अद्धयात्म

शास्त्रों के अनुसार दक्षिण दिशा में भूल से भी न करें ये काम, वरना…

शास्त्र वह माध्यम है, जो मानव जीवन की समस्याओं का समाधान करता है। वैसे तो शास्त्र कई है, जिनमें हर शास्त्र का अपना अलग महत्व होता है ऐसे ही एक शास्त्र है वास्तुशास्त्र, जिसमेें दिशाओं को महत्वपूर्ण माना गया है। वास्तुशास़्त्र के अनुसार दक्षिण दिशा को अशुभ माना जाता है। अगर मानव अपने जीवन में दिशाओं के अनुसार कार्य करता है, तो उसके जीवन में कभी भी कोई समस्या पैदा नहीं होगी। आज हम आपसे वास्तुशास्त्र के अनुसार दक्षिण दिशा के बारे में बताने जा रहे हैं। यहां पर हम जानेंगे कि हमें दक्षिण दिशा में कौन से कार्य नहीं करना चाहिए।शास्त्रों के अनुसार दक्षिण दिशा में भूल से भी न करें ये काम, वरना...

वास्तु शास्त्र के अनुसार इंसान को दक्षिण दिशा में पैर और उत्तर दिशा में सिर रखकर नहीं सोना चाहिए। इसके पीछे का तर्क पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल पर टिका होना है। पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है। इसकी धुरी के उत्तर-दक्षिण दो छोर हैं। यह चुंबकीय क्षेत्र होता है। इसलिए दक्षिण दिशा में जब भी इंसान पैर करके सोता है, तो वह तो पृथ्वी की धुरी के समानांतर हो जाता है। इससे धुरी के चुंबकीय प्रभाव से रक्तप्रवाह प्रभावित होता है। इससे हाथ-पैर में दर्द, कमर दर्द, शरीर का कांपना आदि जैसे दोष हो जाते हैं। माना जाता है दक्षिण दिशा में सोने से फेफड़ों की गति अत्यंत मंद हो जाती है। इसीलिए मृत इंसान के पैर दक्षिण दिशा की ओर कर दिए जाते हैं ताकि उसके शरीर से बचा हुआ जीवांश समाप्त हो जाए।

वास्तु के मुताबिक घर का मुख्य दरवाजा दक्षिण दिशा में नहीं रखना चाहिए। खास तौर पर गुरुवार के दिन दक्षिण दिशा में यात्रा करना हानिकारक होता है। गुरु की प्रधानता के कारण उस दिन पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र और अधिक प्रबल हो जाता है। वास्तु के अनुसार प्रात:काल कलश, कूड़ा और अर्थी का दर्शन शुभ बताया जाता है। जानकारों के मुताबिक प्रात:काल शुरू किया गया काम आधा वैसे ही सफल हो जाता है। शास्त्रों में पूजा, तीर्थ और परोपकार दान की श्रेणी में आता है।

 

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