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राहुल से भाजपा के नेताओं को कैसा डर?

दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी वैसे तो आजकल आत्मविश्वास से लबरेज है, लेकिन उसके आला नेताओं की बयानबाजी यह बता रही है कि उनके मन में कहीं ना कहीं कांग्रेस का डर बैठा हुआ है। आप अर्काईव पलटिए, कहीं नहीं पाएंगे कि भाजपा के डर से कांग्रेस की हालत पतली होती जा रही है। यहां यह समझना जरूरी है कि कांग्रेस के चाल की अपनी एक गति है, जो निरंतर शनैः शनैः चलती रहती है। कभी-कभार मंजिल तक नहीं पहुंचती, लेकिन वह अपनी गति की एकरूपता को परिवर्तित नहीं करती। आजकल विषय बने हुए हैं राहुल गांधी। कांग्रेस के उपाध्यक्ष रहे राहुल गांधी अब करीब-करीब पार्टी अध्यक्ष बन गए हैं। करीब-करीब इसलिए कह रहा हूं कि नामांकन के हफ्ते भर बाद आधिकारिक रूप से उन्हें अध्यक्ष घोषित किया जाएगा, लेकिन उनका निर्विरोध जीतना तय है, क्योंकि किसी अन्य नेता ने उनके विरुद्ध पर्चा भरा ही नहीं है। इसलिए यदि अभी से राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष भी कह दिया जाए तो कुछ गलत नहीं होगा। खैर, मूल विषय यह है कि केन्द्र में प्रचंड बहुमत से सत्तासीन हुई भाजपा की आंतरिक राजनीति पर आपने कभी नेहरू-गांधी परिवार अथवा कांग्रेस के किसी बड़े नेता को टिप्पणी करते देखा-सुना है? शायद नहीं। इस स्थिति में भाजपा को भी कांग्रेस की आंतरिक गतिविधियों पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। पीएम नरेन्द्र मोदी ने राहुल गांधी की तुलना औरंगजेबसे की है। क्या पीएम के मुंह से इतनी हल्की बात शोभा देती है? सवाल बात के शोभा देने या नहीं देने का नहीं है, सवाल डर का है। लोकसभा की साढ़े चार सौ तक सीटें जितने वाली कांग्रेस 44 पर सिमट गई है, बावजूद भाजपा के भीतर उसका खौफ अब भी जारी है।

राजीव रंजन तिवारी

राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने से अन्य दल खासकर भाजपा के पेट में दर्द क्यों हो रहा है, यह समझ से परे है। मुझे याद नहीं है कि वर्ष 2014 में नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद जब अमित शाह की भाजपा अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी हुई थी तो कांग्रेस के किसी नेता ने उनकी आलोचना की थी अथवा नकारात्मक प्रतिक्रिया दी थी। पर, भाजपा के आला नेता राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने पर नकारात्मक प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं, यह सोचने वाली बात है। यह जनता को भी सोचना चाहिए। कांग्रेस पर ज्यादातर वक्त नेहरू-गांधी परिवार का वर्चस्व रहा है इसलिए इस ख़बर से किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए। कांग्रेस आज भी ऐसी स्थिति में है कि राहुल गांधी के अलावा कोई विकल्प भी नहीं था। कांग्रेस में हमेशा से ये रहा है कि अगर गांधी परिवार से कोई है तो ठीक है, वह मान्य है, वरना हर कोई सोचता है कि मैं क्यों नहीं? कांग्रेस किसे अध्यक्ष बनाती है, किसे नहीं, ये कांग्रेस का अंदरूनी मामला है। इस पर बीजेपी को कुछ नहीं कहना चाहिए। बीजेपी को समझना चाहिए कि हिंदुस्तान में अगर कोई विपक्ष चल सकता है तो सिर्फ़ कांग्रेस की छतरी के नीचे ही चलेगा। नरसिम्हा राव से लेकर मनमोहन सिंह तक, कभी भी पूर्ण बहुमत वाली सरकार तो थी नहीं। लंगड़ी सरकार थी लेकिन फिर भी कांग्रेस की छतरी के नीचे चलती रही। क्षेत्रीय पार्टी की छतरी के नीचे बनने वाली सरकार कभी पांच साल पूरे नहीं करती। इसलिए बीजेपी को डर क्षेत्रीय पार्टी से नहीं है, लेकिन अगर 2004 की तरह 2019 में कांग्रेस आ गई तो समझिए लंबा चलेगी। बीजेपी को यही डर है। भाजपा चाहती है कि कांग्रेस को इतना कमज़ोर करो कि उसकी छतरी के नीचे क्षेत्रीय पार्टियां गोलबंद न हो सके।

