विदेशी निवेश के मामले में मौजूदा साल चीन की तुलना में भारत के बेहद अच्छा साबित हो रहा है. आंकड़ों के मुताबिक दक्षिण एशियाई देशों में चीन के मुकाबले भारत में लगभग दो दशक के बाद अधिक निवेश होने जा रहा है.
ग्लोबल फाइनेंशियल कंटेंट कंसल्टिंग कंपनी डियालॉजिक के आंकड़ों के मुताबिक इस साल के दौरान जहां विदेशी कंपनियों ने अभीतक 38 बिलियन डॉलर का निवेश भारत में करते हुए भारतीय कंपनियों में हिस्सेदारी ली है. वहीं इस दौरान चीन की कंपनियों में विदेशी कंपनियों में महज 32 बिलियन डॉलर का निवेश किया है.
भारत में विदेशी कंपनियों का यह निवेश उपभोक्ता और रिटेल क्षेत्र में हुआ है. गौरतलब है कि इसी हफ्ते भारतीय कंपनी हिंदुस्तान यूनीलीवर ने नेस्ले को पछाड़ते हुए इंग्लैंड की फार्मा दिग्गज कंपनी गैल्कसोस्मिथक्लाइ (जीएसके) कंज्यूमर के प्रमुख ब्रांड हॉर्लिक्स का अधिग्रहण किया था. इस अधिग्रहण के लिए एचयूएल को 31,700 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े.
इसके अलावा अमेरिका में आईटी क्षेत्र की दिग्गज आईबीएम के प्रमुख 8 सॉफ्टवेयर के अधिग्रहण का ऐलान भारतीय आईटी दिग्गज एचसीएल ने किया है. एचसीएल की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि यह डील 1.8 अरब डॉलर यानी करीब 12,780 करोड़ रुपये में हो रही है.
इससे पहले मई रेवेन्यू के आधार पर दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी वॉलमार्ट ने भारतीय ई-रिटेल दिग्गज फ्लिपकार्ट को खरीद लिया था. इस डील को दोनों कंपनियों ने 16 बिलियन डॉलर (1,07200 करोड़) पर किया. अमेरिकी रिटेल दिग्गज वॉलमार्ट ने फ्लिपकार्ट की 77 फीसदी हिस्सेदारी ली है और भारत के ई-कॉमर्स के इतिहास में यह अबतक की सबसे बड़ी डील है. इस डील के साथ ही वॉलमार्ट भारत में काम करने वाली सबसे बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी बन गई थी.
विदेशी निवेश के इन ताजे रुझानों को देखते हुए हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के अर्थशास्त्री ने उम्मीद जताई थी कि आने वाले वर्षों के दौरान जहां चीन में विदेश कंपनियों के निवेश में गिरावट देखने को मिलेगी वहीं भारत में 7 फीसदी की अधिक रफ्तार से निवेश को बढ़ता देखा जा सकेगा.
आईएमएफ ने दावा किया था कि वैश्विक निवेशकों के रुझान में यह बदलाव अमेरिका और चीन के बीच जारी ट्रेड व़र के चलते देखने को मिल रहा है और विदेशी निवेशक अब चीन की जगह भारत पर दांव खेलने की तैयारी कर रहे हैं.