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शाहरुख पर टुटा मुश्किलों का पहाड़, फंस सकते हैं कई लोग…

किसी भी संदिग्ध मामले में टैक्स अधिकारी अब तक पैसे के स्रोत की पड़ताल करते थे। रकम अगर टैक्स रिटर्न में डिक्लेयर की गई हो तो कोई सवाल नहीं पूछा जाता था, लेकिन ‘बेनामी’ सौदों के खिलाफ कानून ने इस स्थिति को बदल दिया है। शाहरुख खान के अलीबाग स्थित बंगले को इनकम टैक्स अथॉरिटीज की ओर से अटैच किए जाने से अमीर तबके को झटका लगा है। इस ऐक्शन ने पहली नवंबर 2016 को लागू हुए बेनामी ट्रांजैक्शंस (प्रोहिबिशन) अमेंडमेंट ऐक्ट के दूरगामी असर को सामने ला दिया है। शाहरुख पर टुटा मुश्किलों का पहाड़, फंस सकते हैं कई लोग...

कैसे सौदे इस कानून के खिलाफ माने जा सकते हैं? एसेट्स अक्वायर करने में अपने भाई, बहन या पैरंट्स को पैसे देना भी इसके दायरे में आ सकता है। आपकी ओर से खेती की जमीन का स्वामित्व रखने वाले किसी शख्स की फंडिंग, किसी अन्य को पैसा देकर उसके जरिए शेयर रखते हुए सेबी के टेकओवर कोड को धता बताना या किसी महिला को पैसे उधार देकर उसके लिए अपार्टमेंट खरीदना भी इस कानून का उल्लंघन हो सकता है, भले ही ये सभी सौदे बैंकिंग चैनल के जरिए ऐसी रकम से किए गए हों, जिस पर टैक्स चुका दिया गया हो। 

जांच के लिए टैक्स अधिकारियों का तरीका बेहद सरल है। ऑफिशल ओनर यानी जिसके नाम पर प्रॉपर्टी, जमीन या कोई एसेट रजिस्टर्ड हो, वही असल मालिक भी होना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होगा तो टैक्स अधिकारी प्रॉपर्टी जब्त करने, उस एसेट की मार्केट वैल्यू के एक चौथाई के बराबर जुर्माना वसूलने और यहां तक कि नियमों को तोड़ने वालों यानी असल मालिक और ‘बेनामीदार’ को जेल भेजने के लिए बेनामी लॉ का इस्तेमाल कर सकते हैं। 

अगर कोई व्यक्ति अपने पिता को लोन देकर या बिल्डर को सीधे पेमेंट कर पिता के नाम पर प्रॉपर्टी खरीदे तो वह इस कानून में तब फंस सकता है, जब टैक्स अधिकारी इस नतीजे पर पहुंच जाएं कि पिता तो वह प्रॉपर्टी इस्तेमाल ही नहीं करते। पति या पत्नी या बच्चों के नाम पर बुक की गई प्रॉपर्टी से उल्लंघन नहीं होगा, लेकिन पैरंट्स या भाई-बहन के नाम पर प्रॉपर्टी रजिस्टर्ड हो और वे न तो उसका उपयोग कर रहे हों और न ही उसे खरीदने के लिए उनके पास पैसा रहा हो, तो ऐसी प्रॉपर्टी को बेनामी माना जा सकता है। ऐसे मामलों में बचने का एकमात्र रास्ता यह है कि अपने पैरंट्स, भाई या बहनों के साथ प्रॉपर्टी का जॉइंट रजिस्ट्रेशन हो। 

सीनियर चार्टर्ड अकाउंटेंट दिलीप लखानी ने कहा, ‘इसका बड़ा असर हो सकता है। प्रॉपर्टी पर जिसका मालिकाना हक हो, वही असल बेनिफिशल ओनर भी होना चाहिए, जो उसका यूज कर रहा हो और उसके बेनिफिशल राइट्स भुना रहा हो। यानी अगर बेनिफिशल ओनर किराया वसूल रहा हो या सोसायटी चार्ज दे रहा हो तो ऑफिशल ओनर को बेनामी माना जाएगा।’ 

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