जब राहुल गांधी ने राजनीति में कदम रखा तभी से यह संभावित था कि एक दिन वे कांग्रेस अध्यक्ष बनेंगे। आखिरकार उनके विधिवत पार्टी अध्यक्ष बनने का रास्ता साफ हो ही गया। इसके पहले पार्टी की कमान सोनिया गांधी के हाथ में रही, लगातार उन्नीस साल। लिहाजा, विपक्षी चुनाव संपन्न कराए जाने के बावजूद इसे परिवार के भीतर पार्टी की सत्ता के हस्तांतरण के रूप में ही देखते हैं। यह कोई हैरत की बात नहीं है। काफी पहले से कांग्रेस का हर नेता और कार्यकर्ता राहुल गांधी को पार्टी अध्यक्ष बनाए जाने की मांग जब-तब करता आ रहा था। सोनिया गांधी धीरे-धीरे अपनी सक्रियता कम करती गर्इं और चाहे पार्टी का संचालन हो या चुनाव अभियान, राहुल गांधी की भूमिका बढ़ती गई। ऐसे में स्वाभाविक है कि नौ हजार प्रतिनिधियों ने सर्वसम्मति से उनके नाम पर मुहर लगाई। सोनिया गांधी भी चुनी गई थीं, पर उनका चुनाव निर्विरोध नहीं हुआ था, उनके मुकाबले जितेंद्र प्रसाद उम्मीदवार थे। सीताराम केसरी को राजेश पायलट की ओर से मिली चुनौती का सामना करना पड़ा था। पर, राहुल गांधी के मुकाबले कोई उम्मीदवार नहीं था। अब सवाल यह है कि इससे कांग्रेस में और देश की राजनीति में क्या कोई फर्क पड़ेगा? एक वक्त था, जब भाजपा को लगता था कि राहुल का मखौल उड़ा कर, या सिर्फ उन पर तंज कस कर उन्हें खारिज किया जा सकता है। कई साल तक राहुल की छवि भी ऐसी रही या बना दी गई थी मानो वे अनिच्छुक राजनेता हैं और उनमें लड़ने-भिड़ने का माद्दा नहीं है। लेकिन अब जिन राहुल ने कांग्रेस की कमान संभाली है उनके बारे में कांग्रेस के पस्त नेताओं से लेकर आलोचकों और विरोधियों तक की राय काफी-कुछ बदल चुकी है। अब राहुल अनिच्छुक नहीं, सधे हुए राजनेता की तरह नजर आ रहे हैं। पहले राहुल के अमेरिका दौरे और अब गुजरात में उनके इस नए रूप से भाजपा परेशान है। लेकिन बढ़ती स्वीकार्यता के बरक्स राहुल गांधी के सामने चुनौतियां भी बड़ी हैं।

आपको बता दें कि राहुल गांधी ने एक ओर कांग्रेस अध्यक्ष पद के निर्वाचन के लिए नामांकन पत्र भरा और दूसरी ओर गुजरात में पीएम नरेन्द्र मोदी ने इसकी तीखी आलोचना की। वस्तुत: पीएम का पूरा फोकस कांग्रेस में वंशवादी नेतृत्व पर था। वे यह बताना चाह रहे थे कि जिस पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र नहीं होगा वहां ऐसा ही होता है। लेकिन प्रधानमंत्री यदि राहुल गांधी या नेहरू-इंदिरा वंश की तुलना शाहजहां और औरंगजेब से नहीं करते तो अच्छा होता। जहां तक आंतरिक लोकतंत्र का प्रश्न है तो भारत में आज शायद ही ऐसी कोई पार्टी है जिसमें पूरे लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव होते हैं। भाजपा भी इसका अपवाद नहीं है। हर पार्टी में चुनाव होता है, लेकिन यह केवल औपचारिकता मात्र है। किसी पार्टी में राष्ट्रीय अध्यक्ष राज्यों से नामित होकर नहीं आते। पहले अध्यक्ष का नाम तय हो जाता है और संविधान के अनुरूप उसका केवल अनुमोदन कराया जाता है। राहुल गांधी के नाम का प्रस्ताव भी ज्यादातर राज्यों से आ गया है। इस नाते कांग्रेस भी कह सकती है कि राहुल चुनाव प्रक्रिया से यहां तक पहुंचे हैं। खैर, राहुल गांधी हाशिये पर खड़ी कांग्रेस की कमान थाम रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि वे चाहें तो अपनी दादी से सीख कर बहुत कुछ कर सकते हैं। इंदिरा गांधी भारत की अकेली महिला प्रधानमंत्री का जीवन असंभव को संभव करने की चाह रखने वालों के लिए एक सबक है। आजाद भारत के 70 वर्षों में से 49 वर्षों तक शासन करने वाली कांग्रेस 2014 के चुनाव में बुरी तरह हारी और उसकी झोली में सिर्फ 44 सीटें आईं।

लोकसभा चुनाव 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारी बहुमत से भाजपा ने जीत दर्ज की। चुनाव अभियान में मोदी ने तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह की सरकार को मां बेटे (सोनिया गांधी, राहुल गांधी) की सरकार कह कर निशाना बनाया। यह सही है कि नेहर-गांधी परिवार कांग्रेस पार्टी के लिए एक तरह से पर्यायवाची रहा है। जवाहर लाल नेहरू से शुरू हुई इस परंपरा और कांग्रेस पार्टी का जो संगम हुआ उसमें में अब राहुल गांधी का दौर आ गया है। अब राहुल गांधी के नेतृत्व में ही कांग्रेस 2019 का आम चुनाव लड़ेगी। यहां उन्हें नरेंद्र मोदी का सामना करना है। सोनिया गांधी उन्हें अगला नेता बनायें उसके पहले से ही राहुल के बारे में कहा जाता रहा है कि वे इस योग्य नहीं है। जबकि सच्चाई यह है कि राहुल गांधी एक परिपक्व, सुलझे हुए और समझदार नेता हैं। भाजपा ने उनकी गलत छवि पेश की ताकि देश में उनके प्रति नकारात्मक छवि बन सके। अब वही भाजपा राहुल गांधी से डर रही है। फलतः अनर्गल प्रलाप भी कर रही है।

 

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