग निर्माण महारुद्र यज्ञ व महारुद्राभिषेक की पावन बेला में हो रहा है यह भी एक सुखद संयोग है। आयुर्वेद के अनुसार भूमि के दो फिट नीचे की जो मिट्टी होती है वह शरीर के बडे़ ,से बड़े घावों को भर देती है। अतएव यह पार्थिव शिवलिंग निर्माण मानव मन के, समाज के, राष्ट्र के, समस्त विश्व के, इतना ही नहीं पृथ्वी के जीव मात्र के जख्मों को भरने वाले हैं। इस पुस्तक के प्रणम्य चिंतन ने मेरे तुच्छ मन मस्तिष्क में एक साथ कई विचारों को कौंधा दिया है। दोनों ही कथाएं चार भागों में रची गई हैं, जो धर्म अर्थ काम मोक्ष इन चार पुरुषार्थों की ओर संकेत करते हैं। इन चार भागों से शिवमय संकल्प की पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण, चारों दिशाओं अनुव्याप्ति की भी व्यंजना हो जाती हैं। राम शिव को अपना आराध्य और शिव स्वयं को राम का आराधक मानते हैं। यह इस बात की पुष्टि है कि जब आराध्य और आराधक द्वैत से अद्वैत हो जाते हैं तभी मन शिवसंकल्पों वाला होता है। यह शिव संकल्पों वाला मन ही रामसेतु-रामहेतु के एकत्व को समर्पित हो जाता है, तथा जनमचिन्न्यायालय के कारण भी पृथ्वी का कण-कण शिवमय कल्याणमय और चिन्मय हो जाता है। हरि और हर की एकत्व की स्थिति बन जाती है। पार्थिव शिवलिंग निर्माण आज आयुर्वेद औषधि विज्ञान के परिप्रेक्ष्य मे भी शिवमय कल्याणकारी है।
” सीता परित्याग की कथा “
अत्यंत मार्मिक कारुणिक एवं, राम की अन्तव्र्यथा की पीड़ान्तक अभिव्यंजना है। राम सत्य, शील, मर्यादा एवं प्रजा वत्सल स्वरूप के प्रतीक हैं। वे एक आज्ञा पालक पुत्र, प्राणवल्लभ प्रियतम, प्रजा वत्सल, मर्यादा पुरुषोत्तम शासक हैं।
सीता का परित्याग, परित्याग नहीं है क्योंकि सीता सिद्धि है जिसे साधक अपनी साधना से अर्जित करता है,वह उससे कैसे विलग हो सकती हैं?
फिर भी सीता विछोह जन्य राम हृदय के कारुणिक आलोड़न विलोड़न जिस मानवीय कारुणिक रुदन की अभिव्यंजना हुई है वह अद्भुत है। भाई आशुतोष राणा की लेखिनी गुरु प्रसाद प्रदत्त अलौकिक क्षमता का दर्शन है। राम की अन्तव्र्यथा (महाकवि भवभूति कृत) उत्तर रामचरितम् में प्रस्फुटित हो उठी है-
पुटपाक प्रतीकाशो रामस्य करुणो रस:।
सीता परित्याग कथा इतनी करुणाप्लावित है कि जनमानस के अश्रचपातों से भावभूमि सिक्य हो जाती हैं किंतु जब उनकी अन्तर भावभूमि का संस्पर्श करते हैं तो राम सीता नहीं सीताराम दिखाई देते हैं ।
सीता को राम की निर्मिति …सृष्टि माना है और वह साधक से अलग नहीं हो सकती।
महाकवि लालदास ने अपने अवध विलास महाकाव्य मे लिखा है…।।
मम मत राम गए न हि कतहूँ। और कविन की कही कहत हूँ।।
भाई आशुतोष राणा की लेखन शैली सरल ,सहज सर्वसंवेद्य और प्रवाहमय है।
भरत मुनि के नाट्य शास्त्र की अभिनय कला को अभिनव रूप में ‘पार्थवेश्वर महादेव’ और ‘सीता परित्याग’ जैसी कथाओं को मनोवैज्ञानिक धरातल पर उतारना निषाणात अभिनय कला का महामंचन है!
पार्थवेश्वर महादेव एवं सीता परित्याग के माध्यम, से सुविज्ञ चिंतक अद्भुत लेखन शक्ति सम्पन्न मानव मन की सूक्ष्यमातिसूक्ष्म अन्तर्वृत्तियों की विश्लेषण क्षमता सम्पन्न भाई आशुतोष जी ने गुरु कृपा के अनन्य पात्र के रूप में अपना अनकहा परिचय दिया जो श्लाघनीय ही नही प्रणम्य है।

डॉ. विमलेश शुक्ला, पुणे, महाराष्ट्र, शोध कार्य – महाकवि लालदास कृत महिकाव्य ‘अवधविलास’ का शोधपरक अनुशीलन, जुलाई 1957, बांदा (उ.प्र) मे जन्म। आयुर्वेद विज्ञान व संस्कृत भाषा के विद्वान पिता से मिली प्रेरणा संस्कृत भाषा और साहित्य अध्ययन की। ग्वालियर (जीवाजी) तथा झांसी (बुन्देलखण्ड) विश्वविद्यालयों में अध्यापन।

Related Articles

Back to top button