अद्धयात्म

…तो इसलिए परशुराम ने इक्कीस बार इस पृथ्वी से किया क्षत्रियों का विनाश

कथानक है कि हैहय वंशाधिपति सहस्त्रार्जुन ने घोर तप द्वारा भगवान दत्तात्रेय को प्रसन्न कर एक सहस्त्र भुजाएँ तथा युद्ध में किसी से परास्त न होने का वर पाया था। संयोगवश वन में आखेट करते वह जमदग्निमुनि के आश्रम जा पहुँचा और देवराज इन्द्र द्वारा उन्हें प्रदत्त कपिला कामधेनु की सहायता से हुए समस्त सैन्यदल के अद्भुत आतिथ्य सत्कार पर लोभवश जमदग्नि की अवज्ञा करते हुए कामधेनु को बलपूर्वक छीनकर ले गया।...तो इसलिए परशुराम ने इक्कीस बार इस पृथ्वी से किया क्षत्रियों का विनाश

कुपित परशुराम ने सहस्त्रार्जुन कीफरसे के प्रहार से समस्त भुजाएँ काट डालीं व सिर को धड़ से पृथक कर दिया। तब सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने प्रतिशोध स्वरूप परशुराम की अनुपस्थिति में उनके ध्यानस्थ पिता जमदग्नि की हत्या कर दी। रेणुका पति की चिताग्नि में प्रविष्ट हो सती हो गयीं।

इस काण्ड से कुपित परशुराम ने पूरे वेग से महिष्मती नगरी पर आक्रमण कर दिया और उस पर अपना अधिकार कर लिया। इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक पूरे इक्कीस बार इस पृथ्वी से क्षत्रियों का विनाश किया। यही नहीं उन्होंने हैहय वंशी क्षत्रियों के रुधिर से स्थलत पंचक क्षेत्र के पाँच सरोवर भर दिये और पिता का श्राद्ध सहस्त्रार्जुन के पुत्रों के रक्त से किया। अन्त में महर्षि ऋचीक ने प्रकट होकर परशुराम को ऐसा घोर कृत्य करने से रोका।

इसके पश्चात उन्होंने अश्वमेघ महायज्ञ किया और सप्तद्वीप युक्त पृथ्वी महर्षि कश्यप को दान कर दी। केवल इतना ही नहीं, उन्होंने देवराज इन्द्र के समक्ष अपने शस्त्र त्याग दिये और सागर द्वारा उच्छिष्ट भूभाग महेन्द्र पर्वत पर आश्रम बनाकर रहने लगे।    

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