दगे हुए कारतूस हैं मायावती और अखिलेश : ओमप्रकाश राजभर
अलीगढ़ : लोकसभा चुनाव को लेकर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच हुए गठबंधन पर एनडीए के घटक दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने तीखा हमला किया है। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष और योगी आदित्यनाथ की सरकार में मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने कहा है कि मायावती और अखिलेश यादव दगे हुए कारतूस हैं। उन्होंने कहा कि साल 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में इन दोनों पार्टियों का क्या हश्र हुआ था ये सभी लोग देख चुके हैं। हालांकि ये भी है कि दोनों का गठबंधन मजबूत है। इस दौरान ओम प्रकाश राजभर ने एक बार फिर से बीजेपी की आलोचना की। उन्होंने कहा कि अगर सच कहना बगावत करने जैसा है तो मैं बागी हूं। उन्होंने कहा कि अगर पिछडों वर्ग के आरक्षण में तीन केटेगरी निर्धारित कर दें तो हर लोकसभा क्षेत्र में अति पिछड़ा का 5-7 लाख मतदाता है। इसी वोट से सरकार बनती ओर बिगड़ती है। उत्तर प्रदेश के पिछड़ा वर्ग कल्याण एवं दिव्यांगजन सशक्तिकरण मंत्री और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने गरीब सवर्णों को दस फीसदी आरक्षण को महागठबंधन की देन बताया है। मंत्री ने कहा, वह 16 साल से इस मांग को उठा रहे हैं कि कमजोर एवं गरीब लोगों को आरक्षण मिलना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर निर्णाण पर दो टूक कहा कि देश संविधान से चलता है भावनाओं से नहीं चलता है और यह मामला देश की शीर्ष अदालत में है, इसलिए निर्णय का इंतजार करना चाहिए। राजभर ने खनन घोटाले के सीबीआई जांच पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि जैसे-जैसे आम चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों के नेता गठबंधन पर विचार कर रहे हैं, वैसे ही सीबीआई सक्रिय हो गयी है। मालूम हो कि कभी नदी के दो तट मानी जाने वाली सपा और बसपा ने आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को मात देने के लिये शनिवार को 23 साल पुरानी शत्रुता को भुलाते हुए एक-दूसरे से हाथ मिलाकर उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नयी इबारत लिख दी है। सपा और बसपा 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में 38-38 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी। कांग्रेस के लिये अमेठी और रायबरेली की सीटें छोड़ी गई हैं जबकि दो सीटें छोटे दलों के लिये आरक्षित की गई हैं। माना जा रहा है कि दो सीटें निषाद पार्टी और पीस पार्टी के लिए छोड़ी गई हैं। निषाद पार्टी का निषाद बिरादरी में प्रभुत्व माना जाता है वहीं पीस पार्टी का पूर्वांचल की मुस्लिम बिरादरी में असर माना जाता है। लगभग 25 साल पहले सपा-बसपा के साथ आने का ही नतीजा था कि बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद भी भाजपा सत्ता में वापसी नहीं कर पाई थी। पिछले लोकसभा चुनाव में सपा को करीब 22 प्रतिशत और बसपा को लगभग 20 फीसद मत मिले थे। दोनों को मिला लें तो यह करीब 42 फीसद होता है। वर्ष 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में सपा और बसपा को लगभग 22-22 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे, अगर दोनों का वही वोट प्रतिशत बरकरार रहा तो भी वह भाजपा के लिये कठिनाई खड़ी कर सकता है। एक अनुमान के अनुसार, उत्तर प्रदेश में इस समय दलित मतदाता करीब 22 प्रतिशत हैं। इनमें 14 फीसद जाटव शामिल हैं। ये बसपा का सबसे मजबूत वोट बैंक है। इसके अलावा बाकी आठ प्रतिशत दलित मतदाताओं में पासी, धोबी, खटीक मुसहर, कोली, वाल्मीकि, गोंड, खरवार सहित 60 जातियां हैं. राज्य में करीब 45 फीसद ओबीसी मतदाता हैं. इनमें यादव 10 प्रतिशत, कुर्मी पांच फीसद, मौर्य पांच, लोधी चार और जाट दो प्रतिशत हैं। बाकी 19 प्रतिशत में मल्लाह, लोहार, प्रजापति, चौरसिया, गुर्जर, राजभर, बिंद, बियार, निषाद, कहार और कुम्हार सहित 100 से ज्यादा उपजातियां हैं। प्रदेश में, माना जाता है, करीब 19 फीसद मुसलमान मतदाता हैं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से भाजपा गठबंधन को जबर्दस्त कामयाबी के साथ कुल 73 सीटें मिली थीं। भाजपा को 71, उसकी सहयोगी पार्टी अपना दल को दो, सपा को पांच और कांग्रेस को दो सीटें मिली थीं।